‘देश में 11 फीसद हरे चारे की कमी है. हरे चारे की चुनौतियों से निपटने के लिए हमे तकनीक आधारित उपायों को अपनाना होगा. आज देश में सिर्फ 85 लाख हेक्टेयर जमीन पर ही चारा उगाया जा रहा है. हालांकि देश में 1.15 करोड़ हेक्टेयर घासभूमि और करीब 10 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन है, हरा चारा और घास उगाने के लिए इसका बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है. ये जमीन चारे में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और पशुधन उत्पादकता को बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है.’ ये कहना है केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह का.
हाल ही में उन्होंने चारा रिसर्च सेंटर (IGFRI), झांसी का दौरा किया था. इस मौके पर उन्होंने IGFRI के अनुसंधान और विकास कार्यों की सराहना की और देशभर के कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) के माध्यम से इन तकनीकों का प्रचार करने पर जोर दिया. उन्होंने खासतौर पर हरे चारे की कमी से निपटने के लिए पर्यावरण के आधार पर विपरीत परिस्थितियों में भी टिकाऊ रहने वाली बहुवर्षीय घासों की जरूरत पर जोर दिया. उपयोगिता पर बल दिया, जो बंजर भूमि को पुनर्जीवित करने, पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने और साल भर हरा चारा उपलब्ध कराने में मददगार होगी.
चारा रिसर्च सेंटर के दौरे के वक्त पशुपालन और डेयरी सेक्रेटरी अल्का उपाध्याय भी मौजूद थीं. इस मौके पर उन्होंने चारा तकनीकों को राज्यों में अपनाने के लिए स्टेट लेवल की कोऑर्डिनेशन कमेटी की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने केरल में नारियल बागानों की खाली जगहों पर चारा उत्पादन की संभावनाओं को उजागर करते हुए इसे एक प्रभावशाली मॉडल बताया. उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि इसी मकसद से आठ अप्रैल 2025 को केरल में एक संयुक्त बैठक बुलाई गई है. इस बैठक में राज्य सरकार, कृषि विज्ञान केंद्रों और IGFRI के साइंटिस्ट हिस्सा लेंगे.
पशुपालन आयुक्त डॉ. अभिजीत मित्रा ने भी इस मौके पर हरे चारे के संबंध में इनोवेशन से जुड़े अपने विचार रखे. साथ ही किसानों के लिए उपयुक्त पशुधारित एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS), एकरूपी और स्थायी उत्पादन हेतु बहुवर्षीय घासों की एपोमिक्टिक प्रजनन तकनीक, चारा उत्पादन के लिए विशेष कृषि यंत्रों का विकास, चारा बीजों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु मानक और प्रमाणन प्रणाली तथा बीज छर्रों के माध्यम से ड्रोन आधारित घास भूमि पुनरुद्धार जैसी नवीन विधियों के बारे में साइंटिस्ट से बात भी की.
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