टिशू कल्चर आधारित केले की खेती से कम समय में अधिक मुनाफा मिलता है. यही वजह है कि बिहार सरकार टिशू कल्चर आधारित केले की खेती पर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है.
बिहार में केला की खेती करने वाले किसान कम समय में अधिक मुनाफा के लिए टिशू कल्चर से तैयार पौधों की खेती कर रहे हैं. टिश्यू कल्चर विधि खेती की एक तकनीक है. इसमें कम समय में ही फसल तैयार हो जाती है. समय कम लगने के साथ ही पौधे की क्वालिटी बेहतर होती है. साथ ही पौधे अधिक हेल्दी होते हैं.
इन पौधों पर फल अन्य पौधों की तुलना में जल्दी आ जाता है. एक साधारण केले के पौधे में फल 10 से 12 महीने में आता है, जबकि इसमें करीब आठ महीने में फल आने लगता है. वहीं उपज बढ़ने से किसानों की इनकम बढ़ जाती है. देश में बड़ी संख्या में किसान इस तरह की खेती करना पसंद करते हैं.
टिशू कल्चर केले की ऊंचाई चार से पांच फीट तक होती है, जिसके फल आसानी से तोड़ा जा सकता है. इसके साथ ही प्रबंधन बेहतर तरीके से हो पाता है. इसकी खेती करने वाले किसानों को ध्यान देने की जरूरत है कि एक स्थान पर तीन पौधों से ज्यादा पौधा नहीं लगाना चाहिए.
राज्य सरकार एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के तहत टिशू कल्चर तकनीक से केले की खेती करने पर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है. वहीं सरकार ने प्रति हेक्टेयर केले की खेती पर इकाई लागत 1 लाख 25 हजार की राशि निर्धारित किया है.
किसानों को प्रति हेक्टेयर साढ़े 62 हजार की राशि सरकार द्वारा सब्सिडी के तौर पर दिया जाएगा. किसान राज्य सरकार की आधिकारिक वेबसाइट के लिंक पर जाकर आवेदन कर इस योजना का लाभ उठा सकते हैं.