जम्मू-कश्मीर मछली पालन विभाग के मुताबिक साल 2019 के बाद से लगातार मछली उत्पादन में इजाफा हो रहा है. बीते चार साल में काफी चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. खासतौर पर कश्मीर में मछली पालन तेजी से बढ़ रहा है. विभाग के आंकड़ों पर जाएं तो अकेले कश्मीर में ही मछली के उत्पादन में करीब छह हजार टन की बढ़ोतरी हुई है. जिसके चलते राज्य का रेवेन्यू भी बढ़ा है. जानकारों की मानें तो कश्मीर में इस वक्त खासतौर पर ट्राउट मछली बहुत पसंद की जा रही है. यही वजह है कि चार साल में ट्राउट का उत्पादन तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गया है.
एक ओर आंकड़े हैरान करने वाले हैं वहीं दूसरी चौंकाने वाली बात ये है कि दूध उत्पादन और भेड़ पालन में भी कश्मीर नई इबारत लिख रहा है. आज कश्मीर में भेड़ के मीट की करीब 50 फीसद जरूरत देश के दूसरे राज्य करते हैं. अच्छे दूध उत्पादन के लिए हाल ही में डेयरी मंत्रालय ने कश्मीर के कुछ पशुपालकों को सम्मानित भी किया था.
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मछली पालन विभाग के डायरेक्टर मोहम्मद फारुख डार का कहना है कि बीते वित्त वर्ष में राज्य को मछली पालन से 3.66 करोड़ रेवेन्यू मिला है. खासतौर पर ट्राउट मछली से ज्यादा रेवेन्यू मिला है. अगर हम बीते चार साल की बात करें तो साल 2019 में कश्मीर में ट्राउट का 598 टन उत्पादन हुआ था. जबकि 2022-23 में यही आंकड़ा बढ़कर 1990 टन पर पहुंच गया. आगे भी इसके बढ़ने की उम्मीद है. क्योंकि ज्यादातर लोग ट्राउट का पालन कर रहे हैं. सरकारी योजनाओं के चलते लोग मछली पालन में आ रहे हैं. खास बात ये है कि बीते चार साल में ही सरकारी मदद से 56 फीसद यानि 611 यूनिट ट्राउट की लगी है. अगर इसमे लोगों की प्राइवेट यूनिट भी जोड़ ली जाएं तो 1144 ट्राउट यूनिट संचालित हैं.
मोहम्मद डार ने बताया कि साल 2020-21 में पहली बार कश्मीर में रिसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) और बायोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल मछली पालन में किया गया था. जिसके चलते बीते तीन साल में ही प्राइवेट सेक्टर में 27 सफल बायोफ्लॉक और आठ आरएएस यूनिट लग चुकी हैं. डार ने इसके पीछे की वजह बताते हुए कहा कि जम्मू और कश्मीर में खाद्य पदार्थ और रोजगार के चलते मछली पालन एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में उभरा है.
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इसमे ट्राउट, कार्प संस्कृति और आधुनिक एकवाकल्च र टेक्नोलॉजी अहम रोल अदा कर रही है. इसमे एक अहम भूमिका साल 2020 से यूटी कैपेक्स और केंद्र की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) की भी है. ट्राउट का उत्पादन बढ़ने से राज्य में चार साल के अंदर फिश फीड मिल्स और ट्राउट सीड हैचरी की संख्या भी बढ़ी है.