
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी मणिपुर दौरे के बाद मंगलवार को यूपी पहुंचे. यूपी में अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली पहुंचे राहुल गांधी ने कई कार्यक्रमों में शिरकत की, लेकिन राहुल गांधी का रायबरेली शहीद स्मारक पर वृक्षारोपण कार्यक्रम देश की किसान राजनीति में महत्वपूर्ण मैसेज देता हुआ दिखाई दे रहा है. असल में राहुल गांधी का रायबरेली शहीद स्मारक पर वृक्षारोपण कार्यक्रम बतौर नेता प्रतिपक्ष सदन में MSP पर केंद्र सरकार का घेराव करने के बाद दूसरा ऐसा प्रयास दिखाई दे रहा है, जिसमें वह किसानों को लेकर मैसेज देते हुए दिखाई दे रहे हैं.
आइए इसी कड़ी में जानते हैं कि रायबरेली शहीद स्मारक की कहानी क्या है. इससे किसान कैसे जुड़े हैं. साथ ही डिकोड करने की कोशिश करेंगे कि राहुल गांधी ने रायबरेली शहीद स्मारक पर जाकर देश की किसान राजनीति को लेकर कौन सा मैसेज देने की कोशिश की है.
रायबरेली शहीद स्मारक स्थल जिले के मुंशीगंज में स्थित है. इसे आजादी से पूर्व शहीद हुए किसानों की स्मृति में बनाया गया था, जो एक आंदोलन में शहीद हो गए थे. देश के स्वतंत्रता में इस किसान आंदोलन को मुंशीगंज गोलीकांड भी कहा जाता है.
असल में 5 जनवरी 1921 को सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ मुंशीगंज कस्बे में एक किसान रैली का आयोजन किया गया था, जिसमें आस-पास के कई गांवों के किसानों ने शिरकत की. आंदोलन को असफल करने के लिए अंग्रेज अधिकारी एजी शेरिफ ने रैली के आयोजक नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जिसके विरोध में 7 जनवरी को मुंंशीगंज में किसानों का बड़ी संख्या में जुटान हुआ. तो वहीं किसानों को रोकने के लिए बड़ी मात्रा में पुलिस बल की तैनाती की गई.
इस आंदोलन की गंभीरता को भांपते हुए जवाहर लाल नेहरू भी मुंशीगंज के लिए रवाना हुए, लेकिन उन्हें कलेक्ट्रेट परिसर के पास ही रोक दिया गया. तो वहीं मुंशीगंज में पुलिस ने गोलियाें के राउंड खोल दिए. जिसमें 750 से अधिक किसानों की मौत हो गई तो वहीं 1500 से अधिक किसान घायल हो गए, माना जाता है कि इस किसान गोलीकांड के बाद आजादी के आंदोलन में किसानों की भागीदारी बड़ी थी.
वहीं मुंशीगंज स्थित रायबरेली शहीद स्मारक पर जवाहर लाल नेहरू के स्मरण बयां करता हुए एक शिलापट भी लगा हुआ है, जो इस केस के सिलेसिल में उनके जुलाई 1921 में अदालत पर दिए बयान पर आधारित है. इस सिलापट पर लिखा हुआ है..''गांव-गांव जहां गया, मुझको कसरत से लोग मिले. इस फायरिंग का दुखड़ा रोते थे.वापसी में मैंने चंद लाशें देखी,जो एक तांगे में बेतरतीबी के साथ पड़ी थी. यह तांगा बगैर घोड़े के मुंशीगंज के पुल के पास खड़ा था. इन लाशों पर कपड़ा पड़ा था, लेकिन टांगे निकली हुई थी. मेरे ख्याल से एक दर्जन टांगे निकली रही होंगी. ये भी मुमकिन है कि दस रही हो या चौदह.
राहुल गांधी का रायबरेली से गहरा नाता रहा है. उनकी मां सोनिया गांधी यहां से लोकसभा के लिए निर्वाचित होती रही हैं. तो वहीं इस लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी पहली बार रायबरेली से निर्वाचित हुए हैं साथ ही वह पहली बार नेता प्रतिपक्ष भी बनाए गए हैं, जिसके बाद राहुल गांधी पहली बार रायबरेली पहुंचे हैं और बतौर नेता प्रतिपक्ष पहले रायबरेली दौरे में राहुल गांधी ने किसान शहीद स्मारक पर अपनी हाजिरी लगाई है, जिसे राहुल गांधी की नेहरू कि किसान राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है.
असल में जिस तरीके से सदन में राहुल गांधी ने बीते दिनाें तीन कृषि आंदोलन में शहीद हुए 700 किसानों का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार का घेराव करने की कोशिश की थी. राहुल गांधी के अंदाज को देखते हुए अब ये कहा जा सकता है कि वह रायबरेली किसान नरसंहार की तुलना बीते किसान आंदोलन से करते हुए केंद्र सरकार की तुलना अंग्रेज सरकार से कर सकते हैं. साथ ही वह रायबरेली किसान आंदोलन में नेहरू की भूमिका का जिक्र करते हुए संभवत: ये जरूर मैसेज देंगे कि तब भी कांग्रेस किसानों के साथ थी और आज भी कांग्रेस किसानों के साथ खड़ी है.
रायबरेली शहीद स्मारक स्थल, जवाहर लाल नेहरू की किसान राजनीति और राहुल गांधी की मौजूदा भूमिका पर लंबी चर्चा की जा सकती है, लेकिन ये सच है कि किसान राजनीति को धार देना राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए बेहद ही जरूरी है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो देश की मजबूत होती किसान राजनीति राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए संजीवनी है. जिसके प्रभावी असर से ही मरणासन्न कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने में सफलता मिली है और राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बने.
देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इस बढ़ती अर्थव्यवस्था की गाड़ी में कृषि का पहिया पंचर होता हुआ दिखाई दे रहा है और इस पंचर पहिये के नीचे किसान फंंसा हुआ है. नतीजतन, किसान संगठन आंदोलन कर रहे हैं. बड़ी संख्या में किसान MSP गारंटी कानून लागू होने का इंंताजार कर रहे हैं. इसका प्रमुख कारण ये है कि किसानों को सरकार की तरफ से घोषित MSP ही नहीं मिल पाता है.
तो वहीं खेती में बढ़ती लागत और कम होता मुनाफा, बढ़ता कर्ज, किसान आत्महत्या, फसल उत्पाद एक्सपोर्ट-इंपोर्ट नीतियां भी किसानों के लिए बड़ी चुनौतियां हैं. जिसको लेकर किसान आंदोलन के मूड में है और कांग्रेस सत्ता की चाबी पाने के लिए इन मुद्दों के साथ किसानों की हमराह बनने की कोशिश कर रही है. बेशक इन समस्याओं की जननी के तौर पर कांग्रेस की पूववर्ती सरकारों काे भी कटघरे में खड़ा किया जा सकता है.