दूसरे देशों से आयात की जाने वाली चेरी कश्मीर के किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है और इनमें भी इटली की चेरी उनके लिए फायदे का सौदा बन गई है. जहां पारंपरिक किस्में कटाई का इंतजार कर रही हैं तो आयातित किस्मों से उन्हें फायदा हो रहा है. घाटी भर के उत्पादकों की मानें तो इन नई किस्मों को अच्छे दाम मिल रहे हैं. इस समय तैयार कुछ पारंपरिक किस्में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, लेकिन मुख्य पारंपरिक कटाई अभी शुरू नहीं हुई है. उत्पादकों की मानें तो नई किस्में कुरकुरेपन, रंग और पोषण मूल्य के मामले में पारंपरिक किस्मों से मेल नहीं खाती हैं. हालांकि बारिश से उन किस्मों को कम नुकसान होता है और इसलिए उनकी बेहतर कीमत मिलती है.
कश्मीर न्यूज ऑब्जर्वर (केएनओ) ने किसानों के हवाले से लिखा है कि पारंपरिक किस्मों को अक्सर कम बारिश में भी नुकसान हो जाता है. इसका नतीजा है कि बाजार में कीमतें कम हो जाती हैं. दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में चेरी की खेती करने वाले किसान राशिद अहमद ने बताया कि जहां पारंपरिक किस्मों को अक्सर कम से मध्यम तीव्रता वाली बारिश से नुकसान पहुंचता है तो वहीं नई किस्मों को सिर्फ बहुत भारी बारिश से ही नुकसान होता है. उन्होंने कहा कि पारंपरिक किस्में एक साथ पकती हैं. इससे सप्लाई और डिमांग की चेन पर असर पड़ा है. साथ ही किसानों को उनकी कम शेल्फ लाइफ की वजह से उन्हें कम दरों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है. नई किस्में अलग-अलग अंतराल पर पकती हैं, जिससे सप्लाई और डिमांड बनी रहती है और फायदा भी ज्यादा होता है.
यह भी पढ़ें-Wheat Crisis: रूस-यूक्रेन ने दुनिया में फिर बढ़ाया गेहूं संकट, समझिए क्यों बढ़ रहे हैं दाम?
एक और किसान आसिफ अहमद ने कहा कि वर्तमान में कटाई के लिए तैयार पारंपरिक किस्मों में सियाह किस्म के साथ-साथ नई इटैलियन किस्में भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि सभी पिछले साल की तरह ही अच्छा रिटर्न दे रही हैं. उनका कहना था कि चेरी करीब 150 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिक रही है, जो बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन इसे अच्छा रिटर्न माना जाता है. किसानों की मानें तो पारंपरिक किस्मों की कटाई आमतौर पर जून के मध्य से जुलाई के पहले सप्ताह तक की जाती है. जबकि नई किस्में इस मौसम को करीब दो महीने तक बढ़ा देती हैं. यह लंबा मौसम स्थानीय और गैर-स्थानीय दोनों तरह के मजदूरों के लिए ज्यादा रोजगार के अवसर लेकर आता है.
यह भी पढ़ें-मार्केट में अच्छे मिल रहे कागजी नींबू के रेट, अगर पौधे पर फट रहे हैं फल तो तुरंत करें ये उपाय
फ्रूट मंडी शोपियां के अध्यक्ष पीर मुहम्मद अमीन ने केएनओ को बताया कि चेरी के रेट वर्तमान में अनुकूल हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि पारंपरिक किस्मों के साथ भी यही रुझान जारी रहेगा. अमीन ने कहा, 'यह अभी शुरुआती चरण है और पारंपरिक किस्मों के पीक सीजन के करीब आने के साथ, निरंतर मांग और अच्छे मूल्यों की उम्मीद है. फ्रूट ग्रोवर्स एसोसिएशन कश्मीर के एक सदस्य ने बताया कि करीब 85 प्रतिशत चेरी पारंपरिक हैं, जिनमें से अधिकांश अभी भी कटाई का इंतजार कर रही हैं. उगाई जा रही किस्मों में मखमली, सियाह, अवल नंबर, इटली, जैदी, हॉलैंड, डबल, मिश्री, स्प्लेंडर और स्टीला शामिल हैं.
यह भी पढ़ें-नेफेड को प्याज न बेचें किसान, कांदा उत्पादक संगठन ने महाराष्ट्र के किसानों से की अपील
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, कश्मीर में 15 लाख मीट्रिक टन से अधिक चेरी का उत्पादन होता है. इस आंकड़ें के साथ ही यह देश में सबसे ज्यादा चेरी उत्पादन करने वाला क्षेत्र बन जाता है. जम्मू और कश्मीर में चेरी की खेती के तहत कुल 2,317 हेक्टेयर भूमि है जिसमें शोपियां, गंदेरबल और श्रीनगर मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today