मशरूम की खेती से किसान सफलता की नई ऊंचाईयों तक पहुंच सकते हैं. हरियाणा के कैथल के भूसल गांव के रहने वाले किसान बलदेव सिंह चीमा इसके एक बेहतरीन उदाहरण हैं. बलदेव सिंह 22 साल पहले बेहतर जीवन की तलाश में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पंजाब के होशियारपुर चले गए. उनकी सफलता की कहानी यही से शुरू होती है. यहां उन्होंने अपने एक रिश्तेदार की सलाह पर लोन लेकर होशियारपुर के माहिलपुर ब्लॉक अंतर्गत थुआना गांव में 3.75 एकड़ जमीन खरीदी. यह गांव पठारी क्षेत्र है. यहां पर पारंपरिक खेती करने में कई सारी चुनौतियां थी इसलिए उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की.
फिर अपने हुनर और सरकारी मदद से वो आगे बढ़ते गए. आज वो बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती करते हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बलदेव सिंह बताते हैं कि भूसल में उनकी एक एकड़ जमीन मार्कंडा नदी के पास थी और अधिक समय तक बाढ़ में डूबी रहती थी. हर बार खेती में उन्हें नुकसान होता था. इसलिए उन्होंने इस जगह को छोड़कर दूसरी जगह जाने का फैसला किया. अब उन्हें लगता है कि उनका फैसला सही था. आज वह मशरूम की खेती के साथ धान की खेती की भी करते हैं. इस तरह से एक जमीन पर वो एक साल में दो फसल लेते हैं.
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उन्होंने बताया कि सितंबर से मार्च के महीने कर 70-75 लाख रुपये के मशरूम बेच देते हैं. अपनी 3.75 एकड़ जमीन में से वो सिर्फ 1.5 एकड़ में 60×30 फीट की लगभग 20 अस्थायी शेड बनाते हैं. जिसमें वो मशरूम की खेती करते हैं. मार्च तक मशरूम उगाते हैं फिर अप्रैल महीने में उसे तोड़कर उस जमीन पर बासमती 1509 की सीधी बुवाई तकनीक से खेती करते हैं. जिसकी कटाई को सितंबर में करते हैं. इस तरह से वो एक साल में एक जमीन से दो फसल लेते हैं और अच्छी कमाई भी करते हैं. प्रत्येक शेड से लगभग 40 क्विंटल मशरूम का उत्पादन होता है. इस तरह से वो प्रतिदिन 350 से 400 किलोग्राम और एक सीजन में लगभग 800 क्विंटल मशरूम का उत्पादन करते हैं. वह अपनी उपज खुद बाजार में बेचते हैं, जिससे उन्हें प्रतिदिन मांग के आधार पर 75 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम मिलते हैं.
बलदेव इसके जरिए ना सिर्फ खुद कमाई कर रहे हैं बल्कि वहां पर रहने वाली स्थानीय समुदाय की 20 महिलाओं के सालाना 7-8 महीने के लिए काम पर रखते हैं. इस तरह से ना केवल वो महिलाओं को रोजगार दे रहे हैं बल्कि अपने इलाके की अर्थव्यवस्था को मजबूती भी प्रदान कर रहे हैं. बलदेव बताते हैं कि मशरूम की खेती में उनकी सफलता के पीछे होशियारपुर में कृषि विज्ञान केंद्र का बड़ा योगदान है. क्योंकि यही से प्रशिक्षण पाने के बाद उन्हें अपने कौशल को निखारा है.उन्होंने कहा कि उन्होंने पंजाब और हरियाणा में कई छोटे और सीमांत किसानों को अपने मशरूम फार्म स्थापित करने में सहायता की है.
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केवीके बाहोवाल, होशियारपुर में प्रशिक्षण के एसोसिएट डायरेक्टर मनिंदर सिंह बोन्स कहते हैं कि एक छोटे किसान होने के बावजूद, बलदेव ने अभिनव विचारों को लागू करके और केवीके से प्रशिक्षण का लाभ उठाकर आय के मामले में कई बड़े किसानों को पीछे छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि राज्य में मशरूम की अच्छी खासी मांग है और कोई भी छोटे क्षेत्र में भी इसकी खेती शुरू कर सकता है. मशरूम विटामिन बी2, बी3, बी5, बी6, और कॉपर, सेलेनियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम और आयरन का एक स्रोत है. यह कैंसर को रोकने में भी मदद करता है.