खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान की खेती की तैयारियां शुरू हो गई हैं. इसकी रोपाई से पहले नर्सरी डालनी पड़ती है. पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने कहा है कि नर्सरी डालने से पहले बीज और भूमि शोधन अवश्य कर लें. धान में जीवाणु झुलसा, जीवाणुधारी और फाल्स स्मट रोग लगता है. अगर आप इसे कंट्रोल करना चाहते हैं तो बीज शोधन करिए. आप 25 किलोग्राम बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन या 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लूपी को 8-10 लीटर पानी में रात भर भिगोकर दूसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी डालें. अगर आप जैव कीटनाशकों से बीज शोधन करना चाहते हैं तो ट्राइकोडरमा की 100 ग्राम मात्रा 25 किग्रा बीज की दर से प्रयोग कर सकते हैं.
भूमि शोधन की प्रक्रिया कर भूमि जनित रोगों व कीटों के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडरमा, ब्यूबैरिया वैसियाना बायो पेस्टीसाइडस की 2.5-3.0 किग्रा मात्रा या क्लोरपायरीफास 20 प्रतिशत ईसी 2.5-3.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. जिससे बीज एवं भूमि जनित रोगों से बचाव होता है एवं बीज का जमाव प्रतिशत भी बढ़ जाता है. बीज का चुनाव सावधानी पूर्वक करें. इसके लिए प्रमाणित बीज ही प्रयोग करें जिसमें पूर्ण जमाव-पंक्ति, प्रजातियों की शुद्वता एवं स्वस्थ होने की प्रमाणिकता होती है.
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पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि सामान्य तौर पर धान के मोटे दानों वाली किस्मों के लिए 30-35 किलोग्राम और बासमती के लिए 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है. एक हेक्टेयर में धान की रोपाई के लिए 500 वर्ग मीटर नर्सरी क्षेत्र पर्याप्त होता है. बीजों द्वारा भी फफूंद और जीवाणु जनित बीमारियां लगती हैं. इनके नियंत्रण के लिए 5.0 ग्राम इमिसान या 10.0 ग्राम बाविस्टीन और 2.5 ग्राम पोसामाइसिन या 1.0 ग्राम स्टैप्टोसाइक्लीन या 2.5 ग्राम एग्रीमाइसीन 10.0 लीटर पानी में घोल लें. इसके बाद 20-25 किलोग्राम छांटे हुए बीज को 25 लीटर उपरोक्त घोल में डुबोकर 24 घंटे के लिए पानी में भिगो कर रख दें.
इसके बाद 24-36 घंटे तक जमाव होने दें. बीच-बीच में पानी का छिड़काव करते रहें इसके बाद पानी की पतली सतह के साथ संतृप्त से गारे वाली स्थिति बनाए रखने के लिए नर्सरी क्यारियों के उपर अंकुरित बीजों को समान रूप से छिड़काव करें. जब तक पौध हरी न हो जाए, पक्षियों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए विशेष सावधानी बरती जाए तथा शुरू के 2-3 दिन अंकुरित बीजों को पुवाल से ढके रहें. इस उपचार से जड़ गलन (फुट राट), झोंका एवं पत्ती का झुलसा रोग आदि बीमारियों के नियंत्रण में सहायता मिलती है. वैसे तो बुआई का समय किस्मों के ऊपर निर्भर करता है लेकिन, 15 मई से 25 जून तक का समय बुआई के लिए उपयुक्त है.
अच्छी फसल के लिए संतुलित पोषक तत्वों के उपयोग से पौध की अच्छी बढवार, स्वस्थ और पर्याप्त पोषण मिलना जरूरी है. 1000 वर्गमीटर क्षेत्र के लिए 10 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद, 10 किलोग्राम डाइ-अमोनियम फास्फेट तथा 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट जुताई से पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने के बाद बुआई करें. फिर 10-12 दिन बाद यदि पौधों का रंग हल्का पीला हो जाए तो एक सप्ताह के अन्तराल पर दो बार 10 किलाग्राम यूरिया/1000 मीटर की दर से मिट्टी के उपरी सतह पर छिड़काव कर दें. जिससे पौध की बढ़वार अच्छी होगी.
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