फरवरी का आधा महीना बीत चुका है. इसके साथ ही देश में धीरे-धीरे सर्द भी जा रही है. मध्य फरवरी से देश में दलहन और तिलहन फसलों की कटाई शुरू हो जाती है. फसलों की कटाई जलवायु और सर्दियों के प्रभाव पर निर्भर करती है. इस साल का मौसम मिला-जुला रहा है, शुरुआती शीतलहर और घने कोहरे की वजह से अलसी की पैदावार उम्मीद के मुताबिक नहीं देखी जा रही है. कहीं-कहीं तो किसानों की लागत पूंजी भी नहीं निकल पा रही है. ऐसे में आइए जानते हैं अलसी की पैदावार में कमी आने के कारण क्या हैं साथ ही यह भी जानेंगे कि अलसी को पाले से किस तरह से बचाया जा सकता है.
अलसी एक तिलहन फसल है. अलसी की खेती रबी सीजन में की जाती है और मध्य फरवरी से मार्च महीने के मध्य तक काट ली जाती है. 2-3 सिंचाई और सामान्य जलवायु में होने वाली अलसी इस बार मौसम की भेंट चढ़ गई है. कहीं-कहीं इसकी फसल पूरी तरह से चौपट हो गई है. दरअसल अलसी बहुत नाजुक फसलों में गिनी जाती है. इसके लिए अधिक जलभराव या शीतलहर नुकसानदायक होती है. मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में इस साल अलसी की खेती भी खराब मौसम की भेंट चढ़ गई और परिपक्व होने से पहले ही पौधों में लगे फूल झड़ने लगे. पाले की वजह से पौधों में दाने नहीं लग पा रहे हैं.
अलसी बहुत ही नाजुक फसलों में से एक है. इसलिए शीतलहर और पाले का प्रभाव इस पर बहुत अधिक पड़ता है. अलसी को पाले से बचाने के लिए सबसे जरुरी है कि इसकी खेती समय से की जाए पिछड़ी खेती में पौधे छोटे रह जाते हैं और पाले का प्रकोप नहीं झेल पाते. इसके अलावा सिंचाई के दौरान खेत में कभी भी जलभराव नहीं करना चाहिए. हल्की सिंचाई ही काफी होती है. इसके साथ-साथ अलसी के बीच सरसों की बुआई करें जिससे अलसी के छोटे पौधों को अच्छा कवर मिलेगा. हालांकि, देश के अलग-अलग हिस्सों में अलसी की स्थिति और पैदावार अलग अलग रही है. मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों जहां एक ओर अलसी पाले की चपेट में आ गई तो वहीं कुछ जगहों पर अलसी की खेती ठीक ठाक देखी गई है.
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