
अगर आप धान की खेती करते हैं. लेकिन अभी तक से आपने से धान की नर्सरी नहीं लगाई है. तो आपके लिए यह पूरी खबर पढ़ना बेहद जरूरी है. क्योंकि खरीफ सीजन की शुरुआत हो चुकी है. इसके साथ ही नर्सरी तैयार करने का काम शुरू हो चुका है. किसानों ने धान का बीज डालना शुरू कर दिया है. 25 मई से रोहिणी नक्षत्र शुरू होते ही किसान धान की नर्सरी लगाना शुरू कर देते हैं. लेकिन इस साल कई किसान हीट स्ट्रोक की वजह से अभी तक धान की नर्सरी नहीं लगा सके हैं. ऐसे किसानों को धान का बीज डालने से पहले खेत और बीज का सही तरीके से उपचार कर लेना चाहिए. भोजपुर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व हेड डॉ प्रवीण कुमार द्विवेदी कहते हैं कि जिन किसानों ने अभी तक धान की नर्सरी नहीं लगाई है, वह अब बीज डालने के लिए तैयारियां शुरू कर दें. साथ ही किसान धान का बीज डालने से पहले खेत व बीज का सही तरह से उसका उपचार जरूर करें.
किसान तक से बातचीत के दौरान कृषि वैज्ञानिक डॉ प्रवीण कुमार द्विवेदी कहते हैं कि धान की नर्सरी डालने के लिए वैसे खेत का चयन करना चाहिए, जिसमें के खरपतवार कम से कम हो. अगर किसी कारणवश खेत में खरपतवार की कुछ आशंका देखने को मिलती है. तो वैसी परिस्थिति में खेत की एक बार अच्छी तरह से सिंचाई कर देनी चाहिए, ताकि जितने भी अवांछित बीज हैं. वह सारे अंकुरित होकर निकल जाएं. उसके बाद खेत की जुताई कर देनी चाहिए. आगे वह कहते हैं कि बीज डालने से पूर्व भूमि की उर्वरा शक्ति व रोग मुक्त बनाए रखने के लिए वे एक कट्ठा जमीन (3 डिसमिल) में कम से कम 1.5 किलोग्राम डीएपी 2 किलोग्राम पोटाश और साथ में चार से पांच टोकरी सड़ी हुई गोबर की खाद (करीब 25 से 30 किलो) और कम से कम 10 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट के साथ 2 से 3 किलोग्राम नीम की खली अच्छी तरह से मिला कर खेत में डाल दें. उसके बाद खेतों को अलग-अलग बेड के रूप में बनाने के बाद बीजों को डालें.
धान के बिचड़े डालने से पूर्व खेत को 4 फीट चौड़ा और लंबाई अपने जमीन के उपलब्धता के अनुसार रखनी चाहिए. प्रति बेड के बीच डेढ़ फीट का अंतराल रखना चाहिए. डॉ प्रवीण कुमार द्विवेदी के मुताबिक जिन खेतों के पौधशाला में पिछले साल बैक्टीरियल बीमारी (दखिनहां) का प्रकोप देखने को मिला है. उस तरह की खेतों में एक सौ ग्राम ब्लीचिंग पाउडर कम से कम 4 से 5 लीटर पानी में घोलकर बनाकर रखना चाहिए. घोल को नर्सरी में पानी डालने के बाद खेत में डाल देना चाहिए. इससे खेतों में लगे बैक्टीरिया का संक्रमण समाप्त हो जाता है.
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कृषि वैज्ञानिक डॉ द्विवेदी कहते हैं कि बीजों को पौधशाला में डालने से पूर्व इनका बीज उपचार करना बेहद जरूरी होता है. 30 किलोग्राम बीज के लिए कम से कम सौ ग्राम कॉपर ऑक्सिक्लोराइड और 6 ग्राम स्ट्रप्टोसाइक्लिन को पानी में मिलाकर बीजों को 5 से 6 घंटे तक फूलने के लिए छोड़ देना चाहिए. वहीं अगर खेतों में कीड़ों का प्रकोप पूर्व में देखने को मिला है. तो इस परिस्थिति में बीज उपचार के घोल में 250 मिलीलीटर 20% का क्लोरपीरिफॉस का प्रयोग करना चाहिए. वहीं ऊपर की दवाओं का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जाएगा. आगे कहते हैं कि 5 से 6 घंटे के बाद बीजों को निकालकर किसी छायादार स्थान पर प्लास्टिक की चादर पर फैलाकर गीले जूट के बोरे से ढक देना चाहिए.
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ प्रवीण कुमार द्विवेदी के अनुसार धान के बीज का उपचार करने के बाद उसे जूट के बोरे से ढक देना चाहिए. उसके 24 घंटे के बाद अगर देखने को मिलता है कि बाहर में जितने भी बीज थे, वह सारे अंकुरित हो गए हैं, लेकिन अंदर वाले बीज अंकुरित नहीं हुए, तो इस अवस्था में बीजों को अच्छी तरह से मिलाकर दोबारा से हल्का पानी का छींटा देकर पुनः गीले जूट के बोरे से एक दिन के लिए ढक कर रखना चाहिए. अगर किसी कारण से बीजों में कोई कमी होगी तो बीजों का अंकुरण प्रतिशत बहुत कम होगा या नहीं होगा. इन बीजों को आप हटा सकते हैं. दूसरे बीजों से इसी प्रकार दोबारा तैयारी कर लें. अगर उनका अंकुरण प्रतिशत बहुत अच्छा है. तो आप बीजों को पौधशाला में डाल सकते हैं. इस तरह का प्रयोग आप छोटे रूप में भी कर सकते हैं. बीज डालने के एक दिन पहले नर्सरी को पानी से भर देना चाहिए. अगर किसी कारणवश पौधशाला में पानी की कमी देखने को मिले, तो बीज डालने के दो-तीन घंटे पहले पौधशाला में हल्का पानी दूसरी बार भी डाल देना चाहिए. कम से कम 2 से 3 इंच पानी पौधशाला में बीज डालने के समय होना चाहिए.
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पौधशाला के लिए जो बेड बनाया जाता है और दोनों बेड के बीच डेढ़ फीट छोड़ी गई जमीन के रास्ते ही बीजों को मुख्य बेड पर डालना चाहिए. अगर बेड के ऊपर चलकर बीज डालते हैं. तो पैर के दबाव से पौधशाला में पूरे खेतों में गड्ढे बनेंगे जिसमे बीज इकट्ठे होंगे और वह सड़ करके पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. वहीं संध्या होते होते आपके खेतों से पानी खत्म हो जाना चाहिए. अगर किसी परिस्थिति में पानी खत्म नहीं होता है, तो वैसी परिस्थिति में आप पौधशाला के सबसे बाहरी हिस्से में आठ से दस जगहों पर थोड़ी-थोड़ी मिट्टी को दबा दें, जिससे कि धीरे-धीरे जल बाहर निकल जाए. अगर एक जगह से जल निकास का मार्ग बनाएंगे. तो आपके बीच भी पानी के बहाव के कारण इधर से उधर होंगे और नालियों में जा सकते हैं, जिससे भविष्य में आपको कठिनाई होगी.
कुछ क्षेत्रों में धान की नर्सरी में जबरदस्त घास का प्रकोप देखने को मिलता है. इन खरपतवार के कारण कई बार बिचड़ों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है. इसके नियंत्रण के लिए जरूरत के अनुसार पाइराजोसल्फ्यूरान ईथाइल घुलनशील चूर्ण का उपयोग करना चाहिए. इस दवा को पानी में हल्का घोलकर और बालू में मिलाकर छायादार जगह में रख देते हैं. हल्का सूख जाने के बाद इसका छिड़काव किया जाता है. यह चौड़ी पत्ती वाली खरपतवार और फसलों में उगने वाली घास को नियंत्रित करता है. इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि बिना अंकुरित किए हुए धान में खरपतवार नासी का प्रयोग करने से धान अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. अतः पौधशाला में धान के बीज अंकुरित करके ही डालना सर्वथा उचित रहता है. जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएं तो 10 से 12 दिनों के बाद ऊपर के चिन्ह क्षेत्रफल में 750 ग्राम यूरिया का उपरिवेशन अवश्य करें. पुनः इसे 10 दिनों के बाद दोहरा सकते हैं. अगर टिड्डी परिवार के कुछ कीड़े धान की पत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हों, वैसी परिस्थिति में इमामेक्टिन बेंजोएट का 0.5 ग्राम अथवा इमिडाक्लोप्रिड का 0.5 मिलीलीटर घोल प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधों के ऊपर प्रयोग करना चाहिए.
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