संकट में दार्जिलिंग का चाय उद्योग, उत्पादन में आई 30 प्रतिशत तक की कमी

संकट में दार्जिलिंग का चाय उद्योग, उत्पादन में आई 30 प्रतिशत तक की कमी

दार्जिलिंग चाय उद्योग के सामने आए संकट पर आर्य टी एस्टेट के प्रबंधक सुबाशीष रॉय ने कहा कि हम दार्जिलिंग चाय उद्योग के उत्पादन में गिरावट का सामना कर रहे हैं. इसके दो-तीन कारण हैं. एक तो यह कि पिछले 10-15 वर्षों से पूरी इंडस्ट्री ऑर्गेनिक हो गई है और दार्जिलिंग का लगभग 90 फीसदी उत्पादन ऑर्गेनिक हो गया है.

संकट में दार्जिलिंग चाय उद्योग (सांकेतिक तस्वीर)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Apr 25, 2024,
  • Updated Apr 25, 2024, 11:17 AM IST

दार्जिलिंग की चाय पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यहां के चाय उद्योग का दार्जिलिंग की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान होता है. पर पिछले कुछ वर्षों से चाय के निर्यात में कमी आई है. इसके कारण इस उद्योग से जुड़े लोगों की कमाई में कमी आई है. यही कारण है कि आज यहां का चाय उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है. इसके पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि चाय के उत्पादन में अब कमी आई है. जैविक चाय की खेती को अपनान के बाद उत्पादन में गिरावट देखी गई है जबकि 90 फीसदी चाय की खेती अब जैविक हो गई है. इसके अलावा उत्पादन में कमी आने के पीछे यहां का मौसम भी एक बड़ा कारण है. 

दार्जिलिंग में आर्य टी एस्टेट के प्रबंधक सुबाशीष रॉय ने कहा कि कुल 87 चाय बगान ऐसे हैं जो रिकॉर्ड में हैं और इन्हें जीआई टैग मिला हुआ है. यहां से होने वाले कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत निर्यात किया जाता है जबकि 60 फीसदी चायपत्ती देश में बेची जाती है. इसके अलावा 50 प्रतिशत चायपत्ती व्यापारियों द्वारा भी निर्यात किया जाता है. निर्यात को बढ़ावा देने की बात करते हुए सुबाशीष रॉय बताते हैं कि चाय उद्योग में निर्यात आय का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है. उन्होंने बताया कि इस उद्योग में सिर्फ मार्च और अप्रैल महीने में ही बगानों से 50 प्रतिशत की आय होती है. 

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उत्पादन में आई बड़ी कमी

इस समय पहली बार पत्ती तोड़ी जाती है, जिसकी क्वालिटी काफी अच्छी होती है. लेकिन हाल के दिनों में दार्जिलिंग चाय के उत्पादन में गिरावट देखी गई है. समाचार एजेंसी ANI ने आर्य टी एस्टेट के प्रबंधक के हवाले से बताया कि पिछले एक से डेढ़ दशक के दौरान दार्जिलिंग चाय का 90 प्रतिशत उत्पादन जैविक हो गया है. जैविक होने के बाद उत्पादन में 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. उत्पादन में कमी का दूसरा कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि चाय की जो झाड़ियां हैं वो 100 साल से अधिक पुरानी हो गई हैं. इसके कारण उत्पादन कम हो गया है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उत्पादन में कमी आने का तीसरा कारण मौसम भी है.

नेपाल की चाय से चुनौती 

उन्होंने कहा कि यहां के मौसम की स्थिति में बड़ा बदलाव आया है. जो मौसम यहां पर 20 साल पहले हुआ करता था अब वो मौसम नहीं है. जब बारिश होती है तो लगातार बारिश होती है या फिर बिल्कुल बारिश नहीं होती है. हमें सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा नेपाल की चायपत्ती से मिल रही चुनौती और चाय बगानों में काम करने वाले श्रमिकों की कमी कारण भी उत्पादन में कमी आई है. सुबाशीष रॉय ने कहा कि मार्केटिंग के नजरिये से हम नेपाल की चाय से चुनौती का सामना कर रहे हैं क्योंकि पहले भारत से यूरोप जैसे देशों में चाय का निर्यात होता था. अब वो देश भी नेपाल से चाय खरीद रहे हैं. नेपाल से चाय भारत में भी आती है.

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नहीं मिल रहे श्रमिक

चाय बगानों में श्रमिकों की कमी भी एक गंभीर चुनौती है क्योंकि यह एक ऐसा पेशा था जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे थे. पर अब श्रमिकों की नई पीढ़ी चाय बगानों में काम नहीं करना चाहती है. इसलिए श्रमिक नहीं मिल रहे हैं. वही चाय बगान में काम करने वाले एक मजदूर ने बताया कि उन्हें चाय बगान में काम करना पसंद है पर उन्हें अच्छी मजदूरी नहीं मिलती है. मजदूर ने कहा कि चाय ऊंचे दामों में बेची जाती है पर मजदूरों को बेहद कम मजदूरी मिलती है. साथ ही कहा कि उन्हें दैनिक मजदूरी कम से कम 500 रुपये तक मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि कई बार मजदूरी बढ़ाने का आश्वासन मिला पर अब तक नहीं बढ़ाई गई. 

 

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