
फरवरी की शुरुआत हो चुकी है. इसके बावजूद भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है. इससे गेहूं उत्पादक किसान काफी खुश हैं. क्योंकि यह ठंड और शीतलहर गेहूं के लिए फायदेमंद है. ऐसे में इस साल गेहूं की बंपर उत्पादन की उम्मीद की जा रही है है. लेकिन

सरकार को ये भी चिंता है कि अगर अचानक मौसम बदलता है और तापामान में सामान्य से ज्यादा बढ़ोतरी होती है, तो गेहूं की पैदावार पर असर भी पड़ सकता है. ऐसे में डिमांड को पूरा करने के लिए देश को गेहूं का आयात करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, लंबे समय तक ठंड रहने से गेहूं को उसके वानस्पतिक विकास में मदद मिली है, लेकिन अगले कुछ दिनों में तापमान में बढ़ोतरी होने की आशंका है. ऐसे में यह अनाज बनने के महत्वपूर्ण चरण के दौरान फसल को प्रभावित कर सकती है.

गेहूं अनुसंधान निदेशालय राज्य सरकार के निदेशक ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि ठंड के मौसम के कारण हम सामान्य 3.5 टन प्रति हेक्टेयर की तुलना में थोड़ी बेहतर उपज की उम्मीद कर रहे हैं. यही कारण है कि हम 114 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य को आसानी से हासिल कर लेंगे.

वहीं, किसानों ने कहा कि रोपण की धीमी शुरुआत के बाद ठंडे मौसम से फसल को मदद मिली है. लेकिन अप्रैल की शुरुआत तक मौसम की स्थिति अनुकूल रहने की जरूरत है. वहीं, हरियाणा के रवींद्र काजल ने कहा कि कम तापमान ने हमारी उम्मीदें बढ़ा दी हैं, लेकिन हम अभी भी सतर्क हैं. पिछले दो वर्षों में फरवरी और मार्च में तापमान में अचानक वृद्धि के कारण गेहूं की फसल को नुकसान हुआ था.

हालांकि, भारत के उपजाऊ मैदानों में कड़ाके की सर्दी देखी गई है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी की कमी ने तापमान में अचानक वृद्धि की चिंता बढ़ा दी है. सरकारी भारत मौसम विज्ञान विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी राज्यों में न्यूनतम और अधिकतम तापमान दोनों में वृद्धि शुरू हो गई है. उन्होंने कहा कि फरवरी में, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान राज्यों में अधिकतम तापमान सामान्य से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है, जो भारत की अनाज बेल्ट का हिस्सा है. इससे गेहूं पर प्रतिकुलू प्रभाव पड़ेगा.

इस वर्ष की गेहूं की फसल भारत के लिए महत्वपूर्ण है, जो चीन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा अनाज उत्पादक है. बेमौसम गर्म मौसम ने 2022 और 2023 में भारत के गेहूं उत्पादन में कटौती की, जिससे राज्य के भंडार में भारी गिरावट आई. लगातार तीसरी बार खराब फसल होने पर भारत के पास कुछ गेहूं आयात करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.
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