Diseases in Gram Crop: चने की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन

Diseases in Gram Crop: चने की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन

चने की खेती करने वाले किसानों की फसल को बहुत से रोग प्रभावित करते हैं जिससे उत्पाद की मात्रा व गुणवत्ता घट जाती है. ऐसे में आइए आज जानते हैं रोगों का उचित प्रबंधन कैसे करें?

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Diseases in Gram Crop: चने की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका प्रबंधनचने की फसल

भारत चने के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है. विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 65 प्रतिशत (9 मिलियन टन) हिस्सा भारत में उत्पादित किया जाता है. देश में कई राज्यों में चना की खेती की जाती है. वही, दलहनी फसलों में चने का तीसरा स्थान है जिसकी खेती की जाती है. चना प्रोटीन का बहुत अच्छा स्त्रोत होता है. चने का सेवन करने से दिल, कैंसर व मधुमेह का जोखिम कम हो जाता है. हालांकि चने की खेती करने वाले किसानों की फसल को बहुत से रोग प्रभावित करते हैं जिससे उत्पाद की मात्रा व गुणवत्ता घट जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं रोगों का उचित प्रबंधन कैसे करें?

चने की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन

चने की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन निम्नलिखित हैं-

उखेड़ा रोग के लक्षण: उखेड़ा रोग मृदा तथा बीज जनित रोग है. जोकि फफूंद की वजह से होता है.  आमतौर पर यह रोग अंकुरित पौधों व फूल खिलने की अवस्था में पौधों को प्रभावित करता है. वही इसके लक्षण बुवाई के 3 हफ्तों बाद देता है. इस रोग की वजह से पत्ते पीले पड़कर सूख जाते हैं और मुरझाने के साथ-साथ गिर जाते हैं.
 
फसल प्रबंधन: रोग प्रतिरोधक किस्में जैसे- एच.सी.1, एच.सी. 3, एच.सी. 5, एच.के. 1, एच.के. 2, सी.214, उदय, बी.जी. 244, पूसा- 362, जे जी- 315, फूले जी- 5, डब्ल्यू आर – 315 आदि की बुवाई करें. खेत में ज्यादा मात्रा में हरी व जैविक खाद डालें. इसके अलावा बुवाई से पूर्व बीजोपचार करें. जिन खेतों में उखेडा रोग की ज्यादा समस्या है, वहां चने की बुवाई 3 से 4 साल तक बंद कर देनी चाहिए.
 
रतुआ रोग के लक्षण: रतुआ रोग के शुरुआती लक्षण चने के पत्तों पर छोटे, गोलाकार, भूरे व चूर्णित धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं जोकि बाद में मिल जाते हैं.
 
फसल प्रबंधन: सिफारिश की हुई रोग प्रतिरोधी किस्म जैसे कि गौरव उगाएं. खेत में यह रोग दिखाई देने पर अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव करें. खेत को खरपतवार मुक्त रखें.
 
एस्कोकाइटा ब्लाईट रोग के लक्षण: एस्कोकाइटा ब्लाईट रोग एक बीज जनित रोग है जोकि फफूंद की वजह से होता है. आमतौर पर यह रोग फूल खिलने व फली बनने की अवस्था में पौधों पर दिखाई देते हैं.
 
फसल प्रबंधन: रोग प्रतिरोधक किस्में जैसे कि सी-235, एच सी-3 या हिमाचल चना-1 की बुवाई करें. सिर्फ प्रमाणित बीज का ही बुवाई करें. बुवाई से पहले बीजोपचार जरूर करें.
 
सूखा जड़ गलन के लक्षण: सूखा जड़ गलन रोग बीज व मिट्टी जनित रोग है. वहीं, यह रोग फसल को फूल खिलने व फली बनने की अवस्था में प्रभावित करता है. संक्रमित पौधों की पत्तियां झड़ जाती हैं.
 
फसल प्रबंधन: रोग प्रतिरोधक किस्में जैसे कि सी एस जे 515, एच सी 3, एच सी 5, एच के 1 या एच के 2 की बुवाई करें. जिस खेत में जड़ गलन की अधिक समस्या हो, उस खेत में चने की खेती नहीं करनी चाहिए.
 
आर्द्र जड़ गलनके लक्षण: यह रोग फफूंद की वजह से होता है जो कि अकुंरण के समय पर पौधों को प्रभावित करती है.
 
रोग प्रबंधन: खेत में अधिक नमी नहीं रखें. बुवाई से पहले खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें. बुवाई से पहले बीजोपचार जरूर करें.

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