Stevia Farming: अगर कोई शुगर का मरीज हो या मोटापे से परेशान हो तो उसे चीनी से परहेज करने के लिए कहा जाता है. सामान्य व्यक्ति को भी अधिक चीनी का इस्तेमाल करने से रोका जाता है क्योंकि इसका विपरीत असर देखा जाता है. लेकिन खाने वाले मन करे तो वह आखिर चीनी को कैसे ना कहे. इसका एक ही उपाय है नेचुरल स्वीटर. यानी ऐसी चीनी जो नेचुरल हो और खून में शुगर का स्तर भी नहीं बढ़ाए. इसी नेचुरल स्वीटनर में स्टेविया पौधे का नाम आता है. इसे मीठी तुलसी भी कहते हैं जो चीनी का काम करती है.
स्टेविया पौधा आधुनिक समय में ऐसी खोज है जिसने मधुमेह और मोटापा जैसी बीमारी से ग्रस्त लोगों में उम्मीद की एक लौ जगाई है. यह ऐसा पौधा जिसमें आम चीनी से 25 गुना अधिक मिठास होती है और नेचुरल भी. इसमें किसी तरह का कोई केमिकल नहीं है. भारत में स्टेविया को मीठी पत्ती के नाम से भी जानते हैं. इसकी सबसे अधिक खेती चीन में होती है, लेकिन अब भारत में भी इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जा रही है. भारत में स्टेविया की खेती व्यावसायिक स्तर पर की जा रही है.
अब आइए जान लेते हैं कि स्टेविया की खेती (stevia farming) कैसे करते हैं. स्टेविया या मीठी तुलसी की खेती करने के लिए इसकी पौध लगानी होती है. पौध को नर्सरी में तैयार करना होता है. खुद की नर्सरी नहीं बना सकते, तो किसी दूसरी जगह से स्टेविया के पौधे खरीद कर अपने खेतों में लगा सकते हैं. अगर आप खुद के खेत में नर्सरी लगाना चाहते हैं तो एक एकड़ खेत के लिए स्टेविया के 10-20 ग्राम बीज की जरूरत होती है.
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स्टेविया के बीज कपास के बीज की तरह होते हैं जिन्हें खेतों में यूं ही छिड़क दिया जाता है. इससे स्टेविया की पौध (stevia farming) तैयार हो जाती है. एक बात ध्यान रखना होगा कि स्टेविया की अंकुरण दर बहुत कम होती है और मात्र 40 फीसद बीज ही पौध में तब्दील हो पाते हैं. इसलिए अधिक बीज का छिड़काव करना चाहिए ताकि उपयुक्त मात्रा में पौध मिल सकें और उसकी रोपाई की जा सके.
बीज छिड़कने के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए वर्ना उसके उड़ने का डर होता है. जिस खेत में नर्सरी बनाई गई है उसमें हर 20-25 दिन में खर-पतवार निकालते रहें. दो से ढाई महीने में पौध (stevia farming) तैयार हो जाती है जिसे निकाल कर मुख्य खेत में रोप दिया जाता है. स्टेविया रोपने के लिए फरवरी का महीना सबसे अच्छा माना जाता है. रोपाई से पहले मिट्टी में चार बार रोपाई की सलाह दी जाती है. पाला चला कर खेत को समतल बनाने से फायदा मिलता है.
स्टेविया रोपने के लिए दो फुट चौड़ी और एक फुट ऊंची मेढ़ बनाई जाती है. मेढ़ बनाते समय ही खेत में 125 टन सड़ी खाद, 25 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो पोटाश और 55 किलो फॉस्फोरस मिला देना चाहिए. नर्सरी से स्टेविया के पौधे को निकालने की खास विधि होती है. पहले पौधे को जड़ के ऊपर से काटकर हटा दिया जाता है. उसके बाद कुदाल से पौधे को खोदकर बाहर निकाला जाता है और उसकी जोड़कर धो लिया जाता है. कवकरोधी दवा से जड़ों को धो देते हैं ताकि कोई फफूंद न लगे.
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अब जड़ सहित पौधे को मेढ़ों पर रोपाई कर देंगे. इसके लिए छोटे गड्ढे बनाए जाते हैं जिसमें केंचुआ खाद डालकर उसमें पौधे रोप (stevia farming) दिए जाते हैं. रोपाई के बाद सिंचाई और निकौनी जरूरी होती है. हर 15-20 दिन पर निकौनी जरूरी होती है. 3 महीने बाद स्टेविया की फसल तैयार हो जाती है. इस तरह स्टेविया को काटकर फसल ली जाती है. जमीन से एक इंच ऊपर स्टेविया की कटाई करनी चाहिए ताकि बाद में दूसरी फसल भी उग आए. पहली कटाई में एक एकड़ में एक हजार किलो फसल ले सकते हैं. दूसरे साल से पैदावार दोगुनी हो जाती है. एक बार रोपाई के बाद सात पर कटाई कर सकते हैं.
कटाई के बाद पत्तों को निकाल लेते हैं और उसे अच्छी तरह सुखा लेते हैं. फिर इसके पत्ते बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं. स्टेविया की खेती देश के कई राज्यों में हो रही है. इस पौधे का पत्ता मधुमेह और दांत की बीमारियों में बेहद फायदेमंद है. इसके पत्ते मोटापा घटाने में भी मदद करते हैं.
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