बिहार के मगही पान की पहचान न सिर्फ बिहार बल्कि भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में फैली हुई है. पान की खासियत और अनोखे गुणों को देखते हुए बिहार के मगही पान को जीआई टैग (GI Tag) से नवाजा गया है. लेकिन भारत के विभिन्न राज्यों में पान के पत्तों की विभिन्न किस्मों की खेती की जा रही है. जिसकी अपनी अलग पहचान और स्वाद है. पान की किस्मों की बात करें तो वैज्ञानिक तौर पर पान की पांच प्रमुख किस्में पाई जाती हैं. जिसमें मगही, बंगला, सांची, देशावरी, कपूरी और मीठी पट्टी पाई जाती है. मगही पान के बाद बांग्ला पान की लोकप्रियता बहुत ज्यादा है. इस वजह से किसान भी इस किस्म की खेती अधिक से अधिक करते नजर आ रहे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं इस पान की खेती करने वाले किसानों की राय और बंगला यानी कलकतिया पान का क्या है इस्तेमाल.
कभी राजनीति में दबदबा रखने वाले महाराष्ट्र के अकोला जिले के अकोट निवासी रामचन्द्र ने हाल ही में खेती की ओर रुख करना शुरू कर दिया है. अब वह खेती में अलग-अलग प्रयोगों की मदद से लाखों की उपज ले रहे हैं. दरअसल, रामचन्द्र बरेठिया अपनी 20 एकड़ जमीन में कलकतिया यानी बांग्ला पान की खेती कर लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं. यह काम उन्होंने कृषि विभाग की मदद से किया है.
अकोट के पास रामचन्द्र का खेत है. इस खेत में वह कलकत्ता पान की खेती करते हैं. जिसका उपयोग खाने के लिए किया जाता है. इसे मीठा पान भी कहा जाता है. जिसके कारण इसकी डिमांड काफी ज्यादा है. अकोट एक तालुका है जो कभी पान उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था. हाल ही में ये पत्तेदार बगीचे धीरे-धीरे गायब होते दिख रहे हैं. हालाँकि, बरेठिया ने अपने 20 एकड़ के खेत में शेड नेट लगाकर कलकत्ता मीठे पान की खेती को सफल बना दिया है. इसके लिए उन्होंने कोलकाता से कलकत्ता मीठा पान लालडांडी के पांच हजार बेल वाले पौधे मंगवाये हैं. इन पौधों की कीमत उन्हें 1 लाख 5 हजार रुपये पड़ी. इस खेती के लिए उन्हें यूट्यूब और कृषि विभाग से सहयोग मिला.
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उन्हें नानाजी देशमुख कृषि संजीवनी परियोजना के अंतर्गत आंतरिक शेडनेट हाउस मिला है. शेडनेट हाउस का निर्माण 12.5 लाख रूपये की लागत से किया गया है. इस शेडनेट के लिए उन्हें 80 फीसदी की सरकारी सब्सिडी सुविधा भी मिली है. इसके अलावा उन्होंने मृदा परीक्षण यानी मिट्टी का निरीक्षण भी किया है कि मिट्टी की उपजाऊ क्षमता ठीक है या नहीं. शेडनेट हाउस आठ माह पहले बनकर तैयार हो गया है और आगे की तैयारी शुरू हो गयी है. शेडनेट हाउस पानी के छिड़काव के अलावा मल्चिंग पेपर और ड्रिप सिंचाई से लेस है.
कलकत्ता में मीठे पान की खेती के लिए उन्हें ढाई लाख रुपये तक खर्च करने पड़े. यह फसल साल के आठ महीने तह उपज देती है. इस पत्ते से किसानों को अगले दस से बारह साल तक आमदनी मिल सकती है. फिलहाल फार्म में पांच हजार लताएं हैं. पहली कटाई में प्रत्येक बेल से पाँच पत्तियां काटी जाएंगी. इस प्रकार एक महीने में तीन बार में 75 हजार पत्ते बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे यानी पहले कटाई में 25 हजार, दूसरे कटाई में 25 हजार और तीसरे कटाई में 25 हजार. कलकतिया के एक पत्ते की कीमत 3 से 5 रुपये तक हो सकती है. इसके अनुसार मासिक आय डेढ़ से दो लाख तक हो सकती है.
विदर्भ में, जहां पारंपरिक खेती होती है, पान की यह खेती एक नये बदलाव की शुरुआत कही जा सकती है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि अन्य किसान पान के पत्ते की खेती के महत्व और इससे होने वाले मुनाफे को समझेंगे, तो ये परिवर्तन और भी तेजी से आगे बढ़ेगा.