सब्जियों की खेती किसानों की जिंदगी बदल रहा है. कई किसान सब्जी की खेती करके लाखों रुपए कमा रहे हैं. बिहार के खगड़िया की बसंती देवी भी ऐसी ही एक किसान हैं, जिनकी जिंदगी लौकी और बोरा की खेती से बदल गई. बसंती देवी 5 कट्ठा में खास किस्म के लौकी और बोरा उगाती हैं. जिससे उनकी अच्छी-खासी कमाई हुई है.
किसान बसंती देवी खगड़िया के तेलौंछ गांव की रहने वाली हैं. वो हर साल सब्जियों की खेती करती हैं और अच्छा-खासा मुनाफा कमाती हैं. बसंती देवी 5 कट्ठे में लौकीऔर बोरा की पौधे लगाती हैं. इससे 2 महीने में 40-45 हजार रुपए की कमाई हो जाती है.
बसंती देवी का कहना है कि उन्होंने सेबनी नस्ल की लौकी और काशी कंचन नस्ल के बोरा के पौधे लगाए थे. 40 दिनों के बाद दोनों फसल तैयार हो गईं. बसंती देवी खेतों में सिर्फ एक बार सिंचाई करती हैं. इसके साथ ही उसमें खाद का इस्तेमाल करती हैं. उनका कहना है कि वो दो दिन में एक बार लौकी की तुड़ाई करती हैं.
लौकी की खेती गर्म और मध्यम आर्द्रता वाले इलाके में होती है. इसकी खेती बारिश और गर्मी के मौसम में होती है. लौकी की बुआई गर्मी के मौसम में फरवरी से मार्च के बीच करनी चाहिए. जबकि बरसात में जून से जुलाई के बीच इसकी बुआई करनी चाहिए. पहाड़ी इलाकों में लौकी की बुआई मार्च से अप्रैल के बीच होती है.
लौकी की खेती रेतीली दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी होती है. इसके अलावा जीवांश युक्त चिकनी मिट्टी भी लौकी की खेती के लिए उपयुक्त होती है. मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता ज्यादा होनी चाहिए. मिट्टी का पीएच 6-7 के बीच होना चाहिए. जलजमाव वाली जगहों पर लौकी की खेती नहीं करनी चाहिए.
लौकी के बीजों को बुआई से एक दिन पहले पानी में भिगो देना चाहिए. मिट्टी को भूरभूरा होने तक जुताई करनी चाहिए. लौकी के खेतों में कतारों के बीच 2-2.5 और पौधों के बीच 45-60 सेंटीमीटर का फासला होना चाहिए. बीज को 1 से 2 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए. एक एकड़ में बिजाई के लिए 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है.
बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए. गर्मी के मौसम में पसल को 6-7 सिंचाई की जरूरत होती है. जबकि बरसात में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करनी चाहिए.
लौकी की फसल 60-70 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. नर्म फलों की तुड़वाई करनी चाहिए. 3-4 दिन में एक बार लौकी तोड़नी चाहिए.