झारखंड में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं राज्य के कृषि क्षेत्र को आगे ले जाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं. बदलते दौर के साथ कृषि को आधुनिक बनाने के साथ ही किसानों को मॉडर्न तकनीक इस्तेमाल करने की जरूरत है, ताकि उत्पादन और गुणवत्ता दोनों को और बेहतर बनाया जा सके. झारखंड में ड्रोन दीदी इस काम को बखूबी निभा रही हैं. क्योंकि, यही दीदियां राज्य के सुदूरवर्ती गांवों में जाकर ड्रोन से होने वाले फायदों के बारे में लोगों को बता रही हैं और ड्रोन के इस्तेमाल के लिए उन्हें प्रेरित भी कर रही हैं. इतना ही नहीं इसके जरिए महिलाएं अपनी आजीविका का अवसर भी देख रही हैं.
झारखंड के लोहरदगा जिला अंतर्गत कुड़ू प्रखंड के कोलसिमरी गांव की ड्रोन दीदी सीमा देवी भी ऐसी ही महिला हैं, जो अपने गांव और पंचायत में ड्रोन के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही हैं. इसके साथ ही वो यहां के लोगों के लिए खेती को आसान भी बना रही हैं. हालांकि, फिलहाल शुरुआती दौर है इसलिए उन्हें थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में वो अच्छा करेंगी और उन्हें अच्छी कमाई भी होगी. सीमा देवी ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की है. उन्हें कृषि ड्रोन के बारे में पहले बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी पर आज वो खुद ड्रोन उड़ा रहीं हैं.
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सीमा देवी ने बताया कि उनके गांव कोलसिमरी में लगभग 500 किसान हैं. गांव में सिंचाई सुविधाओं का अभाव है. इसलिए अधिकांश किसान बरसाती खेती ही करते हैं. गांव में मुख्य तौर पर धान, मक्का, गेहूं, मिर्च, टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, गाजर, आलू और गन्ना की खेती की जाती है. एक दो किसानों को छोड़कर अधिकांश किसान रासायनिक खेती करते हैं. हालांकि, उन्हें जैविक खेती करने के लिए प्रेरित किया जाता है पर वो सुनते नहीं हैं. विभाग और विभिन्न संस्थाओं की तरफ से भी समय-समय पर किसानों को जैविक खेती के लिए ट्रेनिंग दी जाती है. पर किसान इसे नहीं अपना रहे हैं.
ड्रोन दीदी के तौर पर चयन कैसे हुआ के सवाल पर सीमा देवी ने कहा कि महिला समूह की तरफ से उनका नाम ड्रोन दीदी बनने के लिए भेजा गया था. वह फूल आजीविका सखी मंडल में अध्यक्ष और लेखापाल थीं. नाम भेजे जाने के बाद रांची में उनका इंटरव्यू लिया गया. इंटरव्यू होने के बाद दो बार लिखित परीक्षा ली गई. इसके बाद उनका चयन ड्रोन दीदी के लिए हुआ फिर उन्हें ट्रेनिंग के लिए मोतीहारी और रांची भेजा गया. सीमा दीदी बताती हैं कि बचपन से उन्होंने अपने घर में खेतीबाड़ी होते देखी और खेतों में काम भी किया है. ड्रोन दीदी बनने में उनका यह अनुभव काम आया.
सीमा देवी ने बताया कि ड्रोन के इस्तेमाल से लोगों को फायदा तो होगा पर ड्रोन दीदी के तौर पर उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है. खेतों में भारी भरकम ड्रोन को लेकर जाना मुश्किल भरा काम होता है. इसके अलावा ड्रोन की बैटरी बहुत देर तक नहीं चलती है, इसलिए इसे लेकर दूर भी नहीं जा सकते हैं. अगर कहीं छिड़काव के लिए जाना भी होता है तो एक व्यक्ति को साथ में ले जाना होता है. उन्होंने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि उन्हें और दो सेट बैटरी और एक ई-रिक्शा अगर मिल जाता तो काम करने में आसानी हो जाती.
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सीमा देवी ने बताया कि धान, गेहूं और मक्का में दवा यूरिया का छिड़काव करने में दिक्कत तो नहीं होती है पर टमाटर और अन्य पौधों में छिड़काव करने में दिक्कत होती है. उन्होंने बताया कि एक बार उन्होंने अपने गांव के किसान के खेत में टमाटर के पौधे में ड्रोन से छिड़काव किया था. इसके कारण सभी फूल झड़ गए थे. इस समस्या को उन्होंने ट्रेनिंग के दौरान भी उठाया पर फिर भी इसके बारे में उन्हें कोई सटीक जवाब नहीं मिल पाया है. सीमा ने कहा कि आने वाले दिनों में जैसे-जैसे नैनौ यूरिया-डीएपी का इस्तेमाल बढ़ेगा वैसे की ड्रोन से छिड़काव करने की मांग बढ़ेगी और उनकी कमाई बढ़ेगी. उन्हें उम्मीद है कि महीने में 30-35 हजार रुपये की कमाई हो जाएगी.