Milk Production: गर्मी शुरू होते ही होने लगती है दूध की कमी, जानें कैसे पूरी की जाती है डिमांड

Milk Production: गर्मी शुरू होते ही होने लगती है दूध की कमी, जानें कैसे पूरी की जाती है डिमांड

गर्मियों के मौसम में खासतौर से अप्रैल से लेकर जुलाई तक दूध की सप्लाई डिमांड के मुताबिक भी रखनी है, साथ ही लागत बढ़ जाने पर पशुपालकों को उनके दूध का सही दाम भी चुकाना है, इसलिए गर्मियों में दूध के दाम बढ़ना तय माना जाता है. 

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Milk Production: गर्मी शुरू होते ही होने लगती है दूध की कमी, जानें कैसे पूरी की जाती है डिमांडबिहार में दूध उत्‍पादन बढ़ाने का लक्ष्‍य (सांकेतिक तस्‍वीर)

चढ़ते तापमान के साथ ही अब दूध के दाम बढ़ना भी शुरू हो गए हैं. सबसे पहले मदर डेयरी ने प्रति लीटर दो रुपये बढ़ाने का ऐलान किया है. पिछले रिकॉर्ड को देखें तो गर्मियों में कम से कम दो बार डेयरी कंपनियां दूध के दाम बढ़ाती हैं. लेकिन सवाल ये है कि गर्मियों में ही दूध की कमी क्यों होने लगती है. जबकि गर्मियों में तो दूध और दूध से बने प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ जाती है. फिर बढ़ी हुई डिमांड को कैसे पूरा किया जाता है. क्योंकि गर्मियों में दही, छाछ और आइसक्रीम की डिमांड तो बहुत ज्यादा बढ़ जाती है.

देश में दूध की डेयरी छोटी हो या बड़ी सभी इमरजेंसी सिस्टम पर जरूर काम करते हैं. क्योंकि यही सिस्टम गर्मियों में दूध की किल्लत से बचाता है. जो भी डेयरी कंपनी 25 से 30 हजार लीटर दूध रोजाना का कारोबार कर रही है वो इमरजेंसी सिस्टम जरूर बनाकर रखती है. इसी सिस्टम की मदद से गर्मियों में दही, छाछ और आइसक्रीम की डिमांड पूरी की जाती है. 

इमरजेंसी सिस्टम में होता है 1.5 साल का स्टॉक 

वीटा डेयरी, हरियाणा के सीईओ चरन सिंह की मानें तो छोटा हो या बड़ा इमरजेंसी सिस्टम हर डेयरी में काम करता है. इस सिस्टम की मदद से ही डेयरी में डिमांड से ज्यादा आने वाले दूध को जमा किया जाता है. जमा किए गए दूध का मक्खन और मिल्क पाउडर बनाया जाता है. डेयरियों में स्टोरेज क्वालिटी और कैपेसिटी अच्छी होने के चलते मक्खन और मिल्क पाउडर 1.5 साल तक चल जाता है. अब तो इतने हाईटेक चिलर प्लांट आ रहे हैं कि मक्खन पर एक मच्छर बराबर भी दाग नहीं आता है.

सबसे ज्यादा गर्मियों में काम आता है इमरजेंसी सिस्टम 

चरन सिंह का कहना है कि जब बाजार में दूध की डिमांड ज्यानदा हो जाती है या किसान-पशुपालकों की ओर से दूध कम आने लगता है तो ऐसे वक्त में इमरजेंसी सिस्टम से शहरों को दूध की सप्लाई की जाती है. जैसे गर्मियों में अक्सर होता है कि पशु दूध कम देते हैं, लेकिन डिमांड बराबर बनी रहती है. इस डिमांड को ही इमरजेंसी सिस्टम की मदद से पूरा किया जाता है. हीट स्ट्रेस और हीट स्ट्रोक के चलते पशुओं का दूध उत्पादन कम हो जाता है.

जरूरत पड़ने पर फिर से ऐसे बना देते हैं दूध 

चरन सिंह का कहना है जब भी ज्या‍दा दूध की जरूरत पड़ती है तो इमरजेंसी सिस्टम में से मक्खन और मिल्क पाउडर लेकर उन्हें मिला दिया जाता है. यह मिक्चर पहले की तरह से ही दूध बन जाता है. जब सर्दियों में दूध उत्पादन ज्यादा होने लगता है, बड़े-बड़े आंदोलन के दौरान या फिर शहरों में कर्फ्यू लगा होने के चलते दूध की सप्लाई नहीं हो पाती है तो ऐसे में दूध को जमा कर इमरजेंसी सिस्टम में मक्खन और मिल्क पाउर बना लिया जाता है. और कई बार ऐसा भी होता है कि ऐसे हालात में हमारे पास तक दूध ही नहीं पहुंचता है तो हम इमरजेंसी सिस्टम से शहरों को दूध की सप्लाई करते हैं.   

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