भारत में बड़े पैमाने पर तिलहन फसलों की खेती की जाती है. वहीं, खरीफ सीजन में तिलहन फसलों की बात करें तो किसान तिल की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. तिल की खेती में कम वक्त में किसानों को बढ़िया मुनाफा भी होता है. लेकिन तिल की खेती करने में किसानों को कई बार किस्मों के चयन को लेकर काफी परेशानी होती है. ऐसे में अगर किसान इस खरीफ सीजन में तिल की खेती करना चाहते हैं तो वो सफेद तिल की किस्म IIOS-1101 की खेती कर सकते हैं. इस किस्म से बंपर उत्पादन मिलता है. आइए जानते हैं कैसे कर सकते हैं इसकी खेती.
सफेद तिल की खासियत की बात करें तो इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल तेल बनाने के लिए किया जाता है. वहीं, महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में सफेद तिल अधिक मात्रा में होती है. इसके अलावा इसकी कई प्रकार की मिठाई, लड्डू आदि बनाए जाते हैं. सफेद तिल की बाजार में सबसे अधिक मांग होती है. साथ ही सफेद तिल की IIOS-1101 वैरायटी मैक्रोफोमिना जड़ और तना सड़न, पत्ती जालीदार कीट प्रतिरोधी है. इससे 9.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है और ये किस्म 92 दिनों में तैयार हो जाती है. इस किस्म में तेल की मात्रा 45 फीसदी होती है.
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सफेद तिल की बुवाई जुलाई महीने के अंत तक की जा सकती है. एक हेक्टेयर में तिल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलो बीज की जरूरत होती है. वहीं, बुवाई से पहले ये ध्यान रखें कि खेतों में नमी जरूर हो. ऐसा न होने पर बुवाई ना करें, वरना फसल सही तरीके से विकास नहीं करेगा. साथ ही बुवाई के दौरान खरपतवार का नियंत्रण जरूर रखें. बुवाई से पहले दो से तीन बार निराई-गुड़ाई करके खेत को अच्छी तरीके से तैयार कर लें. उसके बाद सफेद तिल की बुवाई करें.
सफेद तिल की खेती से पहले 5 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर प्रति हेक्टेयर एक टन, अरंडी या नीम का पाउडर बुवाई से पहले देना चाहिए. इसके बाद 25 किलो प्रति हेक्टेयर गोबर बुवाई के समय और 25 किलो प्रति हेक्टेयर बुवाई के तीन सप्ताह बाद डालें. मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर बुवाई के समय 20 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर डालें.
जब तिल की 75 फीसदी पत्तियां और तने पीले हो जाएं, तब समझना चाहिए कि फसल पक कर तैयार हो गई है. साथ ही कई किसान आम तौर पर कटाई लगभग 80 से 95 दिनों में करने लगते हैं. वहीं, कटाई में इस बात का ध्यान रखें कि तिल की जल्दी कटाई न की जाए क्योंकि जल्दी कटाई से तिल के बीज के पतले और बारीक हो जाते हैं, जिससे उनकी उपज कम हो जाती है.
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