ब्लैक थ्रिप के संक्रमण के चलते आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मिर्च की फसल पर भी असर पड़ा है. हालांकि, इस संक्रमण से निपटने के लिए विश्व स्तरीय तैयारी शुरू कर दी गई है. इस बीच खबर है कि ताइवानी संगठन वर्ल्ड वेजिटेबल सेंटर ने मिर्च की नौ किस्मों को विकसित किया है, जो ब्लैक थ्रिप्स संक्रमण का सामना कर सकती हैं. यानी इन किस्मों के ऊपर ब्लैक थ्रिप संक्रमण का कोई असर नहीं पड़ेगा. अगर किसान इसकी खेती करते हैं, तो उन्हें बंपर उत्पादन मिलेगा.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना मिलकर 20 लाख टन मिर्च का उत्पादन करते हैं. लेकिन दोनों राज्यों में मिर्च का उत्पादन पिछले तीन-चार वर्षों में प्रभावित हुआ है, क्योंकि काले थ्रिप्स ने फसल को काफी प्रभावित किया है. यही वजह है कि ताइवानी संगठन को मिर्च के उन नौ किस्मों का इजाद करना पड़ा, जसके ऊपर थ्रिप रोग का कोई असर नहीं पड़ेगा. ऐसे ब्लैक थ्रिप एक ऐसा संक्रमण है, जो बहुत ही तेजी के साथ फैलता है. इससे फसलों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है, जिससे किसानों को आर्थिक हानि होती है.
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ब्लैक थ्रिप्स, जिसे नल्ला तमारा पुरुगु (तेलुगु) के नाम से भी जाना जाता है. भारत में पहली बार 2015 में रिपोर्ट किया गया था और पिछले तीन वर्षों में इसने आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात और केरल में मिर्च की फसलों को बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचाया है.
ताइवानी संगठन वर्ल्ड वेजिटेबल के एक अधिकारी ने कहा कि व्यापक अनुसंधान और क्षेत्रीय परीक्षणों के बाद हमने मिर्च की नौ ऐसी किस्मों की पहचान की है, जो ब्लैक थ्रिप के संक्रमण का असानी से मुकाबला कर सकता है. उन्होंने कहा कि अब हैदराबाद के मैदानी इलाकों में उनका परीक्षण किया जा रहा है. ब्लैक थ्रिप्स के खिलाफ लड़ाई को व्यापक आधार देने के लिए, एपीएसए और वर्ल्डवेज ब्रीडिंग कंसोर्टियम ने 'मिर्च में थ्रिप्स के लिए मेजबान प्रतिरोध का विकास' नामक एक विशेष परियोजना भी शुरू की है. मध्य एशिया में एसोसिएट वैज्ञानिक (काली मिर्च प्रजनन) मनोज कुमार एन ने कहा कि उनके शोध ने मिर्च की किस्मों की पहचान की गई है, जो काफी रोग प्रतिरोध हैं.
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बता दें कि पिछले साल महाराष्ट्र में मिर्च की फसलों पर कीटों का अटैक बढ़ गया था. इससे फसल के उत्पादन में गिरावट आई थी. यहां के भंडारा जिले ब्लैक थ्रिप नामक कीट और बोकड़ा बीमारियों का मिर्च की फसल पर भारी असर पड़ा था. इससे मिर्च की गुणवत्ता खराब हो गई थी और उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की गई थी. वहीं, व्यापारियों ने भी मिर्च की खरीद से मुंह मोड़ लिया था. ऐसे में किसानों को काफी घाटा हुआ था.
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