हर साल देश में लगभग 135 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन किया जा रहा है. सोयाबीन मध्य प्रदेश सहित कुछ राज्यों के लिए तिलहन में सबसे अहम फसल है. खरीफ सीजन 2024 में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 30 अगस्त 2024 तक 125.11 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई की गई है. खेतों में खड़ी सोयाबीन की फसल लगभग 60-65 दिनों की हो चुकी है. और अब फूल से दाना बनने की प्रक्रिया में है. किसानों के खेतो में फली छेदक, सेमीलूपर जैसे हानिकारक कीटों, पीला मौजेक और एन्थ्रेकनोज रोग के प्रकोप की सूचना मिल रही है, जिससे फसल नुकसान का खतरा बढ़ गया है. इन हानिकारक कीटों और रोगों से बचाव के लिए सोयाबीन शोध संस्थान, इंदौर ने सोयाबीन किसानों को कुछ सुझाव दिए हैं, जिन्हें अपनाकर वे अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं.
सोयाबीन शोध संस्थान, इंदौर ने बताया है कि इस समय खड़ी सोयाबीन की फसल में फूल और फलियां बन रही हैं. लेकिन उनमें दाने भरने की स्थिति में फली छेदक इल्ली (पोड बोरर) द्वारा नुकसान किए जाने की आंशका रहती है. वर्तमान में इसी प्रकार की इल्ली जो कि प्रायः रबी के मौसम में देखी जाती है, खरीफ में भी सोयाबीन फसल पर देखी जा रही है. यह फली के अंदर रहकर दानों को खाती है और उनको सड़ा देती है. इसके नियंत्रण के लिए फसल पर इंडोक्साकार्ब 15.80% EC 135 मिलीलीटर प्रति एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90% 170 मिलीलीटर प्रति एकड़, या नोवाल्युरोन + इंडोक्साकार्ब एस. सी. 330 मिलीलीटर एकड़ प्रति दवा का छिड़काव करना चाहिए.
सेमीलूपर इल्ली, सोयाबीन की पत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीटों में से एक है. यह प्रारंभ में पत्तियों पर छोटे-छोटे छेद बनाकर खाती है और बड़े होने पर पत्तियों को पूरी तरह नष्ट कर देती है, जिससे उपज में भारी नुकसान हो सकता है. इसके नियंत्रण के लिए क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी 60 मिलीलीटर दवा या इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 फीसदी 170 मिलीलीटर दवा, या लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 04.90 सी.एस. 120 मिलीलीटर दवा प्रति एकड़ की दर से दवा का छिड़काव करें.
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फसल पर कैटरपिलर के प्रकोप की स्थिति में सलाह दी जाती है कि प्रारंभिक अवस्था में ही इन कैटरपिलर को पौधों सहित खेत से हटा दें. इस हानिकारक कीट के नियंत्रण के लिए लैम्ब्डा साइहालोथ्रिन 04.90 सीएस दवा 125 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से या इंडोक्साकार्ब 15.8 एस.सी.133 मिलीलीटर दवा प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.
सोयाबीन अनुसंधान केंद्र, इंदौर के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि सोयाबीन की फसल में पीला मोज़ेक वायरस रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो यह वायरस जनित रोग है जो फसल को प्रभावित करता है. इस रोग से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, पौधे कमजोर हो जाते हैं, पैदावार और गुणवत्ता में कमी आती है. इस रोग के कारण पत्तियां खुरदरी हो जाती हैं और उन पर सलवटें पड़ने लगती हैं. पत्तियों पर भूरे और स्लेटी रंग के धब्बे भी दिखने लगते हैं. रोगी पौधे नरम होकर सिकुड़ने लगते हैं. यह रोग सफ़ेद मक्खी के संक्रमण से फैलता है और बारिश तीन से चार दिन के अंतराल पर होने से यह तेजी से फैलता है. हालांकि, लगातार बारिश होने से इस रोग का प्रभाव कम हो जाता है.
पीला मोज़ेक वायरस से बचाव के लिए, सफ़ेद मक्खी पर नियंत्रण आवश्यक है. जैसे ही लक्षण दिखें, संक्रमित पौधों को तुरंत खेत से हटा दें और खेत में विभिन्न स्थानों पर पीले स्टिकी ट्रैप लगाएं, ताकि वायरस के वाहक एफिड और सफेद मक्खी चिपककर मर जाएं. कीटनाशकों के रूप में एलेस्टामिप्रिड 25% + बिफेनलारेन 25% डब्लूजी 100 ग्राम दवा प्रति एकड़ या थायोमेथोक्सम + लैम्ब्डा साइहालोथ्रिन मिश्रित दवा 50 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि लगातार बारिश वाले क्षेत्रों में एन्थ्राक्नोज नामक फफूंदजनित रोग का प्रकोप हो सकता है. इसका फफूंद बीज, भूमि, और ग्रसित पौधों के अवशेषों में जीवित रहता है, जिससे उगने वाले बीज के बीजपत्रों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे विकसित होते हैं. यह रोग फसल की सभी अवस्थाओं में देखा जा सकता है, लेकिन इसके लक्षण फूल और दाने भरते समय तना, पर्णवृंत और फलियों पर गहरे भूरे धब्बों के साथ पीलेपन के रूप में प्रकट होते हैं.
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इस फंगल रोग से फसल को बचाव के लिए टेबुकोनाजोल 25.9 ईसी 250 मिलीलीटर दवा प्रति एकड़ या टेबुकोनाजोल 10फीसदी + सल्फर 65 दवा फीसदी डब्ल्यूजी 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. इन सुझाए गए उपायों को अपनाकर सोयाबीन फसल को विभिन्न कीटों और रोगों से सुरक्षित रख सकते हैं और फसल की उपज को बनाए रख सकते हैं. फसल के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए नियमित निगरानी और उचित कीटनाशक उपयोग अत्यंत जरूरी है.