पंजाब में धान के हाइब्रिड बीज हैं बैन, फिर भी क्यों खरीद रहे किसान? जानें असली वजह  

पंजाब में धान के हाइब्रिड बीज हैं बैन, फिर भी क्यों खरीद रहे किसान? जानें असली वजह  

पंजाब के कुछ किसानों और विशेषज्ञों ने प्रतिबंध का विरोध किया है. किसानों का कहना है कि हाइब्रिड किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में महत्वपूर्ण फायदा देती हैं. इसमें पकने में कम समय और ज्‍यादा उपज शामिल है. किसानों के अनुसार ये किस्में तेजी से पकती हैं और पानी की बचत करती हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बाकी किस्मों की तुलना में प्रति एकड़ 5-6 क्विंटल अधिक उपज देती हैं.

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पंजाब में धान के हाइब्रिड बीज हैं बैन, फिर भी क्यों खरीद रहे किसान? जानें असली वजह  पंजाब में हाइब्रिड धान के बीज बैन

पंजाब सरकार की तरफ से हाइब्रिड धान के बीजों (गैर-बासमती चावल) की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है क्योंकि इन्हें ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है. सरकार की तरफ से कहा गया है कि इन बीजों की वजह से मिलिंग के दौरान चावल के टूटने का प्रतिशत ज्‍यादा होता है. सरकार के अनुसार भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की तरफ से  धान (बिना पिसे चावल) से बाहरी भूसी और चोकर की परतों को हटाकर खाने योग्य, सफेद चावल बनाने की प्रक्रिया में निर्धारित मानकों की तुलना में इसमें चावल ज्‍यादा टूटते हैं. लेकिन इसके बाद भी किसान इन बीजों को खरीद रहे हैं. किसानों ने बैन को नजरअंदाज करके हाइब्रिड धान के बीज खरीदने के पीछे दो अहज वजहें बताई हैं. 

इन बीजों से मिलती है ज्‍यादा उपज 

पंजाब के कुछ किसानों और विशेषज्ञों ने प्रतिबंध का विरोध किया है. इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार किसानों का कहना है कि हाइब्रिड किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में महत्वपूर्ण फायदा देती हैं. इसमें पकने में कम समय और ज्‍यादा उपज शामिल है. भले ही पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना ने कई छोटी और मध्यम अवधि की किस्में विकसित की हैं, लेकिन किसानों का दावा है कि हाइब्रिड धान के बीज अभी भी उनसे बेहतर प्रदर्शन करते हैं. 

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पराली भी कम मिलती है 

अखबार ने मुक्तसर साहिब के एक किसान बलदेव सिंह के हवाले से लिखा, 'ये किस्में तेजी से पकती हैं और पानी की बचत करती हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बाकी किस्मों की तुलना में प्रति एकड़ 5-6 क्विंटल अधिक उपज देती हैं. हमें प्रति एकड़ औसतन 35-36 क्विंटल और कभी-कभी इससे भी अधिक उपज मिलती है. इसका मतलब है कि हम प्रति एकड़ 13,000 से 14,000 रुपये ज्‍यादा कमाते हैं.' उन्‍होंने कहा कि इसके अलावा इन किस्‍मों से पराली भी कम निकलती है. 

35 से 40 क्विंटल की उपज 

करीब 125 से 130 दिनों की विकास अवधि वाली ये हाइब्रिड किस्में लगातार 35 से 40 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती . यह राज्य में वर्तमान में उपलब्ध छोटी और लंबी अवधि की किस्मों से बेहतर है. 2024-25 के खरीफ विपणन सत्र के दौरान पंजाब भर में चावल मिलर्स ने हाइब्रिड चावल की किस्मों को मानने से इनकार कर दिया. इन मिलर्स ने तर्क दिया है कि इन किस्मों का आउट टर्न रेशियो (OTR) चावल मिलिंग प्रक्रिया की दक्षता का एक उपाय, FCI की तरफ से अनिवार्य किए गए से कम था.  जबकि FCI ने न्यूनतम 67 फीसदी OTR तय किया है, मिलर्स ने दावा किया, हाइब्रिड चावल की किस्मों का OTR 60 फीसदी से 63 फीसदी के बीच था.

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मिलर्स को होता है आर्थिक नुकसान 

इस कमी का मतलब है कि मिलर्स को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. नतीजतन साल 2024 में पंजाब सरकार को काफी विरोध के बाद मिलर्स को इन किस्मों को स्टोर करने के लिए राजी करना पड़ा. हालांकि, इस बार ऐसी स्थिति से बचने के लिए, सरकार ने बुवाई के मौसम की शुरुआत से पहले हाइब्रिड बीजों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. विशेष तौर पर साल 2019 में, पंजाब कृषि विभाग ने हाइब्रिड धान के बीजों की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि, यह बैन कम समय के लिए था और बाद में इसमें बदलाव करके उन हाइब्रिड बीजों की बिक्री की मंजूरी दे दी गई जिन्हें पंजाब में खेती के लिए केंद्र द्वारा आधिकारिक तौर पर अधिसूचित किया गया था. 

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ 

दूसरी ओर विशेषज्ञों का कहना है कि मनमाने प्रतिबंध लगाने के बजाय, पंजाब सरकार को वास्तविक और अधिसूचित हाइब्रिड बीजों की बिक्री को रेगुलेट करने पर ध्यान देना चाहिए.  इससे किसानों को सही कीमत पर और सुनिश्चित गुणवत्ता वाले बीज मिल सकेंगे. उन्होंने कहा कि ऐसी किस्मों को बहुत ज्‍यादा कीमतों पर बेचने वाले बेईमान स्थानीय डीलरों पर नकेल कसने के बजाय सरकार स्वीकृत किस्मों पर भी पूरी तरह से बैन लगाकर अपनी जिम्मेदारी से बच रही है. 
 

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