
पशुपालन की लागत में चारे के बाद बड़ा हिस्सा उनकी बीमारियों पर होने वाला खर्च होता है. बीमारी छोटी हो या बड़ी उसके चलते पशुपालक को दो तरफा नुकसान होता है. एक तो डॉक्टर और दवाई का खर्च, दूसरा बीमारी के चलते उत्पादन कम हो जाता है.

यही वजह है कि सर्दियों के दो महीने (दिसम्बर-जनवरी) पशुपालन में बहुत खास माना जाता है. पशुपालन से जुड़े उत्पादन ही नहीं और भी दूसरे मामलों में ये दो महीने बहुत खास होते हैं. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो इस दौरान सर्दियों का मौसम अपने चरम पर होता है.

सर्द हवाएं चलने के साथ ही गलन महसूस होने लगती है. कई-कई दिन तक तो धूप भी नहीं निकलती है. ऐसे में पशुओं के लिए कुछ मौसमी बीमारियां जानलेवा साबित होती हैं. पशुओं का दूध भी कम हो जाता है. लेकिन एक्सपर्ट की सलाह पर कुछ ऐहतियाती कदम उठा लिए जाएं तो आर्थिक नुकसान से बचने बच सकते हैं.

दो महीने कड़ाके की सर्दी में पशुओं को सर्दी से बचाने का इंतजाम कर लें. सर्दी के मौसम में ज्यादातर भैंस हीट में आती हैं. ऐसा होते ही पशु को गाभिन कराएं. भैंस बच्चा देने के 60-70 दिन बाद दोबारा हीट में ना आए तो फौरन ही जांच कराएं. पशुओं को बाहरी कीड़ों से बचाने के लिए समय-समय पर दवाई का छिड़काव करें.

भैंस को मुर्राह नस्ल के नर से या नजदीकी केंद्र पर कृत्रिम गर्भाधान कराएं. पशुओं को पेट के कीड़ों से बचाने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दवाई दें. गाय-भैंस को जल्दी हीट में लाने के लिए मिनरल मिक्सचर जरूर खिलाएं. दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए डॉक्टर की सलाह लें.

ज्यादा हरा चारा लेने के लिए बरसीम की बीएल 10, बीएल 22 और बीएल 42 की बिजाई करें. बरसीम का ज्यादा चारा लेने के लिए सरसों की चाइनीज कैबिज या जई मिलाकर बुवाई करें. बरसीम के साथ राई मिलाकर बुवाई करने से चारे की पौष्टिकता और उपज दोनों ही बढ़ती हैं.

बरसीम की बुवाई नए खेत में कर रहे हैं तो पहले राइजोबियम कल्चर उपचारित जरूर कर लें. जई और बरसीम की बुवाई के लिए ये वक्त ज्यादा अच्छा माना जाता है. जई का ज्यादा चारा लेने के लिए ओएस 6, ओएल 9 की बुवाई करें.
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