बकरी बच्चा देने के बाद दूध देना शुरू करती है. मतलब पहले वो हीट में आएगी, फिर गर्भवती होगी और उसके बाद बच्चा देगी. गोट एक्सपर्ट की मानें तो बकरी छह से नौ महीने की उम्र पर पहली बार हीट में आती है. इस लिहाज से बकरी पालन में मुनाफे के लिए बहुत इंतजार करना पड़ता है. और क्योंकि बकरी के दूध का कारोबार संगठित नहीं है तो इसलिए दूध के दाम भी अच्छे नहीं मिल पाते हैं. जबकि बकरा करोबार में ऐसा नहीं है. बकरा छह महीने की उम्र पर आते ही मुनाफा देने लगता है.
और सबसे खास बात ये है कि साल के 12 महीने मीट की डिमांड के चलते बकरों की खरीद-फरोख्त भी होती रहती है. साथ ही साल में एक बार आने वाले कुर्बानी के त्यौहार बकरीद पर तो बकरों के मुंह मांगे दाम मिलते हैं. देश में सभी तरह के पशुओं का मीट उत्पादन बीते साल करीब एक करोड़ टन हुआ था. इसमे बकरे के मीट की हिस्सेदारी करीब 15 फीसद है. जिस तरह से घरेलू बाजार में बकरे का मीट बिकता है तो उस हिसाब से ये आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता है.
गोट एक्सपर्ट के मुताबिक वैसे तो अपने इलाके के हिसाब से मौजूद बकरे और बकरियों की नस्ल पालनी चाहिए. क्योंकि वही नस्ल अच्छी तरह से ग्रोथ करेगी. लेकिन खासतौर पर मीट के लिए पसंद किए और पाले जाने बकरों की जो नस्ल हैं उसमे बरबरी, जमनापरी, जखराना, ब्लैक बंगाल, सुजोत प्रमुख रूप से हैं. इन्हें पालने से दोहरी इनकम होती है. क्योंकि बरबरी, जमनापरी और जखराना नस्ल की बकरियां दूध भी खूब देती हैं.
एनिमल हसबेंडरी कमिश्नर अभिजीत मित्रा का कहना है कि विदेशी बाजारों में बकरे के मीट और लाइव बकरों की बहुत डिमांड है. खाड़ी देश ओमान बकरे के मीट और लाइव बकरों का एक बड़ा खरीदार है. वहीं केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के डायरेक्टर डॉ. मनीष चेतली का कहना है कि मीट एक्सपोर्ट के दौरान मीट में केमिकल और दूसरे तत्वों की जांच होती है. जांच में पास होने के बाद ही मीट का कंटेनर आगे बढ़ाया जाता है. कई बार एक्सपोर्ट के दौरान बकरे के मीट के कंसाइनमेंट लौटकर आए हैं. यह इसलिए होता था कि बकरों को जो चारा खिलाया जाता था उसमे कहीं न कहीं पेस्टीसाइड का इस्तेमाल हुआ होता था. लेकिन अब सीआईआरजी ने आर्गनिक चारा उगाना शुरू कर दिया है. इस चारे को बकरों ने भी खाया. लेकिन जब उनके मीट की जांच हुई तो वो केमिकल नहीं मिले जिनकी शिकायत आती थी.
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