देश में किसान अब धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं. पारंपरिक फसलों के साथ-साथ वे कम समय में बढ़िया मुनाफा देने वाली फसलों की भी खेती करने लगे हैं. इस दौरान किसान अब सीजनल सब्जियों की खेती की तरफ तेजी से रुख कर रहे है. कुंदरू भी कुछ इसी तरह की फसल है. किसान इसकी खेती कर अच्छी कमाई कर सकते हैं. बाज़ार में साल भर इसकी मांग बनी रहती है ऐसे में किसानों के लिए कुंदरू की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है. कुंदरू की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है, इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगा हो तो कहना ही क्या. अच्छी पैदावर होगी और आमदनी में इजाफा होगा.
कुंदरू की वैज्ञानिक खेती के जरिए 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन लिया जा सकता है. मार्किट में इसका दाम 40 से 70 रुपये प्रति किलो तक रहता है. इसकी खेती बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ आदि में खूब होती है. एक बार बुवाई करने के बाद कई साल तक पैदावार मिलेगी इसलिए इसकी खेती किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकती है.
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इस कुंदरू की किस्म के फल हल्के हरे, अण्डाकार, फल की लम्बाई 4.30 सेंटीमीटर और व्यास 2.60 सेंटीमीटर होता हैं| यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है. इस किस्म से 21 किलोग्राम फल प्रति लता (बेल) प्राप्त किया जा सकता है. इसकी उत्पादन क्षमता 400 से 425 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
इस किस्म के फल लम्बे, हल्के हरे तथा फल 6.0 सेंटीमीटर लम्बे और व्यास 2.43 सेंटीमीटर होता है| यह एक अधिक उत्पादन देने वाली किस्म है. इस किस्म से 22 किलोग्राम फल प्रति लता प्राप्त किया जा सकता है| इस किस्म की उत्पादन क्षमता 410 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
कुंदरू की इस किस्म के फल लम्बे, 9.25 सेंटीमीटर, गहरे हरे रंग के होते हैं| यह रोपण के 37 से 40 दिन में पुष्पन में आती है और प्रथम तुड़ाई 45 से 50 दिन पर होती हैं. यह किस्म वर्षभर में लगभग 1050 फल प्रति पौधा देती है| इसकी उपज क्षमता 400 से 425 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
कुंदरू की इस किस्म के फल आकर्षक हल्के हरे, अण्डाकार और हल्की सफेद धारी युक्त होते हैं. यह रोपण के 45 से 50 दिन में फल देने लगती हैं.इस किस्म से 20 से 25 किलोग्राम फल प्रति पौधा प्राप्त किया जा सकते है. इसकी उत्पादन क्षमता 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
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