वैसे तो पंजाब में अधिकतर गेहूं, मक्का, गन्ना और धान की ही खेती की जाती है. कुछ किसान आम पारंपरिक फसल जैसे सब्जियों में आलू, मटर, प्याज, गोभी, मूली और गाजर और अन्य आम मंडी में मिलने वाली सब्जियों पर ही निर्भर रहते हैं. इन्हीं फसलों की बार-बार खेती करते हैं. चाहे उन्हें फायदा मिले या फिर नुकसान हो. लेकिन न्यूजीलैंड से वापस लौटे होशियारपुर के मनिंदर सिंह संदर ने कुछ अलग ही करने की ठानी. इसके चलते उन्होंने अपनी छह कैनाल खेती की जमीन में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने का मन बनाया और उसमें कामयाबी भी हासिल की.
ड्रैगन फ्रूट की खेती आमतौर पर पंजाब में नहीं की जाती, इसलिए मनिंदर को कुछ दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और यूट्यूब चैनल और खेती विशेषज्ञों से जानकारी हासिल करके तीन साल पहले अपनी पुश्तैनी जमीन में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की जिसमें आज उन्होंने सफलता हासिल की.
मनिंदर सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि न्यूजीलैंड से वापस आने के बाद वे कुछ अलग करना चाहते थे. उन्होंने सोशल मीडिया पर देखा कि ड्रैगन फ्रूट की खेती पंजाब में करना संभव है. उसके बाद जो भी पुराने फार्म हाउस जहां पर ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाती है, वहां पर जाकर उन्होंने विजिट किया और उनसे बात की. उन्होंने बताया कि इस खेती में वे सफल रहे हैं.
मनिंदर सिंह ने बताया कि फरवरी मार्च के महीने में इस खेती की फसल को लगाया जा सकता है. ड्रैगन फ्रूट की फसल दूसरी फसलों की तरह तुरंत फल नहीं देती है. ड्रैगन फ्रूट की खेती का फल कम से कम एक साल बाद आने लगता है, लेकिन खाने लायक फल दूसरे साल में ही प्राप्त किया जा सकता है. दूसरी बात यह है कि एक एकड़ जमीन में इस फसल को लगाने के लिए काफी खर्च आ जाता है.
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युवा किसान ने बताया कि एक एकड़ जमीन में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने में लगभग पांच लाख रुपये का खर्च आता है. मनिंदर सिंह ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट अधिकतर डेंगू के मरीजों के लिए लाभदायक होता है. इस बीमारी से मरीज के सेल बहुत कम हो जाते हैं, लेकिन ड्रैगन फ्रूट खाने से डेंगू की बीमारी के शिकार व्यक्ति को सेल पूरा करने के लिए ये फल बहुत ही लाभदायक होता है.
मनिंदर सिंह ने बताया कि इसकी डिमांड गर्मी के सीजन में अधिक होती है. इस सीजन में इस फल की डिमांड पहले से ही रहती है. यहां तक कि मंडी में भी बेचने के लिए नहीं जाना पड़ता. खुद ही व्यापारी हमारे पास आते हैं. यहां तक कि व्यापारियों की डिमांड इतनी अधिक होती है कि उनकी डिमांड एक सीजन में पूरी नहीं हो पाती है.
मनिंदर सिंह ने बताया कि विदेश से वापस आने से पहले उन्होंने सोच रखा था कि कुछ अलग करेंगे. पहले भी वे गांव में खेती ही करते थे. इसलिए खेती की तरफ उनका झुकाव पहले से ही था. मनिंदर सिंह ने बताया कि इस फसल से आमदनी भी अच्छी हो जाती है और होशियारपुर में 300 रुपये किलो ड्रैगन फ्रूट बिक रहा है. वहीं एक फल का वजन ढाई सौ ग्राम होता है और एक किलो में चार पीस मिलते हैं. एक बड़ा पीस 100 रुपये में मिलता है.
मनिंदर सिंह ने सरकार से मांग की है कि इस फसल पर खर्च बहुत ज्यादा होता है, इसलिए सरकार ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसानों को अधिक से अधिक सब्सिडी दें, ताकि किसान इस फसल की तरफ आकर्षित हों और रुटीन की फसलों से हटकर इस फसल को भी अपनी खेती-बाड़ी में शामिल करें. सब्सिडी मिलने से छोटे किसान भी इस फसल को लगाने के लिए आकर्षित होंगे. यह फसल लगाना उनकी पहुंच से बाहर नहीं होगा.