हरियाणा में हालिया बारिश ने एक तरह से किसानों की कमर तोड़ दी है. किसान इस तैयारी में थे कि 10-15 दिनों बाद गेहूं, सरसों की कटाई करेंगे और समर्थन मूल्य पर बेचकर कमाई होगी. मगर यह उम्मीद शायद कुदरत को नागवार गुजरी और बेमौसमी बारिश ने सभी अरमानों पर पानी फेर दिया. बारिश और ओलावृष्टि से हरियाणा के अलग-अलग इलाकों में भारी तबाही मची है. तबाही ऐसी कि किसानों की समझ में नहीं आ रहा कि इसकी भरपाई कैसे होगी. किसान अब सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं. कृषि मंत्री जेपी दलाल ने किसानों को आश्वस्त भी किया है. लेकिन इस बीच एक सवाल ये खड़ा हुआ है कि क्या इस बार भी हरियाणा गेहूं उत्पादन के लक्ष्य से चूक जाएगा?
हरियाणा के कई जिलों के किसानों की मानें तो उनकी गेहूं, सरसों और चने की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा है. बारिश के साथ तेज हवा चलने से पौधे जमीन पर लेट गए. इसके बाद ओलावृष्टि ने फसलों को पूरी तरह से रौंद दिया. हरियाणा के लगभग हर जिले की कमोबेस यही स्थिति है. अभी तक गेहूं के खेतों में पानी जमा है और सरसों की बालियां झड़ गई हैं. जिन किसानों ने उपज से कमाई के सपने देखे थे, आज उनकी आंखों में नाउम्मीदी के आंसू छलक रहे हैं.
कई किसान फसली मुआवजे के लिए सड़कों पर उतर गए हैं और जल्द से जल्द सर्वे यानी कि गिरदावरी कराकर क्षति पूर्ति देने की मांग की है. हरियाणा सरकार के कृषि मंत्री जेपी दलाल ने अभी हाल में कई क्षेत्रों का दौरा किया और गिरदावरी का निर्देश दिया. कृषि मंत्री के मुताबिक जिन किसानों ने क्षति पूर्ति पोर्टल पर फसलों का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है, उन्हें भी दूसरे तरीके से मदद दी जाएगी.
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किसानों की मदद के लिए सरकार आगे आती दिख रही है. लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि क्या इस साल भी हरियाणा पिछले वर्ष की तरह गेहूं उत्पादन के लक्ष्य से चूक जाएगा? परिस्थितियां कुछ इसी तरह का इशारा कर रही हैं. अगर बारिश और ओलावृष्टि नहीं हुई रहती तो इस आशंका का कोई मतलब नहीं था. मगर कुदरती मार ने गेहूं उत्पादन के लक्ष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है.
इस साल मौसम की स्थिति उच्च उपज के लिए अनुकूल थी और कृषि विशेषज्ञ इस साल बंपर फसल की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन मार्च मध्य में अचानक हुई बारिश और ओलावृष्टि ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया है. पिछले साल जहां फरवरी की गर्मी ने गेहूं, सरसों को भारी नुकसान पहुंचाया, वही इस साल बारिश और ओलावृष्टि ने भारी क्षति कर दी.
साल 2021-22 में 112 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं पैदा होने की उम्मीद की जा रही थी. लेकिन मार्च और अप्रैल में गर्मी की लहर के कारण पैदावार 2020-21 में 109.59 मिलियन मीट्रिक टन की तुलना में 106.84 मिलियन मीट्रिक टन तक सीमित हो गई. चालू सीजन में वैज्ञानिक 112 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन इसमें भी गिरावट आएगी क्योंकि मौसम की मार से गेहूं की पैदावार गिरेगी. अगर ऐसा होता है तो यह लगातार दूसरा साल होगा जब हरियाणा गेहूं के उत्पादन लक्ष्य से चूक जाएगा.
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IMD के अनुसार, महेंद्रगढ़, सिरसा और चरखी दादरी के अधिकांश हिस्सों में ओलावृष्टि और बारिश हुई है. कई अन्य जिलों में भी अच्छी बारिश दर्ज की गई है. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं वैज्ञानिक ओम प्रकाश बिश्नोई ने 'दि ट्रिब्यून' से कहा कि शुरुआती रिपोर्ट में देरी से बोई गई गेहूं की फसल को भारी नुकसान होने की बात कही गई है. हालांकि समय से बोई गई और उन्नत बोई गई फसलों को भी कुछ नुकसान हुआ है. इसके बाद किसानों ने नुकसान की गिरदावरी जल्द कराने की मांग की है. किसानों का कहना है कि गेहूं की फसल, जो पकने की अवस्था में है, इस सप्ताह की शुरुआत में बारिश और तेज हवाओं के कारण चौपट हो गई है. शुक्रवार की बारिश का उपज पर बड़ा प्रभाव पड़ने की आशंका है.
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