बेशक टैरिफ का इश्यू अमेरिका में नई सरकार आने के बाद बड़ा हुआ है. लेकिन देश में बीते चार साल से झींगा के ऊपर आने वाले खतरे से सरकार समेत झींगा इंडस्ट्री को आगाह किया जा रहा है. जानकारों की मानें तो भारतीय झींगा पूरी तरह से एक्सपोर्ट पर निर्भर है. वहीं खासतौर पर अमेरिका लगातार एंटी डंपिंग डयूटी और काउंटर वैलिंग डयूटी को लेकर आंखें दिखा रहा था. यहां तक की उसने साल 2023 और 2024 में झींगा पर लगने वाली डयूटी को बढ़ा भी दिया था.
साथ ही आने वाले वक्त में एंटी डंपिंग और काउंटर वैलिंग डयूटी (CVD) और ज्यादा बढ़ाने के साफ-साफ संकेत भी दिए थे. लेकिन इंडस्ट्री ने इसे अनदेखा कर दिया और आज झींगा के हालात सबके सामने हैं. यहां तक की झींगा किसान और एक्सपर्ट डॉ. मनोज शर्मा की आवाज को भी अनसुना कर दिया गया. मनोज बीते करीब चार साल से झींगा इंडस्ट्री और सरकार से झींगा का घरेलू बाजार बनाने की बात कर रहे हैं.
अमेरिका द्वारा झींगा पर रेसिप्रोकोल टैरिफ लगाए जाने के बाद से अब झींगा पर और बड़ा खतरा मंडराने लगा है. भारतीय झींगा इंडस्ट्री पहले ही अमेरिका की एंटी डंपिंग और काउंटर वैलिंग डयूटी से जूझ रहा था, अब अमेरिका द्वारा 26 फीसद रेसिप्रोकोल टैरिफ और लगा दिया गया है. वहीं 2.49 फीसद एंटी डंपिंग डयूटी और 5.77 फीसद की काउंटर वैलिंग डयूटी लगी हुई है. अगर दोनों डयूटी और टैरिफ को जोड़ दें तो भारत को अमेरिका में झींगा बेचने के लिए अब 34.26 फीसद की डयूटी और टैरिफ देना होगा. अब बात अमेरिकी बाजार की करें तो अमेरिका भारतीय झींगा का 70 फीसद का खरीदार है. करीब 20 फीसद चीन खरीदता है. बाकी बचे 10 फीसद में और दूसरे देश शामिल हैं.
लेकिन अब परेशानी ये है कि झींगा पर लगने वाली इस डयूटी के साथ अमेरिकी बाजारों में भारतीय झींगा कैसे बिकेगा. क्योंकि वहां के बाजारों में भारत का सीधा मुकाबला इक्वाडोर से है. इक्वाडोर को अमेरिका में झींगा बेचने के लिए सिर्फ 13.78 फीसद ही डयूटी चुकानी है. जानकारों की मानें तो विश्व में भारत और इक्वाडोर ही सबसे ज्यादा झींगा का उत्पादन करते हैं. पहले पर इक्वाडोर तो दूसरे पर भारत है.
झींगा किसान और एक्सपर्ट डॉ. मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि झींगा का घरेलू बाजार खड़ा करने के लिए कोई बहुत बड़े तामझाम की जरूरत नहीं है. हमे सिर्फ करना ये है कि हमारे देश के 750 बड़े शहरों में 30 दिन यानि एक महीने में 20 से 25 हजार टन झींगा की खपत बढ़ानी है. ये कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है. क्योंकि हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग नॉनवेज खाते हैं. मछली खाने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है. मुम्बई में हर महीने 100 टन के करीब झींगा खाया जा रहा है. गुजरात के सूरत जैसे शहर में भी झींगा की बिक्री हो रही है. अगर हमारा घरेलू बाजार बढ़ गया तो हमारी एक्सपोर्ट पर निर्भरता कम हो जाएगी और हम अपने रेट और शर्तों पर झींगा को विदेशों में बेच सकेंगे.
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