देश में किसान अब पारंपरिक फसलों की खेती को छोड़कर बागवानी फसलों की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं. इसके लिए सरकार भी किसानों की आमदनी को बढ़ाने और बागवानी फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई स्कीम चला रही है. इसके अलावा सरकार एग्री सेक्टर में इंफ्रास्ट्रक्चर को भी बढ़ाना चाहती है. ताकि किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके. दरअसल आपको बता दें कि व्यापारी किसानों से बागवानी की फसलें खरीदकर इसे गोदाम में केमिकल से पकाते हैं. केमिकल से पके हुए फल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है. इससे कई बीमारियां भी होती हैं. वहीं बिना पके हुए फलों बेचने पर किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम भी नहीं मिलता है.
इन्हीं समस्याओं को देखते हुए बिहार सरकार का कृषि विभाग और उद्यान निदेशालय ने एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के तहत राज्य के किसानों को राइपनिंग चैंबर लगाकर कमाई करने का मौका दे रही है. इसके लिए सरकार किसानों को बंपर सब्सिडी दे रही है.
बिहार सरकार का कृषि विभाग और उद्यान निदेशालय एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के तहत व्यक्तिगत किसानों और उद्यमी किसानों को राइपनिंग चैंबर के लिए इकाई लागत पर 50 प्रतिशत और एफपीओ- एफपीसी को इकाई लागत पर अधिकतम 75 प्रतिशत सब्सिडी देने जा रही है. मसलन इस योजना के तहत इकाई लागत एक लाख रुपए की लागत से राइपनिंग चैंबर लगवाते हैं, तो इस पर आपको इकाई लागत की 50 प्रतिशत सब्सिडी विभाग की ओर से दी जाएगी. यानी आपका राइपनिंग चेंबर केवल 50 हजार रुपए में तैयार हो जाएगा. वहीं, FPO, FPC को 75 फीसदी सब्सिडी यानी प्रति यूनिट 75,000 रुपये देगी. जिससे आप अपने उत्पादों को सड़ने-गलने से बचा सकते हैं. इसके अलावा कच्चे फलों की तुड़ाई कर पकाने के लिए स्टोरेज कर सकते हैं. इसके अलावा, आप इससे फल पकाने का खुद का बिजनेस भी शुरू कर सकते हैं.
एक्सपर्ट के तहत दी गई जानकारी के अनुसार राइपनिंग चैंबर बागवानी फल यानी आम, पपीता और केला सहित कई अन्य फलों को पकाने की कृत्रिम तकनीक है. इस तकनीक में कोल्ड स्टोरेज की तरह ही एक चैंबर बनाया जाता है जिसमें फलों की डिमांड की आपूर्ति के लिए निर्यात किए जाने वाले तोड़े गए अधपके फलों को पकाने के लिए स्टोर किया जाता है. राइपनिंग चैंबर में कच्चे फलों को एथिलीन गैस की मदद से धीरे-धीरे पकाया जाता है. राइपनिंग तकनीक से पके फलों का लंबे समय तक स्टोर और ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है. इस तकनीक से पके फल लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं.
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राइपनिंग चैंबर में फल सिर्फ 24 से 48 घंटे में पक जाते हैं. इसके लिए एथिलीन गैस का इस्तेमाल किया जाता है, जो सेहत के लिए नुकसानदेह नहीं माना जाता है. जबकि अभी तक पारंपरिक तौर पर बाजारों में कार्बाइड के जरिए यह फल पकाए जाते हैं, जो काफी लंबी प्रक्रिया है. साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी काफी हानिकारक होते हैं. वहीं शहर में बिकने वाले ज्यादातर फल यानी आम, केले, और पपीते इस फ्रूट राइपनिंग तकनीक से ही पकाए हुए होते हैं.
बिहार में रहने वाले लोग एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत राइपनिंग चैंबर पर सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं. इसके लिए किसानों को बागवानी विभाग की ऑफिशियल वेबसाइट के लिंक पर जाकर आवेदन करना होगा. इसके अलावा किसानों को इससे जुड़ी अधिक जानकारी या फिर किसी सवाल के जवाब के लिए अपने जिले के उद्यान विभाग के कार्यालय में सहायक निदेशक से जाकर मिल सकते हैं.