वैसे तो बीमारियों से बचाने वाले टीके (वैक्सीन) बकरियों की उम्र के हिसाब से लगवाए जाते हैं. मेमनों के पैदा होने के बाद से लेकर बड़े बकरे-बकरियों को टीके लगते रहते हैं. गोट एक्सपर्ट की मानें तो वैसे टीके लगवाने का मौसम से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन सर्दियों के दौरान दो ऐसी बीमारी हैं जो बकरियों पर अटैक करती हैं. ये बकरियों की जानलेवा बीमारी हैं. अगर वक्त रहते इन पर कंट्रोल नहीं किया गया तो ये दूसरी बकरियों में भी फैल जाती हैं. इसकी रोकथाम का एक मात्र उपाय सिर्फ टीका ही है.
इसलिए एनिमल एक्सपर्ट बकरी पालकों को ये सलाह देते हैं कि सर्दियां शुरू होने से पहले अपनी बकरियों को ये दो टीके जरूर लगवा दें. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अशोक कुमार भी बकरियों की चेचक और प्लेग बीमारी फैलने से पहले टीके लगवाने की सलाह देते हैं. उनका कहना है कि बकरियों को टीके लगवाने के साथ ही बकरियों के शेड में भी खास तरह के इंतजाम करने होंगे.
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डॉ. अशोक कुमार की मानें तो सर्दियों में प्लेग जिसे पीपीआर भी कहा जाता है, ये बकरियों में होने वाली खतरनाक बीमारी है. पीपीआर क्योंकि विषाणु जनित बीमारी है तो इसलिए ये दूसरी बकरियों को भी अपनी चपेट में ले लेती है. इसके साथ ही इसी मौसम में बकरियों के बीच चेचक भी फैलती है. चेचक के होने पर बकरियों के शरीर पर चकते से बन जाते हैं. इसलिए ये जरूरी है कि सर्दी शुरू होते ही बकरियों को पीपीआर और चेचक का टीका लगवा दिया जाए. सितम्बर के आखिर से ही टीके लगवाने की शुरुआत की जा सकती है. क्योंकि ये बीमारी अगर एक बकरी में हो गई तो फिर दूसरी बकरियों के बीच तेजी से फैलती है.
सीआईआरजी सीनियर साइंटिस्ट डॉ. के. गुरुराज का कहना है कि प्लेग बीमारी होने पर बकरी की ग्रोथ रुक जाती है. बकरी को दस्त लग जाते हैं. निमोनिया हो जाता है और नाक बहने लगती है. बकरी को तेज बुखार आ जाता है. बकरियों से यह बीमारी उनके मेमनों को भी लग जाती है. इसी तरह से बकरी को चेचक होने पर भी निमोनिया की शिकायत होने लगती है. तेज बुखार आ जाता है. बकरी चारा खाना छोड़ देती है. बकरी के बच्चे भी दूध कम पीने लगते हैं.
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डॉ. के. गुरुराज का कहना है कि बकरी प्लेग और चेचक होने पर घबराहट में बेवजह तरह-तरह के अलग-अलग इलाज कराने से बचें. इलाज पर भारी-भरकम खर्च ना करें. हालांकि सबसे बेहतर तो यही है कि पशु चिकित्सक के मुताबिक बकरियों का टीकाकरण कराते रहें. उन्हें पहले ही प्लेग और चेचक के टीके लगवा दें. क्योंकि टीके लगवाने का खर्च बहुत ही मामूली होता है. और तो और सरकारी पशु चिकित्सा केन्द्रों पर तो यह फ्री में लगते हैं. जबकि टीकों के मुकाबले इनके इलाज पर बड़ी रकम खर्च हो जाती है. दूसरा सबसे बड़ा काम ये करना चाहिए कि जो भी बकरी चेचक और प्लेग से पीडि़त हो तो उसे झुंड की दूसरी बकरियों से अलग कर दें.
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