प्याज की बढ़ती कीमत से आम जनता परेशान हो गई है. पिछले कुछ दिनों के अंदर इसकी रिटेल कीमतों में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. अब यह 60 से 70 रुपये किलो बिक रहा है. जबकि, कुछ हफ्ते पहले तक प्याज का औसत रेट करीब 40 रुपये किलो था. वहीं, व्यापारियों का कहना है कि प्याज की कीमतों में दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक गिरावट की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है. अगर सरकार अपने स्तर पर प्याज की आपूर्ति में कुछ सुधार करती है, तो रेट कुछ कम हो सकते हैं.
प्याज कारोबार से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि अगर सरकार अधिक मात्रा में प्याज का स्टॉक जारी करती है, तो भी कुछ हफ्ते तक इसकी कीमतें ज्यादा ही रहेंगी. उनका कहना है कि प्याज की नई फसल आने पर ही कीमतों में गिरावट आ सकती है. यानी नवंबर मध्य तक लोगों को प्याज के लिए ज्यादा रकम खर्च करने पड़ेंगे. खास बात यह है कि शनिवार को एपीएमसी में प्याज की औसत कीमत 4,400 रुपये प्रति क्विंटल थी. मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) में प्रतिदिन लगभग 1,500 टन प्याज की खपत होती है. वर्तमान में, आपूर्ति प्रतिदिन लगभग 1,100 से 1,200 टन है. जबकि, सरकार के पास 4.7 लाख टन का बफर स्टॉक है.
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मिड डे की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल बरसात के मौसम में और उसके बाद प्याज की कीमतें आसमान छूती हैं. पिछले साल अपवाद रहा, क्योंकि केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन प्याज किसानों ने निर्यात लाभ के नुकसान को लेकर विरोध किया और लोकसभा चुनाव से पहले मई में प्रतिबंध हटा दिया गया. महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले किसानों का समर्थन हासिल करने के लिए केंद्र सरकार ने अब प्याज निर्यात के लिए न्यूनतम मूल्य सीमा हटा दी है. इसके चलते कीमतों में वृद्धि ने उपभोक्ताओं को परेशान कर दिया है.
उपभोक्ता रश्मि जाधव ने कहा कि प्याज भारतीय व्यंजनों का एक अहम हिस्सा है. खासकर मांसाहारी व्यंजनों में. सावन का महीना समाप्त होने के साथ ही हमने घर पर मांस पकाना शुरू कर दिया है, लेकिन कीमतों में उछाल ने हमें बहुत प्रभावित किया है. दूसरी ओर, दादर निवासी प्रदन्या डोंगाओकर का मानना है कि प्याज की कीमतों में अस्थायी वृद्धि से उपभोक्ताओं पर बहुत अधिक असर नहीं पड़ेगा. कई लोग त्योहारी सीजन के चार महीनों में प्याज और लहसुन का उपयोग नहीं करते हैं और स्वाद में कोई बड़ा अंतर नहीं होता है. इसलिए अगर कीमतें अधिक हैं तो मैं बड़ी मात्रा में प्याज नहीं खरीदती. इसके अलावा, फलों, दूध और यहां तक कि कुल मिलाकर महंगाई की कीमतें अधिक हैं, तो केवल प्याज को ही दोष क्यों दिया जाए?
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अभी महाराष्ट्र की राजनीति में प्याज एक प्रमुख वस्तु बनी हुई है. नासिक, डिंडोरी, धुले, अहमदनगर, नंदुरबार, बारामती, बीड, लातूर, मावल, शिरूर, सोलापुर, शिरडी और उस्मानाबाद प्याज उगाने वाले क्षेत्र में आते हैं. सरकार यहां प्याज किसानों के लिए पर्याप्त काम करने में विफल रही है, जिसका असर हाल ही में हुए संसदीय चुनावों में साफ तौर पर देखा गया, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार वहां अपनी सीटें बरकरार रखने या जीतने में विफल रहे.
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