गाय-भैंस की तरह से बकरी पालन में भी बच्चों का बड़ा महत्व है. एनीमल एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी पालन का पूरा अर्थशास्त्र ही बकरी से मिलने वाले बच्चों पर टिका होता है. क्योंकि बकरी पालन का पूरा मुनाफा बकरी के बच्चों से ही होता है. मतलब सालभर जितने बच्चे मिलेंगे मुनाफा उतना ही ज्यादा होता जाएगा. लेकिन मुनाफा तब ही बढ़ता है जब बकरी के बच्चे बड़े होते हैं. क्योंकि बकरी पालक के मुनाफे की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है उनकी मृत्यु दर. इसी को रोकने और कम करने पर साइंटिस्ट भी काम कर रहे हैं.
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट के मुताबिक बकरी पालक को अपना मुनाफा बढ़ाने और बच्चों की मृत्यु दर कम करने के लिए बकरी के गर्भधारण करते ही कोशिश शुरू कर देनी चाहिए. बकरी के बाड़े में भी खास तैयारी करनी होती है. बच्चे के खानपान का भी ख्याल रखना होता है. ये सब करने से ही बच्चे में बीमारी से लड़ने की ताकत पैदा होती है. खासतौर पर बच्चे के जन्म लेने के 15 से 20 दिन तक उसे खास देखभाल की जरूरत होती है.
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गोट एक्सपर्ट और साइंटिस्ट डॉ. गोपाल दास ने बताया कि बकरी का गर्भकाल पांच महीने का होता है. अगर बकरी के गर्भ में पल रहे बच्चे को हैल्दी बनाना है तो गर्भकाल के आखिरी 45 दिन बकरी के खानपान में हरा चारा, सूखा चारा और दाना जरूर शामिल करना चाहिए. ऐसा करने से बकरी के साथ-साथ उसके बच्चे को भी इसका फायदा मिलेगा. इससे बच्चे बीमारी से लड़ने लायक बनेंगे तो बकरी दूध भी ज्यादा देगी. बच्चों को पोष्टिक कोलस्ट्रम यानि खीस पीने को मिलेगा. खीस में चार गुना तक प्रोटीन होता है. वहीं खीस में मौजूद इम्यू्नोग्लोबीलिन प्रोटीन भी होता है.
ये बच्चों को बीमारी से लड़ने की ताकत देता है. कई बार बकरी बच्चा देने के बाद उसे अपना दूध नहीं पिलाती है. ऐसे में बच्चे को उस दूसरी बकरी का दूध भी पिलाया जा सकता है जिसने उसी के आसपास बच्चा दिया हो. जन्म के करीब पांच-छह दिन तक बकरी और बच्चे को दूसरी बकरियों के झुंड से अलग अकेले में रखें. इससे होगा ये कि बकरी अपने बच्चे को ठीक तरह से पहचान लेगी. बच्चे को पहले 15 दिन सिर्फ बकरी के दूध पर ही रखें. बच्चे मिट्टी ना खाएं इसके लिए उनके आसपास हमेशा लाहौरी (सैंधा) नमक की डेली रखें.
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