Disease Management: चने की फसल में होने वाले 2 प्रमुख रोग और उसका नियंत्रण

Disease Management: चने की फसल में होने वाले 2 प्रमुख रोग और उसका नियंत्रण

चना, जिसे आमतौर पर 'चना' या बंगाल चना के नाम से जाना जाता है, भारत में सबसे महत्वपूर्ण दलहन फसल है. दालों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में चने की हिस्सेदारी लगभग 38 प्रतिशत है और यह भारत के कुल दाल उत्पादन में लगभग 50 प्रतिशत का योगदान देता है. इसका उपयोग मानव उपभोग के साथ-साथ जानवरों को खिलाने के लिए भी किया जाता है.

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Disease Management: चने की फसल में होने वाले 2 प्रमुख रोग और उसका नियंत्रणचने की फसल में इन रोगों का खतरा!

भारत में चने की खेती 7.54 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है. जिससे हर साल औसतन 5.75 मिलियन टन उपज प्राप्त होती है. भारत में चने की खेती सबसे अधिक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मैदानी जिलों में की जाती है. यह सबसे महत्वपूर्ण दलहन फसल में से एक है. यह उन पहली दलहानी फसलों में से एक है जो एशिया और यूरोप दोनों जगहों पर प्राचीन काल से उगाई जाती रही हैं. भारत, पाकिस्तान, इथियोपिया, बर्मा और तुर्की मुख्य चना उत्पादक देश हैं. उत्पादन और रकबा के मामले में, पाकिस्तान दुनिया में दूसरे स्थान पर है और उसके बाद भारत है.

यहां पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र प्रमुख चना उत्पादक राज्य हैं. चना के खेती कर रहे किसानों के मन में कीटों और रोगों का डर सबसे अधिक बना रहता है. ऐसे में आज इस लेख में हम बात करेंगे चने की फसल में लगने वाले प्रमुख्य रोग चना विल्ट और चना स्क्लेरोटिनिया ब्लाइट रोग और उसके नियंत्रण के बारे में.

 चना विल्ट

चने के पौध चना विल्ट बीमारी का मुख्य कारण फुसैरियम ऑक्सीस्पोरम f.Sp. सिसरो है. अधिकांश चना उगाने वाले स्थानों में इस बीमारी से काफी नुकसान होता है.रोग के लक्षण अंकुर अवस्था और पौधे के विकास के बाद के चरण दोनों में देखे जा सकते हैं. पत्तियाँ सूखने से पहले पीली पड़ने लगती हैं. जिस वजह से पौधे सूख जाते हैं और पीले भी हो जाते हैं. जड़ें काली हो जाती हैं और बिखर जाती हैं.

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चना विल्ट को नियंत्रित करने का तरीका

  • कार्बेन्डाजिम को 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों पर लगाया जाता है. या तीन ग्राम कार्बोक्सिन और थीरम प्रति किलोग्राम बीज.
  • सी-214, अवरोधी, उदय, बीजी-244, पूसा-362, जेजी-315, फुले जी-5, और अधिक प्रकार के रोग प्रतिरोधी क़िस्मों का चयन करें.
  • तीन से चार वर्षों के लिए, उन स्थानों पर चना उत्पादन ना करें जहां चना विल्ट का प्रकोप हुआ हो.
  • यदि संभव हो तो चने की बुआई अक्टूबर के तीसरे सप्ताह से पहले ना करें.

चना स्क्लेरोटिनिया ब्लाइट

चने के पौध में इस रोग का खतरा स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटोरियम नामक फंगस की वजह से होता है. जड़ों को छोड़कर, पौधे का सभी भाग रोग से प्रभावित होता है. प्रभावित होने वाले पौधे पहले पीले, फिर भूरे और अंत में सूख जाते हैं. 

चना स्क्लेरोटिनिया ब्लाइट को नियंत्रण करने का तरीका

  • केवल स्वस्थ, स्क्लेरोशिया मुक्त बीजों का ही प्रयोग करें.
  • ऐसी किस्में उगाएं जो रोग प्रतिरोधी हों, जैसे जी-543, गौरव, पूसा-261, आदि.
  • कटाई के बाद, अस्वास्थ्य पौधों को खेत में सड़ने के लिए नहीं ना छोड़ें. इसके बजाय, उन्हें जलाकर देना चाहिए.
  • 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ब्रासीकोल और कैप्टान जैसे फफूंदनाशकों के मिश्रण से मिट्टी का उपचार करें.
  • गर्मी के समय इन ज़मीनों पर गहरी जुताई करें.   
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