भारत में किसानों के लिए प्याज की खेती को लाभदायक फसल माना जाता है. कई भारतीय व्यंजनों में प्याज का बड़े स्तर पर प्रयोग किया जाता है. खाने को स्वादिष्ट बनाने के अलावा प्याज कई तरह से स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश समेत प्याज की खेती भारत के अधिकांश राज्यों में की जाती है. प्याज एक उथली जड़ वाली फसल है और यह सही तरह से बढ़े इसके लिए कई बातों का ध्यान रखने की जरूरत होती है. प्याज की खेती के लिए कई एडवांस्ड उपकरण और टेक्नोलॉजी मौजूद हैं जो इसकी फसल को कई तरह से फायदा पहुंचा सकते हैं.
सब्जी जैसी फसलों के उत्पादन में बहुत ज्यादा मेहनत और पैसा खर्च करना पड़ता है. लेकिन एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की मदद से प्याज के खेत की तैयारी, पौध की तैयारी और सिंचाई के अलावा खरपतवार नियंत्रण जैसे खर्चीले खेती-किसानी के कामों में एडवांस्ड कृषि यंत्र और टेक्नोलॉजी काफी मददगार हो सकती है. रोटवेटर वह उपकरण है जो काफी फायदेमंद है. पुरानी फसल के अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर ढेला रहित खेत तैयार करने में रोटावेटर काफी मददगार होता है. इस तरह तैयार खेत में सब्जी की अच्छी पैदावार और बढ़वार मिलती है. इसकी क्षमता 0.25 हेक्टेयर प्रति घंटा है.
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प्याज की खेती के लिये गर्म और नम जलवायु सही रहती है. यूं तो अधिकतर फसल रबी के मौसम में लगायी जाती है. लेकिन अब खरीफ के मौसम में भी प्याज लगाकर अधिक लाभ कमाया जा सकता है. बीजों के अंकुरण हेतु 20 से 250 सेंटीग्रेट तापमान ठीक रहता है. लेकिन कंद के बढ़ने के लिए ज्यादा तापमान और बड़े दिनों की जरूरत होती है.
प्याज की खेती तीनों ऋतुओं में की जाती है. खरीफ फसल की रोपाई अगस्त के पहले और दूसरे हफ्ते में की जाती है. रबी फसल की रोपाई नवंबर और जायद फसल की रोपाई जनवरी के आखिरी हफ्ते से फरवरी के दूसरे सप्ताह तक की जाती है. पौधों की रोपाई तैयार खेत में कतार से कतार 15 से.मी. और पौधे से पौध 10 से.मी. की दूरी पर करते हैं.
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प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती है. इसलिए 20 से 25 टन गोबर या कंपोस्ट खाद के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति के अनुसार नाइट्रोजन 80-100 किलोग्राम, स्फुर 50 से 60 किग्रा. और पोटाश 80 से 100 किलो प्रति हेक्टयर देना चाहिए. कंपोस्ट खाद को खेत की पहली जुताई के समय भूमि में मिला दें. नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा, स्फुर पोटाश की पूरी मात्रा को आधार खाद के रूप में रोपाई से पहले देना चाहिए. नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा को बराबर दो भागों में बांटकर रोपाई के 30 से 40 दिन और 65 से 70 दिनों बाद फसल में छिटककर देना चाहिए.
प्याज की जड़े जमीन में 8-10 से.मी. गहराई तक ही सीमित रहती हैं. इसलिए सिंचाई हल्की लेकिन जल्दी-जल्दी करनी पड़ती है. रबी और जायद की फसलों में सिंचाई सात से 13 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. प्याज में कंद बनते और इसे बढ़ते समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. यह अवस्था रोपाई के 60 से 110 दिन तक रहती है. जब कंद पूरी तरह से पक जाते हैं तो 15 से 20 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. ऐसा करने से कंदों का रंग आकर्षक और भंडारण क्षमता बढ़ जाती है.
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