भारी बारिश के चलते पहले से ही हरी सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं. इससे लोगों के किचन का बजट बिगड़ गया है. लेकिन आम जनता की जेब पर महंगाई की एक और बड़ी मार पड़ने वाली है, क्योंकि अब दूध की कीमतों में बढ़ोतरी होने वाली है. कहा जा रहा है कि कर्नाटक में दूध की कीमत में 5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है. इसके लिए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के सामने प्रस्ताव रखा गया है. अगर मुख्यमंत्री से मंजूरी मिल जाती है, तो तीन महीने में दूसरी बार दूध के रेट में बढ़ोतरी होगी.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बीच का रास्ता अपनाते हुए 2-3 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि को हरी झंडी दिखा सकते हैं. इस कदम का उद्देश्य दूध की खरीद कीमत को बढ़ाना है, जो वर्तमान में 31 रुपये प्रति लीटर है, जबकि बिक्री मूल्य 41 रुपये प्रति लीटर है. खास बात यह है कि अगर दूध की कीमत में मंजूरी मिलती है, तो 5 रुपये की वृद्धि केवल किसानों को मिलेगी. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को संभावित वृद्धि का संकेत देते हुए कहा कि उन्होंने सहकारिता मंत्री के एन राजन्ना को कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) के निदेशकों के साथ बैठक बुलाने का निर्देश दिया है.
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वहीं, राजन्ना ने कीमतों में वृद्धि के प्रस्ताव को उचित ठहराते हुए कहा कि दूध की खरीद और बिक्री दोनों ही कीमतें हमारे राज्य में अन्य राज्यों की तुलना में बहुत सस्ती हैं. कुछ राज्यों में दूध की कीमतें 58-60 रुपये प्रति लीटर तक हैं. इसलिए, किसान बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं. मंत्री ने कहा कि अगर 5 रुपये की पूरी बढ़ोतरी को मंजूरी मिल जाती है, तो सरकार या दूध संघ द्वारा किसी भी तरह के हस्तक्षेप के बिना किसानों को इसका लाभ दिया जाएगा.
उन्होंने कहा कि इस साल जून में, केएमएफ ने दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी, साथ ही हर 500 मिलीलीटर पाउच के लिए 50 मिलीलीटर अतिरिक्त दूध की पेशकश भी की थी. वहीं, विपक्षी दलों ने निशाना साधते हुए दावा किया कि सरकार उपभोक्ताओं पर बोझ डाल रही है.
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मंत्री के एन राजन्ना ने कहा कि जब पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ाई जाती हैं, तो कोई भी इस पर सवाल नहीं उठाता, लेकिन अगर हम किसानों की मदद के लिए दूध की कीमतें बढ़ाते हैं, तो वे परेशान हो जाते हैं. हालांकि, केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि मुझे सरकार की मंशा पर वाकई संदेह है. भले ही वे अतिरिक्त राशि किसानों को हस्तांतरित कर दें, लेकिन यह दो महीने से अधिक नहीं चलेगी.
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