मध्य प्रदेश के विदिशा जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर करैया हाट गांव के आकाश बघेल ने 10 बीघे में लहसुन की खेती की थी. उनको उम्मीद थी कि यह फसल बंपर मुनाफा देगी. लेकिन हो गया उल्टा. बघेल का कहना है कि वो अपनी लागत भी नहीं निकाल पाए हैं. परेशान होकर इस बार उन्होंने लहसुन की खेती छोड़कर गेहूं का साथ पकड़ लिया है. मध्य प्रदेश के कई जिलों में किसान सिर्फ 2 से 5 रुपये प्रति किलो के औसत भाव पर लहसुन बेचने को मजबूर हैं. लहसुन उत्पादन के लिए मशहूर उज्जैन और देवास जिले में किसानों का बहुत बुरा हाल है. उधर, एमपी से सटे महाराष्ट्र में काफी किसानों को महज 2-4 रुपये प्रति किलो के भाव पर प्याज बेचना पड़ रहा है.
छह जनवरी को मध्य प्रदेश की देवास मंडी में न्यूनतम दाम 200, अधिकतम 500 और औसत भाव 300 रुपये प्रति क्विंटल रहा. जबकि शाजापुर की कालापीपल मंडी में न्यूनतम भाव 390 रुपये और मंदसौर में 500 रुपये प्रति क्विंटल रहा. राजस्थान और महाराष्ट्र में भी लहसुन को कोई पूछने वाला नहीं था लेकिन, अब दाम में थोड़ा सुधार हुआ है. दोनों सूबों में अब अधिकांश किसानों को 1000 से 1400 रुपये प्रति क्विंटल तक का दाम मिल रहा है. लेकिन, मध्य प्रदेश में हालात नहीं सुधरे.
सवाल यह है कि आखिर लहसुन की ऐसी दुर्गति क्यों हो रही है. जबकि इसे मसालों की श्रेणी में रखा गया है. इसके लिए आंकड़ों का विश्लेषण करना होगा. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020-21 में देश में 3,92,000 हेक्टेयर में लहसुन की खेती हुई थी. जबकि यह 2021-22 में बढ़कर 4,01,000 हेक्टेयर हो गई. यानी 9000 हेक्टेयर की वृद्धि. प्रोडक्शन की बात करें तो साल 2020-21 में 31,90,000 मिट्रिक टन लहसुन पैदा हुआ था. जबकि 2021-22 में 32,77,000 मिट्रिक टन का उत्पादन हुआ है. यानी एक साल में ही उत्पादन 87,000 मीट्रिक टन बढ़ गया.
साफ है कि बुवाई और उत्पादन दोनों में भारी उछाल से मंडियों में आवक बढ़ गई और लहसुन का दाम इतना कम हो गया. हालांकि, कुछ किसानों का आरोप है कि लहसुन का एक्सपोर्ट नहीं हो रहा इसलिए दाम में इतनी गिरावट आ गई है. मध्य प्रदेश चूंकि लहसुन का सबसे बड़ा उत्पादक है इसलिए वहां के किसानों का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है.
बहरहाल, लहसुन उत्पादक किसान आकाश बघेल कहते हैं कि 10 बीघे की खेती में करीब 4 लाख रुपये खर्च हो गए. जब बुवाई हुई थी तब 10 क्विंटल बीज पर ही डेढ़ लाख रुपये लग गए थे. अब हमें बाजार में दाम 200 से 400 रुपये प्रति क्विंटल का ही मिल रहा है. हम अगर 100 क्विंटल लहसुन भोपाल की मंडी में ले जाएंगे तो 15000 रुपये तो ढुलाई पर ही खर्च हो जाएंगे. ऐसे में इतने कम दाम पर कौन ढुलाई पर इतना खर्च करे.
बघेल ने बताया कि कहा कि अप्रैल 2022 में खेत से फसल निकालकर हम लोग घर ले आए थे. तब से अब तक तीन बार छंटाई हो चुकी है. क्योंकि लहसुन खराब होता रहता है. करीब 30 फीसदी लहसुन रखे-रखे अंकुरित होने लगा है. अब तक सही भाव के इंतजार में काफी लहसुन घर पर ही पड़ा हुआ है. इतने कम भाव ने इसकी खेती से मोहभंग कर दिया और इस साल हमने गेहूं की बुवाई कर दी. इसमें अगर फायदा नहीं होगा तो नुकसान भी नहीं होगा.
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