लंपी खासतौर पर गायों में होने वाली जानलेवा बीमारी है. इसका सबसे ज्यादा अटैक गायों पर ही होता है. बीते कुछ वक्त से भारत में भी लंपी के कई मामले सामने आए हैं. इस बीमारी से निपटने के लिए ही नेशनल वन हेल्द मिशन (NOHM) के तहत प्लान तैयार किया जा रहा है. एनओएचएम के तहत लंपी की रोकथाम के लिए सात बिन्दुओं पर प्लान तैयार किया गया है. प्लान के तहत जहां बीमारी की जांच, बीमारी को फैलने से रोकने को रेस्पांस टीम बनाई जाएगी, वहीं प्लान के सभी बिन्दुओ पर नेशनल डिजास्टर मैंनेजमेंट अथॉरिटी (NDRF) की मदद भी ली जाएगी.
लंपी की रोकथाम के लिए बनाए जा रहे इस प्लान की एक खासियत ये भी है कि नेशनल लाइव स्टॉक मिशन की तरह से सभी पशुओं की बीमारी की निगरानी का एक सिस्टम भी बनाया जा जा रहा है. वहीं एक ऐसा मजबूत सिस्टम भी तैयार किया जा रहा है जो बीमारी फैलने पर सबसे पहले पशुपालक और आम जनता को सूचना देने के सिस्टम पर काम करेगा.
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लंपी वायरस की पहचान त्वचा रोग वायरस के रूप में की गई है. ये एक प्रकार का पॉक्स वायरस है. इस वायरस का अटैक होने पर जानवर टिक्स से संक्रमित हो जाते हैं. अटैक होते ही टिक्स फर (स्किन) को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं. इसी के चलते जानवरों को बुखार आने लगता है. पशुओं में दूध का उत्पादन कम हो जाता है. त्वचा पर गांठें पड़ने लगती हैं. पशुओं को मास्टिटिस की बीमारी होने लगती है. पशु के लिम्फ नोड्स में सूजन आ जाती है. संक्रमित होने पर पशुओं को भूख नहीं लगती, नाक बहने लगती है और आंखों से लगातार पानी आने लगता है. इतना ही नहीं एक बार संक्रमित होने पर गाय-बैलों में लंबे समय तक बांझपन की समस्या भी देखी जाती है.
लंपी वायरस को फैलने से रोकने के लिए सबसे पहला काम ये करें कि जैसे ही आपको ये लक्षण दिखें, अपने पशुओं का टेस्ट करवाएं. संक्रमित मवेशियों से अन्य मवेशियों को अलग कर दें. संबंधित अधिकारियों और पशु चिकित्सकों से सलाह लेते रहें. अपने अन्य जानवरों पर भी कड़ी नजर रखनी चाहिए. बीमारी के दौरान संक्रमित जानवरों के दूध का सेवन नहीं करना चाहिए. गायों की इस बीमारी का कोई विशिष्ट एंटीवायरल उपचार नहीं है. गांठदार वायरस के लक्षणों का इलाज करने के लिए, जानवरों को घाव, दर्द निवारक और एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं.
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