पंजाब और हरियाणा में गिरता भू-जल स्तर भविष्य में खेती के लिए बड़ी समस्या खड़ी करेगा, क्योंकि खेती में सबसे ज्यादा भू-जल का इस्तेमाल होता है. किसानों को पैसा देकर पानी बचाने के लिए दोनों सूबों में धान की खेती को हतोत्साहित भी किया जा रहा है. दोनों की सरकारों के लिए पानी बड़ी चिंता का विषय है. इस बीच आईआईटी-दिल्ली और नासा के हाइड्रोलॉजिकल साइंसेज लैबोरेटरी की एक स्टडी में पता चला है कि पंजाब और हरियाणा ने 2003 से 2020 के बीच 17 वर्षों में 64.6 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल खो दिया है. भूजल की यह मात्रा ओलंपिक आकार के लगभग 25 मिलियन स्विमिंग पूल भर सकती है. यह रिपोर्ट तेजी से घटते संसाधनों पर शहरीकरण के संभावित प्रभाव को रेखांकित कर रही है. हालांकि, इसके लिए सिर्फ खेती या धान जिम्मेदार नहीं है.
हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि स्टडी में गुरुग्राम और फरीदाबाद में भू-जल की काफी कमी बताई गई है, जहां पानी की अधिक खपत वाली धान की खेती नाम मात्र की रह गई है. जहां धान की खेती होती है वहां पर हालात फरीदाबाद और गुड़गांव से थोड़े बेहतर हैं. यह दर्शाता है कि फरीदाबाद और गुरुग्राम में अधिकांश जल संसाधन का दोहन शहरी फैलाव के कारण हुआ है. यह स्टडी हाइड्रोजियोलॉजी जर्नल में पब्लिश हुई है.
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टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं ने देश भर में भू-जल स्तर का विश्लेषण करने के लिए केंद्रीय भू-जल बोर्ड (CGWB), साइट निरीक्षण, उपग्रह डेटा और हाइड्रोलॉजिकल मॉडल के डेटा पर भरोसा किया. फिर इन आंकड़ों को क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक मापदंडों के साथ देखा. उसी अवधि में बारिश के पैटर्न में किसी भी बदलाव की जांच करने के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के डेटा का अध्ययन किया.
आईआईटी-दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर मनबेंद्र सहरिया इस स्टडी में शामिल रहे हैं. उन्होंने कहा, "भू-जल की कमी के प्रभावों में कृषि उत्पादकता में कमी और मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट शामिल है. कृषि-प्रधान राज्य के लिए इसका सामाजिक प्रभाव होगा.
स्टडी में भू-जल की सबसे ज्यादा कमी वाले पांच हॉटस्पॉट को शॉर्टलिस्ट किया गया है. जिसमें धान की खेती वाले पंजाब और हरियाणा सबसे ऊपर हैं, इसके बाद उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और केरल का नंबर है. स्टडी में कहा गया है कि कृषि के लिए सिंचाई सभी पांच हॉटस्पॉट में भूजल निष्कर्षण का एक सामान्य कारण था, लेकिन पंजाब और हरियाणा में अन्य संभावित कारणों में उद्योगों का विस्तार, जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण भी शामिल हैं.
आंकड़ों से पता चला है कि पंजाब और हरियाणा में 2000 से 2015 तक भू-जल स्तर में 8-10 फीसदी की गिरावट आई है. दोनों राज्यों में, वित्त वर्ष 2004-2005 में कारखानों की वृद्धि दर 69 फीसदी थी और यह वित्त वर्ष 2018-2019 में 170 फीसदी तक पहुंच गई. इसी तरह, 2001 में शहरीकरण की वृद्धि 10 फीसदी थी, और 2011 तक यह 20 फीसदी हो गई.
इस दशक (2001 से 2011) के दौरान शहरी आबादी का प्रतिशत 10-20 फीसदी तक बढ़ गया. जो देश भर में शहरी आबादी में सबसे अधिक वृद्धि में से एक है. इसके अलावा, घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए भूजल की मांग में 26 से 228 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. इस प्रकार, सरकारी हस्तक्षेप और वर्षा में कोई प्रत्यक्ष गिरावट नहीं होने के बावजूद, भूजल की मांग में तेजी आई है.
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