पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स (PPR) और शीप पॉक्स भेड़ों के लिए जानलेवा बीमारी है. इसे भेड़ों की चेचक भी कहा जाता है. खासतौर पर बरसात के दिनों में ज्यादा असर करती है. ऐसे ही शीप पॉक्स भी है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो अभी भेड़ों की इन बीमारियों का इलाज नहीं है. सिर्फ वैक्सीन (टीके) से इसकी रोकथाम ही संभव है. भेड़ों को दोनों बीमारियों से बचाने के लिए दो अलग-अलग टीके लगवाने पड़ते हैं. इसके चलते वक्त और पैसों का तो नुकसान होता ही है, साथ में पशु तनाव से भी गुजरता है.
लेकिन भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI), बरेली ने अब एक ऐसी वैक्सीन बनाई है जो दोनों बीमारियों की रोकथाम करेगी. इसके लिए सिर्फ एक तरह की है वैक्सीन लगवानी होगी. हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 96वें स्थापना एवं प्रौद्योगिकी दिवस के मौके पर नई दिल्ली में आईवीआरआई ने इसे लांच किया है.
ये भी पढ़ें: Animal Reproduction: कैसे पता करें पशु में सेक्स सॉर्टड सीमेन का इस्तेमाल हुआ है, पढ़ें तरीका
आईवीआरआई के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त का कहना है कि पीपीआर और शीप पॉक्स विषाणु जनित खतरनाक बीमारी हैं. ये खासतौर पर भेड़ और बकरी में होती है. इसके चलते छोटे जुगाली करने वाले पशुओं की मौत भी हो जाती है. वक्त पर भेड़-बकरियों को पीपीआर और शीप-गोट पॉक्स का टीका नहीं लगवाने के चलते इनकी मौत भी हो जाती है. एक हफ्ते तक अगर टीका नहीं लगवाया जाता है तो भेड़ों की मौत तक हो जाती है. उनका कहना है कि ये एक वायरल बीमारी है. बेशक ये छोटे जानवर हैं, लेकिन किसानों को इसके चलते आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.
पीपीआर को बकरी का प्लेग के नाम से भी जाना जाता है. किसी एक भेड़-बकरी को होने पर ये तेजी से दूसरे बकरे-बकरी को भी अपनी चपेट में ले लेती है. यह वायरस खासकर बकरियों और भेड़ों की सांस की लार, नाक से निकलने वाला स्राव और दूषित उपकरणों के जरिए फैलता है. इस बीमारी की चपेट में आते ही भेड़-बकरी सुस्त और कमजोर हो जाता है, खाने से मुंह फेरने लगता है. आंखे लाल, आंख, मुंह और नाक से पानी बहने लगता है.
बुखार कम होते ही मुंह के अन्दर मसूड़ों और जीभ पर लाल-लाल दाने फूटकर घाव बनने लगते हैं. वक्त के साथ घाव सड़ने लगते हैं. आंखों में कीचड़ पड़ने लगता है. तेज बदबूदार खून और आंव के साथ दस्त लग जाते हैं. कई बार तो बकरी और भेड़ का गर्भ तक गिर जाता है. जब वक्त से टीकाकरण नहीं कराया जाता है तो लगातार दस्त होने और घावों में सड़न बढ़ने के चलते पशु की मौत हो जाती है.
ये भी पढ़ें: Reproduction: हीट में आने के बाद भी गाय-भैंस गाभिन ना हो तो घर पर ऐसे करें इलाज
पीपीआर रोग से भेड़-बकरियों को बचाने के लिए जरूरी है कि उनका टीकाकरण कराया जाए. अभी तक पीपीआर के कई टीके थे, लेकिन अब आईवीआरआई की इस रिसर्च के बाद एक टीके से ही पीपीआर की रोकथाम हो जाएगी और शीप पॉक्स की भी. जैसे ही भेड़-बकरी में पीपीआर के लक्षण दिखाई दें तो उसे शेड से अलग कर दें. पीडि़त भेड़-बकरी को हेल्दी पशुओं के साथ कभी ना रखें. पीडि़त पशु को पानी खूब पिलाएं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today