बासमती की कम कीमतों को लेकर किसानों का विरोध जारी है. एक तरफ जहां इस बार बासमती की उपज अच्छी हुई है इससे किसान काफी खुश हैं पर उचित कीमतें नहीं मिलने के कारण उनकी परेशानी बढ़ गई है. बासमती की उचित कीमतें नहीं मिलने को लेकर किसान मजदूर संघर्ष समिति के आह्वान पर किसानों ने पंजाब की मंडियों में बासमती की कम कीमतों का विरोध किया और विरोध के तौर पर अपनी फसल को सड़कों पर फेंक दिया. इस दौरान विरोध कर रहे किसानों ने सरकार से उचित दाम सुनिश्चित करने की मांग की.
इतना ही नहीं पहले तो किसानों से डिप्टी कमिश्नर के ऑफिस के बाहर बासमती फेंककर अपना विरोध प्रदर्शन किया. इसके बाद ट्रैक्टर ट्रॉलियों का काफिला शहर के विभिन्न सड़कों से गुजरा और जगह-जगह पर किसानों ने सड़कों पर बासमती को फेंक दिया. कीमत नहीं मिलने को लेकर किए जा रहे किसानों के विरोध के इस तरीके को देखकर लोग हैरान रह गए. क्योंकि ग्राहक अभी भी कम से कम 150 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बासमती खरीदते हैं. बासमती की किस्मों पूसा-1509 और 1692 के उत्पादक परेशान हैं, क्योंकि उन्हें अपनी उपज पिछले सीजन की तुलना में बहुत कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
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द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार विरोध कर रहे एक किसान जोगिंदर सिंह ने कहा कि हमें 2,200 रुपये प्रति क्विंटल बासमती बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जो परमल किस्मों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम है. आगे उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है अगर किसानों को कम मिल रही है तो यह ग्राहकों को कम कीमत पर मिलेगी. उपभोक्ताओं को अभी भी इसे खरीदने के लिए अधिक कीमत चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. बता दें कि स्थानीय बाजार में बासमती की 1509 किस्म का औसत मूल्य इस समय 2,000 से 2,400 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि पिछले साल इस अवधि के दौरान बासमती की कीमत 3,500 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल थी.
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किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि पिछले साल बासमती की इन किस्मों को की खरीद 3,500 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की गई थी. लेकिन, इस साल उपज को केवल 2,000 से 2,400 रुपये की दर से खरीदा जा रहा है. जानकारी तो यहां कुछ किसानों की उपज केवल 1800 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदी गई है. इसके कारण इस साल किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि हम इतने अमीर नहीं हैं कि अपनी उपज सड़कों पर फेंक सकें. लेकिन हम चाहते हैं कि लोगों को पता चले कि उनके लिए भोजन पैदा करने वाले किसानों को पर्याप्त भुगतान नहीं किया जा रहा है.
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