उत्तर प्रदेश के आधी हिस्से में जहां इन दिनों कड़कड़ाती ठंड पड़ रही है तो वही पूर्वांचल में अभी भी मौसम में तापमान में सर्दी का असर कम है. दिसंबर के महीने में न्यूनतम तापमान की गर्मी ने मौसम के उतार चढ़ाव ला दिया है. वाराणसी में पिछले दो दिनों से ठंड का कुछ असर दिखा है लेकिन इससे पहले दिसंबर के शुरुआती 10 दिन पिछले 5 साल में सबसे ज्यादा गर्म रहे हैं जो कहीं ना कहीं मौसम वैज्ञानिकों को चिंतित करते हैं. 2019 से लेकर 2023 तक के तापमान के रिकॉर्ड के अनुसार दिसंबर महीने के शुरू होने के बाद न्यूनतम तापमान 8 से 10 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता था लेकिन वर्ष 2023 में 1 दिसंबर से 10 दिसंबर तक न्यूनतम तापमान 18.5 डिग्री सेल्सियस तक रहा. ऐसे में मौसम में हो रहे उतार चढ़ाव से मौसम वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि कृषि वैज्ञानिक भी चिंतित है.
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उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में जहां इन दिनों खूब सर्दी पड़ रही है यहां का न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा है लेकिन वहीं दूसरी तरफ पूर्वांचल में वाराणसी का न्यूनतम तापमान अभी भी ऊंचा बना हुआ है. पिछले दो दिनों से सर्दी का असर दिखाई दे रहा है. वही 1 दिसंबर से लेकर 10 दिसंबर तक वाराणसी का न्यूनतम तापमान पिछले 5 सालों में सबसे ऊंचा रहा. दिसंबर की शुरुआती दिनों में गर्मी का एहसास भी लोगों को हुआ. जलवायु परिवर्तन के असर के चलते इसका नुकसान फसलों पर भी पड़ा है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव ने बताया आमतौर पर दिसंबर में तापमान में गिरावट शुरू हो जाती है और न्यूनतम तापमान 10 डिग्री से नीचे पहुंच जाता है लेकिन इस साल नहीं पहुंचा. जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की वजह से यह बदलाव हो रहा है. मौसम पर अलनीनो का प्रभाव भी है. इसकी वजह से मौसम शिफ्ट हो रहा है.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि दिसंबर में इस तरह का न्यूनतम तापमान रहना निश्चित तौर पर चिंता का कारण है. पिछले सालों के मुकाबले इस साल प्रदूषण भी ज्यादा है जिसके चलते भी न्यूनतम तापमान में गिरावट नहीं हुई है. 2019 में जहां 10 दिसंबर को अधिकतम तापमान 26.02 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 12.5 डिग्री सेल्सियस रहा. वही 2023 में तापमान 18 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया जो पिछले 5 सालों में सबसे ज्यादा है. रबी के सीजन के अंतर्गत बोई जाने वाली सब्जी और गेहूं की फसलों पर भी जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है जिसका प्रतिकूल प्रभाव उत्पादन पर भी पड़ सकता है.