कपास के आयात शुल्क में छूटतमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन (टीएएसएमए) ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से एक आग्रह किया है. TASMA ने आपने आग्रह में कहा कि कपास के कम उत्पादन को देखते हुए देश में कपास की कमी हो सकती है, इसलिए 31 दिसंबर, 2025 के बाद भी कपास के आयात शुल्क छूट को बढ़ाया जाए. TASMA के अध्यक्ष एपी अप्पुकुट्टी ने वित्त मंत्री को लिखे पत्र में कहा कि आयात शुल्क छूट को बढ़ाने से कपास की उपलब्धता आसान हो सकती है और मिलों को वैश्विक बाजार में अपने उत्पादों की अच्छी कीमत मिलने में मदद मिल सकती है.
बता दें कि सरकार द्वारा 30 सितंबर, 2025 से 31 दिसंबर, 2025 तक आयात शुल्क छूट को बढ़ाने के कदम का स्वागत करते हुए, एपी अप्पुकुट्टी ने कहा कि इससे मिलों को 11 प्रतिशत कम कीमत पर कपास आयात करने और वैश्विक बाजार में अपने उत्पादों को अच्छी मूल्य पर बेचने में मदद मिली है. ऐसे में इसे 31 दिसंबर से भी और आगे बढ़ाया जाए.
सरकार ने पहले ही घरेलू कपड़ा उद्योग के लिए कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाने और इनपुट लागत को स्थिर करने के उद्देश्य से कपास पर आयात शुल्क छूट को 31 दिसंबर, 2025 तक बढ़ा दिया था. इस छूट में मूल सीमा शुल्क (BCD) और कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (AIDC) शामिल हैं.
आयात शुल्क छूट का विस्तार होने से मिलों को वैश्विक बाजार में अच्छी कीमतों पर अपने उत्पादों की पेशकश करने में मदद मिलेगी, यह निर्णय ऐसे समय में महत्वपूर्ण है जब उद्योग को बाहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. यह कदम कपड़ा मूल्य श्रृंखला (यार्न, कपड़े, वस्त्र और निर्मित सामान) में इनपुट लागत को कम करने और निर्माताओं और उपभोक्ताओं को राहत देने में की उम्मीद है, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलेगा.
भारत में कपास का उत्पादन लगातार तीसरे साल गिरा है. आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2025-26 में कपास उत्पादन गिरकर 29.22 मिलियन गांठ रह गया है, जो 2024-25 में 29.72 मिलियन गांठ था. बीते चार सालों में कपास की बुवाई का क्षेत्र भी 20 लाख हेक्टेयर कम हुआ है. भारत की औसत उपज अभी भी 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से कम है. इसकी तुलना में विश्व का औसत 9 क्विंटल और अमेरिका का 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
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