Cow: गायों की इस बीमारी को रोकने में NDRF की ली जाएगी मदद, NOHM में बन रहा प्लान  

Cow: गायों की इस बीमारी को रोकने में NDRF की ली जाएगी मदद, NOHM में बन रहा प्लान  

एनीमल एक्सपर्ट का मानना है कि पशुओं में होने वालीं करीब 70 फीसद से ज्यादा बीमारियों का असर पर्यावरण और इंसानों में भी देखने को मिलता है. इसी के चलते नेशनल वन हेल्द मिशन (NOHM) के तहत लंपी समेत और दूसरी बीमारियों से निपटने के लिए प्लान के तहत बीमारियों के टीके और उनके इलाज संबंधी रिसर्च पर काम हो रहा है. 

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लंपी खासतौर पर गायों में होने वाली जानलेवा बीमारी है. इसका सबसे ज्यादा अटैक गायों पर ही होता है. बीते कुछ वक्त से भारत में भी लंपी के कई मामले सामने आए हैं. इस बीमारी से निपटने के लिए ही नेशनल वन हेल्द मिशन (NOHM) के तहत प्लान तैयार किया जा रहा है. एनओएचएम के तहत लंपी की रोकथाम के लिए सात बिन्दुओं पर प्लान तैयार किया गया है. प्लान के तहत जहां बीमारी की जांच, बीमारी को फैलने से रोकने को रेस्पांस टीम बनाई जाएगी, वहीं प्लान के सभी बिन्दुओ पर नेशनल डिजास्टर मैंनेजमेंट अथॉरिटी (NDRF) की मदद भी ली जाएगी. 

लंपी की रोकथाम के लिए बनाए जा रहे इस प्लान की एक खासियत ये भी है कि नेशनल लाइव स्टॉक मिशन की तरह से सभी पशुओं की बीमारी की निगरानी का एक सिस्टम भी बनाया जा जा रहा है. वहीं एक ऐसा मजबूत सिस्टम भी तैयार किया जा रहा है जो बीमारी फैलने पर सबसे पहले पशुपालक और आम जनता को सूचना देने के सिस्टम पर काम करेगा. 

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लंपी होने पर गायों को होती है ये परेशानी 

लंपी वायरस की पहचान त्वचा रोग वायरस के रूप में की गई है. ये एक प्रकार का पॉक्स वायरस है. इस वायरस का अटैक होने पर जानवर टिक्स से संक्रमित हो जाते हैं. अटैक होते ही टिक्स फर (स्किन) को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं. इसी के चलते जानवरों को बुखार आने लगता है. पशुओं में दूध का उत्पादन कम हो जाता है. त्वचा पर गांठें पड़ने लगती हैं. पशुओं को मास्टिटिस की बीमारी होने लगती है. पशु के लिम्फ नोड्स में सूजन आ जाती है. संक्रमित होने पर पशुओं को भूख नहीं लगती, नाक बहने लगती है और आंखों से लगातार पानी आने लगता है. इतना ही नहीं एक बार संक्रमित होने पर गाय-बैलों में लंबे समय तक बांझपन की समस्या भी देखी जाती है.

लंपी को फैलने से ऐसे रोका जा सकता है 

लंपी वायरस को फैलने से रोकने के लिए सबसे पहला काम ये करें कि जैसे ही आपको ये लक्षण दिखें, अपने पशुओं का टेस्ट करवाएं. संक्रमित मवेशियों से अन्य मवेशियों को अलग कर दें. संबंधित अधिकारियों और पशु चिकित्सकों से सलाह लेते रहें. अपने अन्य जानवरों पर भी कड़ी नजर रखनी चाहिए. बीमारी के दौरान संक्रमित जानवरों के दूध का सेवन नहीं करना चाहिए. गायों की इस बीमारी का कोई विशिष्ट एंटीवायरल उपचार नहीं है. गांठदार वायरस के लक्षणों का इलाज करने के लिए, जानवरों को घाव, दर्द निवारक और एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं.
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