खेती-किसानी में अब महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की रहने वाली बुजुर्ग महिला किसान सूफिया खानम केले की खेती और डेयरी सेक्टर के जरिए जिले में अपनी एक अलग पहचान बनाई हैं. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में सूफिया ने बताया कि सूखे बुंदेलखंड में खेती शुरू करना एक चुनौतीपूर्ण था. क्योंकि इस इलाके में पानी की कमी है. लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और सबसे पहले 6 एकड़ में केले की खेती शुरू की. उस समय बुंदेलखंड में पानी की बहुत बड़ी किल्लत थी. खेत में हैंडपंप से पानी निकालकर खेतों में सिंचाई करते थे.
उन्होंने बताया कि कई बार खेत में पानी का बोरिंग करवाया, लेकिन पानी नहीं निकला, नहरें सूखी पड़ी थी और पानी भी बहुत कम समय के लिए आता था. धीरे-धीरे केले की खेती करते रहे. 2014 के बाद से नहरों में पानी आने लगा, वहीं केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का बड़ा फायदा हुआ. जहां पानी की किल्लत थी, वहां खेतों में सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिलने लगा. वहीं पानी की समस्या से निपटने के लिए खेत में दो बड़े तालाब बनवाए हैं.
सूफिया बताती हैं कि बांदा के परम पुरवा गांव में 6 एकड़ में केले की खेती के साथ गिर गाय की गोशाला भी बनाई है. जिससे उनको बहुत अच्छा मुनाफा हो रहा है. इसके अलावा गेहूं, चना, मटर, मौसमी, अमरूद की कई वैरायटी समेत कई मौसमी फलों की समय-समय पर खेती करती हूं. वहीं मौसम के हिसाब से हरी सब्जियां जैसे टमाटर, भिंडी, लौकी की पैदावार भी हम अपने खेत में कर रहे है. साथ में ज्वार, बाजरा दलहन, तिलहन, श्रीअन्न आदि की खेती करते हैं.
उन्होंने बताया कि गिर गाय की गोशाला में आज 60 के करीब गाय हैं. जिससे दूध का उत्पादन से आमदनी हो रही है. वहीं गाय के दूध से देसी घी की मार्केट में डिमांड ज्यादा है. एक किलो देसी घी की कीमत 3700 रुपये है. जबकि दूध 60 रुपये लीटर के रेट से बिक जाता हैं. बुंदेलखंड में खेती और डेयरी के जरिए नई इबारत लिख रहीं सफल महिला किसान सूफिया खानम ने आगे बताया कि तालाबों से पूरे खेत में ड्रिप की मदद से सिंचाई होती है. उन्होंने कहा इन गायों की पीठ पर हाथ फेरती हूं तो उनको कोई बीमारी नहीं होती हैं.
खेती बाड़ी में सूफिया की मदद मुस्तकीम करते हैं. उन्होंने बताया कि खेतों में जैविक खाद का इस्तेमाल करने से कम लागत में बंपर उत्पादन होता है. जबकि उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है. सूफिया ने बताया कि केले की खेती, डेयरी समेत सभी फसलों की खेती से सालाना 30 से 25 लाख रुपये की बचत हो जाती है. व्यापारी हमारे खेत में आकर सारा माल हाथों हाथ खरीद कर ले जाते है. सूखे बुंदेलखंड क्षेत्र में केले की खेती समेत कई फसलों की खेती करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन आधुनिक कृषि तकनीकों, सही प्रबंधन और हौसले के बल पर सफलता पाना मुश्किल नहीं है.
बांदा के जिला उद्यान विभाग में तैनात नवनीत त्रिपाठी ने बताया कि परम पुरवा गांव की महिला किसान सूफिया खानम केला समेत कई मौसमी फलों की खेती कर रही हैं. वहीं सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक का इस्तेमाल करके खेती कर रही है. उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा ड्रिप सिंचाई सिस्टम के लिए महिला सूफिया खानम को अनुदान दिया गया था. समय-समय पर विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को नई-नई तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाता है. हमारा प्रयास रहता हैं कि बुंदेलखंड में हर एक किसान आत्मनिर्भर बनें.