रबी सीजन में मक्का की खेती एक उभरता हुआ विकल्प बन रही है, जो किसानों के लिए अधिक मुनाफा कमाने का एक अहम जरिया हो सकता है. वर्तमान में मक्का की मांग केवल अनाज के रूप में ही नहीं, बल्कि औद्योगिक उपयोग और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में भी व्यापक रूप से हो रही है. मक्का का उपयोग बेकरी उत्पाद, स्नैक्स, कॉर्न फ्लेक्स, स्टार्च और अन्य खाद्य सामग्रियों में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है. पशुपालन और पोल्ट्री उद्योग में मक्का के उपयोग से इसके बाजार मूल्य में वृद्धि हुई है. साथ ही, इथेनॉल उत्पादन में मक्का की बढ़ती मांग ने इसे एक स्थिर फसल बना दिया है. इथेनॉल उत्पादन में लगातार बढ़ती मांग के कारण मक्का की बिक्री में स्थिरता बनी रहती है. भारत सरकार की जैव ईंधन नीति के तहत 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिससे मक्का किसानों को सीधा लाभ मिलेगा और बाजार में बेहतर कीमतें प्राप्त होंगी.
ऐसे में रबी सीजन में मक्का की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है. रबी सीजन में मक्का की खेती के कई लाभ हैं. इनमें खरीफ के सीजन की तुलना में मक्का उत्पादन अधिक होना और इस फसल का प्रबंधन सरल होना शामिल है. इसके अलावा, इस रबी मौसम में मक्के में कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है, जिससे फसल की सुरक्षा बेहतर हो पाती है और भरपूर उत्पादन के साथ अधिक लाभ की संभावना रहती है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, खरीफ की तुलना में रबी सीजन में मक्का की खेती से डेढ़ से दोगुना अधिक पैदावार होती है, जिससे किसानों को अधिक उपज प्राप्त होती है. वहीं, रबी सीजन में मक्का की खेती गेहूं की तुलना में अधिक लाभदायक साबित हो सकती है. गेहूं का उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 12 से 15 क्विंटल होता है, जबकि मक्का का उत्पादन 30 से 40 क्विंटल प्रति एकड़ तक पहुंच सकता है. वर्तमान में जहां गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,275 रुपये प्रति क्विंटल है, वहीं मक्का का मूल्य भी लगभग इसके बराबर, यानी 2,225 रुपये प्रति क्विंटल है.
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इस प्रकार, गेहूं की तुलना में मक्का से दोगुने से अधिक मुनाफा होने की संभावना रहती है. इसके साथ ही, मक्का की खेती में खाद, उर्वरक और सिंचाई की आवश्यकता गेहूं की तुलना में कम होती है. यह उन क्षेत्रों के लिए बेहतर फसल है जहां सिंचाई के संसाधन सीमित हैं. मक्का का पौधा सूखा सहन करने की क्षमता रखता है, जिससे इसे जल की कमी वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है. इस तरह रबी मक्का की खेती किसानों के लिए मुनाफे वाली साबित हो सकती है.
बिहार में रबी मक्का की बेहतर पैदावार के लिए सबसे अनुकूल परिस्थितियां हैं, क्योंकि खरीफ सीजन के बाद खेतों में जलभराव की स्थिति समाप्त हो जाती है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है, जो रबी मक्का के लिए अत्यंत लाभकारी होती है. रबी सीजन में बारिश का पैटर्न स्थिर होता है, जिससे जलभराव की समस्या नहीं होती. साथ ही, जाड़े के मौसम में ठंडा और पाला-रहित तापमान मक्का की फसल को बेहतर बढ़वार और विकास देता है. रबी सीजन में अधिक उत्पादन देने वाली हाइब्रिड और मिश्रित किस्मों का उपयोग करते हैं. रबी मक्का की वृद्धि अवधि खरीफ की तुलना में अधिक होती है, जिससे पौधों को पूरी तरह से विकसित होने का समय मिलता है और उपज में वृद्धि होती है.
इसके अलावा, खरीफ सीजन के दौरान बादलों के कारण जो समस्याएं होती हैं, वे रबी में नहीं होतीं. इस सीजन में अनुकूल जलवायु की वजह से रबी मक्का के पौधों में पोषक तत्वों का बेहतर अवशोषण होता है. इससे फसल अच्छी तरह से विकसित होती है और अधिक उपज देती है. इस मौसम में कीट-पतंगों और बीमारियों का प्रकोप भी कम होता है. बिहार में किसान प्रति एकड़ औसतन 40 क्विंटल मक्का का उत्पादन कर रहे हैं, जो राष्ट्रीय औसत से काफी बेहतर है. रबी मक्का के लिए पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया और समस्तीपुर जिलों को मक्का बेल्ट के रूप में पहचान मिली है.
भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के अनुसार, बिहार में रबी मक्का की बुवाई अक्टूबर के मध्य से लेकर नवंबर के मध्य तक कर लेना सबसे बेहतर होता है. इसके बाद उत्तर भारत में तापमान में तेजी से गिरावट आती है, जिससे अंकुरण और पौधों की वृद्धि में देरी हो जाती है और उपज कम होने की संभावना बढ़ जाती है. रबी मक्का की खेती बिहार और उत्तर प्रदेश में 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच और पंजाब-हरियाणा में 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक करना सबसे बेहतर माना जाता है.
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रबी मक्का की बुवाई के लिए एक एकड़ खेत में 8 किलो बीज की जरूरत होती है. रबी मक्के की सफल खेती के लिए रेडबेड सिस्टम की तकनीक को अपनाना चाहिए, जिससे 20 से 30 प्रतिशत तक जल की बचत होती है. अगर धान के खेत में रबी मक्के की बुवाई करनी हो, तो इसके लिए जीरो टिलेज तकनीक का भी उपयोग किया जा सकता है, जो समय की बचत के साथ-साथ मृदा संरचना को भी सुरक्षित रखती है. खाद और उर्वरक की उचित मात्रा का उपयोग मक्के की फसल के लिए बेहद जरूरी है. मक्के में प्रति हेक्टेयर 60 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फॉस्फोरस, 15 किलो पोटाश और 10 किलो जिंक सल्फेट का प्रयोग सही माना जाता है. इन कृषि तकनीकों और उपायों को अपनाकर किसान रबी मक्का की खेती से अधिक लाभ उठा सकते हैं और अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं.
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