सस्ते सेब के आयात की मार से अभी सेब उत्पादक किसान उबरे भी नहीं थे कि अब उन्हें एक रहस्यमयी बीमारी ने चिंता में डाल दिया है. इस बीमारी के चलते सेब के पत्ते पीले पड़ रहे हैं और समय से पहले झड़ रहे हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर असर पड़ रहा है. बागवान इसे अल्टरनेरिया रोग करार दे रहे हैं. यह समस्या इतनी बड़ी है कि सेब उत्पादकों को सीएम की शरण में पहुंचना पड़ा है. मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने भी इसे बहुत गंभीरता से लिया है. इस रोग से नुकसान झेलने वाले किसानों ने शिमला में मंगलवार को सीएम से मुलाकात करके अपना दुखड़ा सुनाया. पीड़ित किसानों ने वैज्ञानिक जांच औररोकथाम की मांग की.
चूंकि सेब की खेती हिमाचल प्रदेश की इकोनॉमी का मुख्य आधार है, इसलिए मुख्यमंत्री सुक्खू ने मामले को गंभीरता से लिया. उन्होंने सोलन स्थित डॉ. वाईएस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री के कुलपति से तत्काल फोन पर बात की और विशेषज्ञों की टीम को प्रभावित क्षेत्रों में भेजने के निर्देश दिए. सीएम ने कहा कि सात दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाए, ताकि समय रहते उचित कदम उठाए जा सकें.
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह बीमारी तेजी से फैल रही है और इससे बागवानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है. उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि जमीनी स्तर पर किसानों को जागरूक किया जाए और नियंत्रण के उपाय सिखाए जाएं. मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि राज्य सरकार फल उत्पादकों की समस्याओं को प्राथमिकता से सुलझाएगी. उन्होंने कहा कि सेब उत्पादन राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और सरकार हर संभव मदद देगी.
दूसरी ओर, हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों ने केंद्र सरकार द्वारा आयातित सेबों के लिए न्यूनतम आयात मूल्य (MIP) को 50 रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर 80 रुपये प्रति किलो करने के फैसले का स्वागत किया है. लेकिन साथ ही उन्होंने इसकी जमीनी स्तर पर सख्त से इसका पालन कराए जाने की मांग की है. उन्होंने चिंता जताई कि अगर इसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया तो इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा.
एएनआई के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने कहा कि 2023-24 में भी MIP लागू था, फिर भी ईरान और तुर्की से सेब क्रमश: 41 और 58 रुपये किलो की दर से भारत में आयात हुए. उन्होंने बताया कि अगर MIP का कड़ाई से पालन होता, तो यह सेब कम से कम 85-90 रुपये किलो के दाम पर आते. सेब उत्पादकों ने बंदरगाहों पर कड़ाई से निगरानी की मांग की है, ताकि सस्ते आयात से हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के किसानों को हो रहा घाटा रोका जा सके.
चौहान के अनुसार, भारत वर्तमान में 44 से अधिक देशों से सेब आयात करता है. उन्होंने वॉशिंगटन सेब का उदाहरण दिया, जो किन्नौर, शिमला और मंडी जैसे जिलों से आने वाली हिमाचल की प्रीमियम सेब किस्मों के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा करते हैं और इससे स्थानीय बागवानों की आजीविका पर गंभीर असर पड़ता है.
सिर्फ हिमाचल प्रदेश में सेब आधारित अर्थव्यवस्था की सालाना कीमत लगभग 4,000 करोड़ रुपये से 6,000 करोड़ रुपये के बीच है, जिसमें उत्पादन मूल्य लगभग 5,000 करोड़ रुपये के आसपास होता है. भारत की कुल सेब खपत का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा आयात के जरिए पूरा होता है, जिससे हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड जैसे राज्यों के घरेलू उत्पादकों को नुकसान होता है.
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