कृषि क्षेत्र और किसान दोनों का विकास मोदी सरकार के प्रमुख एजेंडे में शामिल है. इसलिए लोकसभा के चुनावी वर्ष 2024 से पहले खेती पर सरकार विशेष फोकस करने वाली है. क्योंकि 14 करोड़ से अधिक किसान परिवार एक बड़े वोट बैंक भी हैं. साल 2022 में सरकार ने किसानों की आय डबल करने का वादा किया था. ऐसे में अब 2023 में हर ओर से उस पर इससे जुड़े सवालों की बौंछार होगी. सरकार ने इस अहम मसले को अपने एजेंडे में रखा था. कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि किसानों की आय को लेकर इस साल कोई सर्वे आ सकता है या फिर किसी भी तरह से किसानों को ज्यादा मदद देकर उनकी हालत सुधारने की कोशिश हो सकती है.
किसानों पर आर्थिक बोझ न पड़े इसके लिए सरकार फर्टिलाइजर सब्सिडी बढ़ाती जा रही है. इस वित्त वर्ष के अंत तक यह 2.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है. जबकि कोविड काल से पहले यह 70-80 हजार करोड़ रुपये ही होती थी. यानी किसानों पर पड़ने वाली महंगाई के बोझ को सरकार खुद उठा रही है. ऐसे में सरकार इस बात को लेकर सजग दिखाई दे रही है कि किसी भी सूरत में किसानों का कोई मुद्दा बड़ा न हो जाए. आईए समझते हैं कि 2023 में कृषि क्षेत्र में कौन-कौन से बड़े काम हो सकते हैं.
इस साल के लिए भारत के लिए बड़ी सफलता यह है कि मिलेट ईयर के जरिए मोटे अनाजों की वापसी हो रही है. पूरे साल दुनिया भर के देश इससे जुड़े कार्यक्रम करेंगे, ताकि इन पौष्टिक अनाजों की पहुंच सबकी थाली तक हो. भारत सबसे बड़ा मिलेट उत्पादक है. संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक दुनिया भर में 735.55 लाख हेक्टेयर में मिलेट्स की खेती हो रही है. इसमें से अकेले 143 लाख हेक्टेयर का एरिया भारत में है. यहां सालाना करीब जिसमें 162 लाख टन मोटे अनाजों का उत्पादन होता है. मोटे अनाजों की मांग बढ़ेगी तो किसानों को फायदा होगा, क्योंकि इसकी खेती में लागत कम आती है.
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की खपत कम करके 'जहरमुक्त' अनाज, फल-सब्जियां पैदा करने और मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए इस साल सरकार प्राकृतिक खेती पर जोर देगी. इस साल इसे हर पंचायत स्तर तक पहुंचाने की पहल होगी. प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए पूरे देश में 30 हजार कलस्टर बनाए गए हैं. इसके तहत 10 लाख हेक्टेयर को कवर किया जाएगा.
मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे कई राज्यों में प्राकृतिक कृषि बोर्ड का गठन करके ऐसी खेती को विस्तार देने का काम शुरू किया गया है. हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज) को प्राकृतिक खेती के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाया गया है. जहां इसके लिए मास्टर ट्रेनर तैयार किए जा रहे हैं. नमामि गंगे वाले राज्यों यूपी, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में ऐसी खेती को बढ़ाने के लिए इस साल काफी जोर होगा.
इस साल कृषि क्षेत्र के लिए जो बड़े काम होने हैं उनमें नैनो डीएपी प्रमुख है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने सुझाव दिया है कि इसे एक वर्ष के लिए अस्थायी रूप से जारी किया जाए. ऐसे में इस साल किसानों को नैनो डीएपी भी उपलब्ध हो जाएगी. इससे डीएपी पर किसानों का होने वाला खर्च कम हो जाएगा और अब उन्हें 50 किलो की बोरी उठाने की जरूरत नहीं होगी. नैनो डीएपी के 500 एमएल की बोतल का दाम 600 रुपये होगा. जो सामान्य डीएपी के 50 किलो के बराबर होगा. नैनो यूरिया का पहले ही विकास हो चुका है. अब नैनो जिंक, नैनो कॉपर पर भी काम चल रहा है.
कृषि क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इस साल किसानों को मिलने वाली नगद सहायता में वृद्धि हो सकती है. पीएम किसान स्कीम के तहत मिलने वाली रकम को सरकार 6000 रुपये से बढ़ाकर 8000 या 10,000 रुपये सालाना कर सकती है. इसकी एक वजह फर्जी लाभार्थियों का स्कीम से बाहर किया जाना भी है. सरकार ने दिसंबर 2018 में योजना की शुरुआत करते हुए सभी 14 करोड़ किसान परिवारों को इसका पैसा देने का लक्ष्य रखा था. लेकिन सभी किसान इसकी पात्रता के मानदंडों पर खरे नहीं उतरे. अब तो मात्र 8.5 करोड़ किसान इसके लिए पात्र रह गए हैं.
ऐसे में सरकार के पास इसके तहत मिलने वाली रकम बढ़ाने का पूरा फंड है. मध्य प्रदेश में पहले से ही राज्य सरकार के सहयोग से हर किसान को सालाना 10-10 हजार रुपये का डायरेक्ट सपोर्ट मिल रहा है. किसान संगठन पीएम किसान स्कीम की रकम में वृद्धि करने की लगातार मांग उठा रहे हैं.
अक्टूबर से शुरू हुए गन्ना सीजन 2022-23 में सरकार चीनी के साथ-साथ इथेनॉल बनाने पर भी जोर देगी. इस साल 50 लाख टन सरप्लस चीनी को इथेनॉल में बदलने का टारगेट है. इतना बड़ा लक्ष्य कभी नहीं रखा गया था. खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन इथेनॉल आपूर्ति वर्षों (दिसंबर-नवंबर) में चीनी मिलों ने ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को इथेनॉल बेचकर 48,573 करोड़ रुपये की कमाई की है.
इससे चीनी मिलों और शीरा आधारित डिस्टिलरियों को समय पर किसानों को पैसा देने में मदद मिली है. चीनी सीजन 2018-19 में सिर्फ 3.37 लाख टन चीनी ही इथेनॉल में बदली गई थी. इसे लगातार बढ़ाया जा रहा है. सरकार का कहना है कि चीनी की बिक्री में 3 से 15 महीने का समय लगता है. जबकि इथेनॉल बेचकर चीनी मिलों के खातों में लगभग 3 सप्ताह में ही पैसा जमा हो जाता है. इससे गन्ना किसानों का बकाया मिलने में आसानी होगी.
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