एमएसपी गारंटी का कानून बनाने की मांग को लेकर राजस्थान के किसानों ने 'गांव बंद' आंदोलन के बाद एक और बड़ा फैसला लिया है. इसके तहत 1 से 15 मार्च तक सरसों नहीं बेचने का निर्णय लिया है. यदि किसी व्यापारी को सरसों खरीद करनी है तो उसे कम से कम 6000 रुपये प्रति क्विंटल से बोली शुरू करनी होगी. आंदोलन की अगुवाई किसान पंचायत करेगा. इसके लिए सूबे के सरसों उत्पादक 21 जिलों में अभियान चलाया गया है. इस सरसों सत्याग्रह का मकसद किसानों को व्यापारियों के शोषण से बचाना है. पिछले साल राजस्थान के किसान सरकारी बदइंतजामी की वजह से एमएसपी से कम दाम पर सरसों बेचने पर मजबूर हुए थे, ऐसे में उन्होंने इस साल सरसों सत्याग्रह करके सबक सिखाने का फैसला किया है.
बहरहाल, तिलहन फसलों में अहम स्थान रखने वाली सरसों की सरकारी खरीद की तैयारियां शुरू हो गई हैं. केंद्र सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2025-26 के लिए सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 5950 रुपये तय किया है. इस बार सरकार ने इसकी एमएसपी में 300 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया है. लेकिन, इसकी खरीद को लेकर सबसे बड़े उत्पादक सूबे राजस्थान के किसानों के मन में कुछ सवाल हैं. क्योंकि, पिछले कई साल से खरीद में गड़बड़ी हो रही है, खरीद का टारगेट नहीं पूरा हो रहा है, जिसकी वजह से किसानों को अपनी उपज औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
इस साल किसान महापंचायत ने राज्य के सहकारिता मंत्री को पत्र लिखकर हर किसान से रोजाना 40 क्विंटल सरकारी खरीद करने की मांग की है. अभी सरकार एक किसान से एक दिन में सिर्फ 25 क्विंटल सरसों ही खरीदती है. जिससे किसानों को परेशान होना पड़ता है. किसान महापंचायत ने सभी गांवों में सहकारी समितियों को खरीद केंद्र बनाने की भी मांग की है, ताकि किसानों को सरसों बेचने दूर न जाना पड़े.
राजस्थान देश का सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है. यहां पर देश का 48 फीसदी सरसों पैदा होता है. केंद्र सरकार ने राज्य के कुल उत्पादन का कम से कम 25 फीसदी तिलहन एमएसपी पर खरीदने का नियम बनाया हुआ है, इसके बावजूद पिछले सीजन में राजस्थान ने मुश्किल से 10 फीसदी ही सरसों खरीदा. इसकी वजह से किसानों को मजबूरी में व्यापारियों को औने-पौने दाम पर सरसों बेचनी पड़ी. तिलहन जैसी महत्वपूर्ण फसल होने के बावजूद किसानों को एमएसपी भी नहीं मिला.
राजस्थान में किसान महापंचायत से जुड़े रामेश्वर प्रसाद चौधरी ने कहा कि शुरुआत में प्रति किसान प्रति दिन सरसों 25 क्विंटल खरीदी जाती है. फिर किसानों के विरोध के बाद उसे 40 क्विंटल कर दिया जाता है. ऐसे में हमारी मांग है कि शुरुआत से ही ऐसा नियम बना दिया जाए, ताकि किसानों को दिक्कत न हो और सरसों की सरकारी खरीद बढ़ सके. खरीद व्यवस्था हर ग्राम सेवा सहकारी समिति में की जाए. ऐसा होगा तो किसान अधिक दूरी एवं लाईनों में लगने की परेशानी से बच जाएंगे. इससे किसानों के खर्च में कमी भी आएगी. ग्राम सेवा सहकारी समितियां करोड़ों का अल्पकालीन ऋण बांटने के साथ-साथ खाद-बीज और कीटनाशक का भी वितरण करती आ रही हैं.
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