राष्ट्रीय फलक पर एक बार फिर जमुई का नाम चर्चा में है. अपने जीवन के महत्वपूर्ण 53 साल जंगलों की खाक छानने के बाद 81 साल की उम्र में जमुई के एक किसान को 12 सितंबर को नई दिल्ली में राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाना है. केंद्र सरकार के इस निर्णय से न केवल जमुई बल्कि पूरे प्रदेश का नाम रोशन हुआ है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा औषधीय पौधों के संरक्षण को लेकर जमुई जिला के लक्ष्मीपुर प्रखंड के चिनबेरिया गांव के अर्जुन मंडल को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जाएगा. जमुई के चिनबेरिया गांव की यह आरोग्य वाटिका आज प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में चर्चा में है.
इस आरोग्य वाटिका को बनाने वाले 81 वर्षीय बुजुर्ग अर्जुन मंडल को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलेगा. नई दिल्ली में 12 सितंबर को महामहिम अपने हाथों से अर्जुन मंडल को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करेंगी. अर्जुन मंडल को 2021-22 के प्लांट जीनोम सेवियर फार्मर्स अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा. PPV and FRA और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के रजिस्ट्रार ने अर्जुन मंडल को पत्र द्वारा इसकी सूचना दी है.
1969 में होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज भागलपुर से डिप्लोमा करने के बाद अर्जुन मंडल ने औषधीय पौधे की खेती शुरू की और 1970 से नर्सरी में औषधीय पौधा लगाना शुरू किया. अर्जुन मंडल पिछले 53 साल से जंगल, पहाड़ और कंदराओं की खाक छानकर अपने आरोग्य वाटिका में औषधीय पौधों का संरक्षण किया है.
अर्जुन मंडल इन औषधीय पौधों का न सिर्फ संरक्षण करते आ रहे हैं, बल्कि उसको अपने दैनिक जीवन में इस्तेमाल भी करते हैं और उनके इसी प्रयास को देखते हुए उनका चयन राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए किया गया है. अर्जुन मंडल ने औषधीय बगीचा बनाया है, जिसमें दो सौ से भी अधिक प्रजाति के 20 हजार से भी अधिक पौधे उपलब्ध हैं.
आरोग्य वाटिका का कोई भी पौधा अनुपयोगी नहीं है, बल्कि हर पौधे की कुछ न कुछ खासियत है. हर पौधे का किसी न किसी बीमारी के उपचार में इस्तेमाल होता है. आरोग्य वाटिका में ऐसे पौधे भी हैं जिसके इस्तेमाल से महिला के जीवन में होने वाली गंभीर समस्याओं से भी बचा जा सकता है.
राष्ट्रीय पुरस्कार से चयनित किसान अर्जुन मंडल का लक्ष्य यह है कि हर गांव में औषधीय पौधा पहुंचे और हर किचन में एक औषधी किचन गार्डन हो. अर्जुन मंडल द्वारा तैयार की गई आरोग्य वाटिका दुर्लभ पौधों का खजाना है. यही नहीं विलुप्त हो रहे औषधीय पौधों को घरों में लगाने के लिए लोगो को प्रेरित भी करते आ रहे हैं.
उन्होंने अपने आरोग्य वाटिका में मालकांगनी, गरुड़ तरु, लक्ष्मीतरु, नील, दमबेल, बाकस, गोरखमुंडी उल्टा कमल, चारु पुत्र, कुचला, दर्द मेडा, अपरस, दहीपलाश, ईश्वर फुल, गुलमार जैसे दुर्लभ प्रजाति के औषधीय पौधों को संरक्षित कर रखा है. आरोग्य वाटिका में बीज से भी दुर्लभ प्रजाति के औषधीय पौधे तैयार होते हैं, जिसकी मांग सिर्फ बिहार ही नहीं दूसरे प्रदेशों में भी है.