किसानों के मुद्दे पर शिवसेना यूबीटी का महाराष्‍ट्र सरकार पर हमला, 'सामना' में अज‍ित पवार पर की टिप्‍पणी

किसानों के मुद्दे पर शिवसेना यूबीटी का महाराष्‍ट्र सरकार पर हमला, 'सामना' में अज‍ित पवार पर की टिप्‍पणी

शिवसेना यूबीटी ने 'सामना' के संपादकीय में महाराष्ट्र सरकार पर तीखा हमला करते हुए लिखा कि तीन इंजनों वाली सरकार किसानों को कुचल रही है. कर्जमाफी के वादे अधूरे हैं, मदद की जगह कॉन्ट्रैक्टर्स को फायदा मिल रहा है. लातूर की तस्वीर किसानों की बदहाली को दिखाती है.

Maharashtra Farmer Couple viral photo Samna EditorialMaharashtra Farmer Couple viral photo Samna Editorial
क‍िसान तक
  • Mumbai,
  • Jul 04, 2025,
  • Updated Jul 04, 2025, 12:12 PM IST

इन दिनों देश में महाराष्‍ट्र के किसानों की आत्‍महत्‍या का मुद्दा चर्चा में बना हुआ है. वहीं, लातूर से बुजुर्ग किसान दंपती की बिना बैल खुद ही हल से खेत जोतने की तस्‍वीर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. मामले को लेकर राजनीति भी तेज है. इस बीच, शिवसेना यूबीटी ने सामना के संपादकीय में इसे लेकर महाराष्‍ट्र सरकार पर निशाना साधा है. पढ़े सामना के संपादकीय में क्‍या लिखा है...

"कुत्ते का आदमी को काटना आम बात है, लेकिन आदमी कुत्ते को काटे तो खबर बन जाती है. लातूर में अंबादास पवार नाम के एक वृद्ध किसान की तस्वीर, जिन्होंने खुद को बैलों की जगह हल से बांध लिया और जुताई की, 2 जुलाई 2025 को ‘सामना’ के पहले पन्ने पर छपी और महाराष्ट्र विधानसभा हिल गई.

इस तस्वीर ने राज्य के किसानों की हालत को दुनिया के सामने ला दिया. कोरोना काल में गंगा में तैरती लाशों की तस्वीर ने दुनिया में उतनी ही सनसनी मचाई जितनी अंबादास पवार की हल से जुते फोटो ने. मानवता पर कलंक लगाने वाली यह तस्वीर महाराष्ट्र की है. इस महाराष्ट्र का नेतृत्व कर रहे फडणवीस, शिंदे और पवार के लिए यह शर्म की बात है.

अजित पवार पर टिप्‍पणी

वित्त मंत्री अजित पवार बारामती के ‘मालेगांव’ चीनी कारखाने का चुनाव जीतने के लिए प्रति वोट 20,000 रुपये खर्च करते हैं, लेकिन उनके राज्य के लातूर में अंबादास पवार बैल नहीं खरीद सकते हैं और खुद को हल से बांध लेते हैं. ऐसी तस्वीर कई गुलाम देशों में देखने को मिलती थी, लेकिन अब यह आजाद हिंदुस्‍तान में भी दिखने लगी है.

विकसित, समृद्ध राज्य होने का दंभ भरनेवाले महाराष्ट्र को कलंकित करनेवाली इस तस्वीर से कितने राजनेताओं का दिल पसीजा? यह एक तस्वीर तो सामने आई है, लेकिन राज्य में ऐसे अनगिनत अंबादास पवार हलों में जुते हुए हैं. यह महाराष्ट्र में अल्प भू-धारक किसानों की दुर्दशा की एक प्रतिनिधि तस्वीर है. लातूर जिले के हाडोल्टी के बुजुर्ग किसान अंबादास पवार के पास बमुश्किल ढाई एकड़ कृषि भूमि है और वह भी सूखी है.

'मन को झकझोर देनेवाली स्थिति'

बुवाई से पहले की खेती और दूसरे कामों के लिए वे ट्रैक्टर या बैल के इस्तेमाल की लागत वहन करने में असमर्थ होने के चलते अंबादास पवार और उनकी बूढ़ी पत्नी दोनों खेतों में जुट जाते हैं. बेटा पुणे में छोटा-मोटा काम करता है. पोते-पोतियों की पढ़ाई और सालाना खर्च का जोड़-तोड़ कहीं नहीं हो पाता, इसलिए शरीर के थक जाने के बावजूद खुद बैलों की जगह अंबादास पवार जुत जाते हैं और उनकी बूढ़ी पत्नी पीछे हल चलाती हैं. यह मन को झकझोर देनेवाली स्थिति है. 

हम किसान को अन्न दाता कहते हैं, किसान को राजा कहते हैं और देखिए आज वही राजा कंगाल हो गया है! महाराष्ट्र में दो से पांच एकड़ कृषि भूमि वाले तमाम छोटे किसानों की हालत आज अंबादास पवार जैसी है और महाराष्ट्र के शासकों के पास किसानों की दिन-ब-दिन बिगड़ती स्थिति पर ध्यान देने की फुर्सत नहीं है. कृषि उत्पादों का मूल्य नहीं मिल रहा है, दूसरी ओर बीज और खाद के दाम दोगुने हो गए हैं. मजदूरी की लागत पहुंच से बाहर हो गई है.

'सरकार कर्जमाफी के मुद्दे पर चुप'

कभी सूखा, कभी भारी बारिश, प्राकृतिक आपदाओं के दुष्चक्र में जूझ रहे किसानों की मदद करने के बजाय सरकार उन्हें फांसी के फंदे की ओर धकेलने का पाप कर रही है. विधानसभा चुनाव से पहले, इस तीन-पक्षीय महायुति सरकार ने घोषणा की थी कि वह ‘किसानों का कर्ज माफ करेगी’. लेकिन चुनाव जीतने के बाद सरकार की तीनों जुबां किसानों की कर्जमाफी के मुद्दे पर चुप हैं. महाराष्ट्र में जनवरी से मार्च तक तीन महीनों में 767 किसानों ने आत्महत्या की.

अगर सरकार चुनाव से पहले अपना वादा पूरा करती और कर्जमाफी करती तो कम से कम इनमें से कुछ किसानों की जान बेशक बच जाती. मुख्यमंत्री कहते हैं कि हम सही समय पर कर्जमाफी करेंगे. अब सवाल यह है कि सही समय कब है? और कितने किसानों की आत्महत्या के बाद सरकार कर्ज माफी का मुहूर्त निकालनेवाली है? तीन दलों का गठबंधन खुद को ‘ट्रिपल इंजन सरकार’ कहता है, लेकिन इस सरकार के तीनों इंजनों को किसानों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है.

'सरकार को किसानों की परवाह नहीं'

भले ही किसान मर जाएं, अन्न दाता बर्बाद हो जाएं, लेकिन सरकार के चरणों में अपना थैला चढ़ानेवाले कॉट्रैक्टर और ठेकेदार जिंदा रहें, यही इस सरकार की नीति है. राज्य के किसान बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि में बर्बाद हो जाएं तो भी सरकार को उनकी जरा भी परवाह नहीं है. उलटे यह ट्रिपल इंजन की सरकार किसानों को कुचलकर ठेकेदारों और मलाई के पीछे तेजी से दौड़ रही है. राज्य में किसी की ओर से कोई मांग नहीं थी. बावजूद इसके इस सरकार ने नागपुर से गोवा जानेवाले शक्तिपीठ राजमार्ग का खेल खेला है सिर्फ इसी वजह से. 

सरकार के तीनों इंजन किसानों की जमीन जबरन हड़पकर और उन्हें दबाने के लिए पुलिस बल का प्रयोग करके किसानों को कुचलने पर तुले हुए हैं. महाराष्ट्र के मौजूदा हुक्मरान किसानों के दुश्मन हैं. उन्होंने किसानों को कर्जमाफी का लालच देकर चुनाव जीता, लेकिन सत्ता में आने के बाद वे इस बारे में बात करने को तैयार नहीं हैं. इस साल के पहले तीन महीनों में महाराष्ट्र में 767 किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन इस सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

सरकार के पास हजारों करोड़ खर्च कर शक्तिपीठ हाईवे बनाने के लिए पैसे हैं, लेकिन किसानों के कर्ज माफ करने के लिए पैसे ही नहीं हैं. महाराष्ट्र को यह देखकर झटका लगा कि लातूर के एक बूढ़े किसान अंबादास पवार ने बैल की लागत वहन न करने की वजह से खुद को हल में जोत लिया, लेकिन क्या इससे किसानों की जान की दुश्मन बनी पत्थर दिल सरकार का मन पसीजेगा?" 

(आर्टिकल सोर्स- विद्या)

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