गेहूं की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है. चावल के बाद देश के भोजन के तौर पर सबसे अधिद गेहूं की ही खपत होती है. इसलिए किसानों को इसकी खेती से संबंधित पूरी जानकारी होनी चाहिए, ताकि किसानों को इसकी खेती में नुकसान नहीं हो और वो अच्छी उपज हासिल कर सकें. बदलते वक्त और जमीन खत्म होती उपजाऊ क्षमता के बीच गेहूं की खेती में जिंक का उपयोग बेहद महत्वपूर्ण हो गया है. पर इसके बावजूद भारतीय किसान गेहूं की खेती में जिंक का प्रयोग नहीं करते हैं. इसकी जगह पर वे सल्फर का उपयोग करते हैं जबकि भारत में खेतों की मिट्टी में जिंक की कमी पाई जाती है. जिंक एक ऐसी चीज है जिसे सिर्फ साल में एक बार खेत में इस्तेमाल करने पर साल पर फिर दोबारा इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं होती है.
अगर किसान धान के खेत में जिंक डालते हैं और फिर उसी खेत में धान की कटाई के बाद गेहूं की खेती करते हैं तो उन्हें खेत में जिंक डालन की जरूरत नहीं होती है. पर गेहूं की खेती में अगर जिंक की कमी के लक्षण दिखाई पड़ते हैं तो फिर खेत में जिंक का प्रयोग करना पड़ता है. पर गेहूं में जिंक की कमी है इसका पता कैसे लगाएं, इसके लिए जिंक की कमी से होने वाले लक्षण की जानकारी होनी चाहिए. सबसे पहले जानते हैं कि जिंक की कमी के कारण क्या होता है. जिंक की कमी के कारण गेहूं की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं. साथ ही पौधों की बढ़वार रुक जाती है.
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गेहूं की खेती में भले की कम मात्रा में जिंक की आवश्यकता होती है पर इसकी खेती के लिए यह बेहद जरूरी है. गेहूं की बेहतर बढ़वार के लिए जिंक बेहद जरुरी है. इससे पौधों में हरापन आता है और अधिक कल्लों का फुटाव होता है. इसलिए गेहूं की खेती के लिए यह जरूरी तत्व माना जाता है. अगर एक बार गेहूं के खेत में जिंक डाला जाता है तो गेहूं का पौधा सिर्फ 5 से 10 फीसदी जिंक ही ले पाता है. बाकी खेत में ही रहता है. इसके साथ ही अगर खेत में जिंक का इस्तेमाल किया जाता है तो फिर अलग से ग्रोथ प्रमोटर डालने की जरूरत नहीं पड़ती है. इसके साथ ही किसानों को एक बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि उन्हें अपनी मिट्टी की जांच करानी चाहिए ताकि उन्हें पता चल सके कि खेत में किस चीज की कमी है.
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जिंक के फायदे जानने के बाद यह जानना जरूरी है कि कितनी मात्रा में इसका इस्तेमाल करना चाहिए. वैसे किसान जो बुवाई के समय जिंक का प्रयोग नहीं करते हैं और उन्हें बाद में लगता है कि उनके खेत में जिंक की कमी हो गई है तो प्रति एकड़ में जिंक सल्फेट 33 प्रतिशत की 6 किलो मात्रा का छिड़काव कर सकते हैं. या फिर जिंक सल्फेट की 21 फीसदी मात्रा का 10 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से यूरिया मिलाकर पहली सिंचाई के दौरान डाल सकते हैं. इसके अलावा जो किसान सीधे खेत में जिंक नहीं डालना चाहते हैं, वह स्प्रे के माध्यम से भी डाल सकते हैं. स्प्रे तैयार करने के लिए 800 ग्राम जिंक का 33 फीसदी को 200 लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं. इसके अलावा अगर किसान चिल्टेड जिंक का इस्तेमाल करते हैं तो 150 ग्राम प्रति एकड़ की का उपयोग कर सकते हैं.