बासमती चावल बीते एक महीने से काफी चर्चा में है. अपने स्वाद और खुशबू के कारण नहीं बल्कि निर्यात से जुड़े एक सरकारी फैसले की वजह से. क्योंकि सरकार ने 1,200 यूएस डॉलर प्रति मीट्रिक टन से कम भाव वाले बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगाई हुई है. इस फैसले के बाद से निर्यातक परेशान हैं, क्योंकि दाम बढ़ने से निर्यात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. साथ ही हमारे बने बनाए बाजार पर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान कब्जा कर रहा है. वो इसलिए कि उसका बासमती चावल सस्ता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में वो हमारा प्रतिद्वंदी है. किसी देश को सस्ता चावल मिलेगा तो वो महंगा क्यों खरीदेगा? भारत में इस फैसले से पहले कभी बासमती का इतना अधिक मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस (MEP) नहीं फिक्स किया गया था. बहरहाल, अब एमईपी कम होने की उम्मीद जगी है.
ताजा अपडेट ये है कि इस मामले में फैसला बदला जा सकता है. बासमती का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति मिट्रिक टन हो सकता है. देश के बड़े बासमती एक्सपोर्टरों ने सोमवार को इस मुद्दे को लेकर केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ ऑनलाइन मीटिंग की. जिसमें बासमती एक्सपोर्टर अशोक सेठी, विजय सेतिया, राजीव सेतिया, रविंद्र पाल सिंह और रमणीक सिंह आदि मौजूद रहे. बताया गया है कि इसमें एपिडा के अधिकारी भी मौजूद थे. बैठक में शामिल एक एक्सपोर्टर ने बताया कि गोयल ने मिनिमिम एक्सपोर्ट प्राइस को 1200 डॉलर प्रति मिट्रिक टन से घटाकर 850 डॉलर करने का भरोसा दिलाया है. पूरे मामले के रिव्यू के लिए एक कमेटी पहले से ही बनी हुई है.
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सरकार के इस फैसले पर एक्सपोर्टर और बासमती किसान दोनों गुस्से में हैं. इतना एमईपी लगाने से एक्सपोर्ट प्रभावित हुआ और एक्सपोर्ट प्रभावित हुआ तो बासमती धान का दाम पिछले साल से कम हो गया. लेकिन, यह भी समझ लेना चाहिए कि आखिर सरकार ने इतना बड़ा कदम उठाया क्यों? जबकि बासमती सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में भी नहीं जाता. ज्यादातर उपज एक्सपोर्ट ही होती है.
दरअसल, सरकार का कहना है कि बासमती चावल की आड़ में गैर-बासमती सफेद चावल का अवैध निर्यात करने के मामले सुनने में आ रहे थे. घरेलू बाजार में दाम कम करने के मकसद ने सरकार ने इस कैटेगरी के चावल एक्सपोर्ट पर 20 जुलाई से ही प्रतिबंध लगाया हुआ है. ऐसी किसी भी आशंका को दूर करने और अवैध निर्यात को रोकने के लिए यह फैसला किया गया. इसी कड़ी में 1,200 डॉलर प्रति टन से कम दाम के बासमती चावल के निर्यात की अनुमति नहीं देने का आदेश हुआ.
बता दें कि भारत अपने कुल बासमती उत्पादन का करीब 80 फीसदी एक्सपोर्ट करता है. ऐसे में इसका दाम कम-अधिक एक्सपोर्ट से चढ़ता-उतरता है. निर्यातकों का कहना है कि एमईपी की वजह से 70 फीसदी पुराना स्टॉक ब्लॉक है. वो एक्सपोर्ट नहीं हो पा रहा है और ऊपर से नई फसल आने लगी है. ऐसे में अब किसानों को इसका सीधा नुकसान हो रहा है. सरकार के इस फैसले की वजह से पाकिस्तान को फायदा मिल रहा है, क्योंकि वो इंटरनेशनल मार्केट में हमसे सस्ता बासमती बेच रहा है. दुनिया में सिर्फ भारत और पाकिस्तान में ही बासमती चावल का उत्पादन होता है.
पंजाब राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के डायरेक्टर अशोक सेठी का कहना है कि 1200 डॉलर की एमईपी की वजह से देश को काफी नुकसान हो रहा है. एक्सपोर्ट के लिए यह शर्त 25 अगस्त को लगाई गई थी. इसी महीने टर्की के इस्तांबुल में लगे इंटरनेशनल फूड फेयर से इंडिया के लिए कोई आर्डर नहीं मिला. जबकि पहले यहां अच्छा ऑर्डर मिलता था. जब किसी को कम दाम में बासमती चावल मिलेगा तो फिर वो महंगा क्यों खरीदेगा. सेठी का कहना है कि भारत ने पिछले साल 4.5 मिलियन टन बासमती निर्यात किया था, जिसकी वैल्यू 38500 करोड़ रुपये से थी.
लेकिन, अब सरकार की 1200 डॉलर प्रति टन वाली इस पॉलिसी के चलते पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को एक्सपोर्ट में फायदा मिलने लगा है. देखना यह है कि केंद्रीय मंत्री गोयल के आश्वासन के बाद एमईपी कब कम होता है. फिलहाल, इस बैठक के बाद एक्सपोर्टरों ने राहत की सांस ली है. उनका कहना है कि एमईपी कम होते ही मंडियों में बासमती धान की नई उपज का दाम बढ़ जाएगा. इससे किसानों को फायदा होगा.
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